देश में किसानों को फलों और सब्जियों आदि का खुदरा कीमत का कम हिस्सा मिलता है-अशोक बालियान, चेयरमैन,पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन

पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन के चेयरमैन अशोक बालियान ने भारत के कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान व् वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल को पत्र भेजते हुए कहा है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की रिपोर्ट के अनुसार देश में अगर खाने-पीने वाली वस्तुओं की महंगाई बढ़ती है, तो इसका प्रमुख कारण बिचौलियों की भारी-भरकम कमाई है।


भारतीय रिजर्व बैंक की अभी हाल में आई एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार किसान को केले को जलगांव से दिल्ली पहुंचने में कुल खुदरा कीमत का 30 प्रतिशत हिस्सा मिलता है।थोक व्यापारी को 19.2 प्रतिशत हिस्सा मिलता है। खुदरा कारोबारी को 26.9 प्रतिशत व् ट्रेडर को 23 प्रतिशत हिस्सा मिलता है। ऐसे में यदि केला 50 रुपये दर्जन बिके, तो किसान को महज 15 रुपये ही मिल पाएंगे।
इसी तरह, आम पर किसान को 43 प्रतिशत रकम मिलती है। ट्रेडर्स 10 प्रतिशत लेता है, तो परिवहन की लागत 5 प्रतिशत होती है। मजदूर की लागत 2 प्रतिशत और थोक व्यापारी का कमीशन 7 प्रतिशत होता है। हालांकि, 8 प्रतिशत रकम फल के नुकसान में चली जाती है। खुदरा व्यापारी का मार्जिन 27 प्रतिशत होता है। इसका मतलब आपको आम 155 रुपये किलो मिल रहा है,तो मूल किसान को केवल 67 रुपये ही मिल पा रहा है।
किसानों को दालों में 75 प्रतिशत तक रकम मिल रही है। तीन प्रतिशत बाजार शुल्क, तीन प्रतिशत मंडी के मजदूर का और पैकिंग शुल्क, तीन प्रतिशत नुकसान व 8 प्रतिशत खुदरा कारोबारी का शुल्क है।अरहर दाल में 65 प्रतिशत किसान को मिल रहा है।खुदरा कारोबारी 14 प्रतिशत मिल रहा है।इसी तरह मूंग दाल में किसान को 70 प्रतिशत मिल रहा है।
दूध को स्टोर करके लंबे समय तक रखा जा सकता है। इसलिए इसमें किसान को 71 प्रतिशत तक रकम मिल जाती है। खुदरा कारोबारी सात प्रतिशत कमीशन लेता है। 13 प्रतिशत इसके रख-रखाव पर खर्च होता है।बाकी अन्य खर्च होते हैं।कुल दूध उत्पादन में गांवों में 42 प्रतिशत खपत होती है।
मुर्गी पालन में मालिक को कुल कीमत की 55-56 प्रतिशत रकम मिलती है।थोक व्यापारी 8.33 प्रतिशत, खुदरा व्यापारी 19.17 प्रतिशत और ट्रेडर्स 11 प्रतिशत कमीशन लेता है। तीन प्रतिशत हिस्सा नुकसान हो जाता है। इसी तरह अंडे में मालिक को 69 प्रतिशत रकम मिलती है। ट्रेडर्स को 10 प्रतिशत, थोक कारोबारी को सात प्रतिशत और खुदरा व्यापारी को 10 प्रतिशत कमीशन मिलता है।
अध्ययन में यह भी बताया गया है कि उपभोक्ताओं को अक्सर टमाटर, प्याज और आलू जैसी प्रमुख सब्जियों की कीमतों में उछाल का सामना करना पड़ता है, जो कि अनियमित वर्षा या अत्यधिक तापमान जैसे मौसमी कारकों के कारण साल में कम से कम दो बार होता है। हालांकि, इन कीमतों में बढ़ोतरी से किसानों की आय में वृद्धि नहीं होती है।
वास्तव में, किसानों को टमाटर के लिए उपभोक्ता मूल्य का केवल 33 प्रतिशत, प्याज के लिए 36 प्रतिशत और आलू के लिए 37 प्रतिशत ही मिलता है। इस अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार दिलचस्प बात यह है कि निर्यात बाजार में किसान आमों के लिए अधिक धन कमाते हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक के एक अध्ययन से पता चलता है कि सरकार को उत्पादकता बढ़ाने, अधिक भंडारण सुविधाएँ बनाने और कीमतों को स्थिर करने और किसानों की आय बढ़ाने के लिए डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करने में मदद करनी चाहिए।
इस विषय में हमारा सुझाव है कि कीमतों में उतार-चढ़ाव को कम करने के लिए, निजी मंडियों का विस्तार करने, ई-एनएएम(कृषि उत्पादों के लिए एक ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म)के उपयोग को बढ़ावा देने, किसान समूहों को बढ़ावा देने और वायदा कारोबार को फिर से शुरू करने व् कृषि निर्यात बढ़ाने के लिए कुछ मुख्य उत्पादों का बोर्ड बनाने के साथ ही कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) की भूमिका को बढाने जैसे कदम उठाये जाने चाहिए।
अन्य समाधानों में अधिक कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं का निर्माण, सौर ऊर्जा से चलने वाले भंडारण विकल्पों को बढ़ावा देना, खाद्य प्रसंस्करण क्षमता बढ़ाना और संसाधित टीओपी उत्पादों के बारे में उपभोक्ता जागरूकता बढ़ाना शामिल है।इसके अतिरिक्त स्थिर आपूर्ति और कीमतों को सुनिश्चित करने के लिए बेहतर फसल किस्मों और पॉलीहाउस टमाटर की खेती के माध्यम से उत्पादकता में सुधार करने की आवश्यकता है।

अशोक बालियान स्वतंत्र लेखक

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