पाकिस्तान ने सितंबर 1960 की सिंधु जल संधि में संशोधन की मांग वाली नोटिस पर भारत को जवाब दिया है. भारत ने 25 जनवरी को पाकिस्तान को एक नोटिस जारी किया था. पाकिस्तान ने इस मामले में बेहद सावधानी बरती है, साथ ही सतर्कता के साथ जवाब दिया है. बता दें कि भारत ने संधि के अनुच्छेद 12 के तहत यह नोटिस भेजा था. पाकिस्तान के जवाब से लग रहा है कि इस मामले में वह बैकफुट पर है.
पड़ोसी देश का कहना है कि वह सिंधु जल के स्थायी आयोग के स्तर पर संधि को लेकर नई दिल्ली की चिंताओं को सुनने के लिए तैयार है. पाकिस्तानी न्यूज वेबसाइट ‘द न्यूज’ के मुताबिक, अधिकारियों का कहना है कि पाकिस्तान एक निचला नदी तट वाला देश है, जबकि भारत ऊंचे तट वाला देश है. इस वजह से निचले तट वाला देश सिंधु जल संधि के प्रावधानों का उल्लंघन या कोई भौतिक बाधा पैदा नहीं कर सकता है.
भारत को क्यों भेजना पड़ा नोटिस
साल 2017 से लेकर 2022 के बीच स्थायी सिंधु आयोग की पांच बैठकों में से किसी में पाकिस्तान ने उपस्थिति दर्ज नहीं कराई. दरअसल, इस मुद्दे पर चर्चा करने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद भारत को मजबूरन नोटिस भेजना पड़ा. भारत द्वारा भेजे गए नोटिस का उद्देश्य पाकिस्तान को सिंधु जल संधि के उल्लंघन को सुधारने के लिए 90 दिनों के भीतर अंतर-सरकारी वार्ता में प्रवेश करने का अवसर प्रदान करना है.
सिंधु जल संधि क्या है?
भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर, 1960 को सिंधु जल संधि को लेकर करार हुआ था. दोनों के बीच कुछ बातों पर सहमति बनी थी. दोनों देशों ने बकायदे हस्ताक्षर किए थे. संधि के प्रावधानों के तहत सतलज, व्यास और रावी का पानी भारत को दिया गया. वहीं सिंधु, झेलम और चिनाब का पानी पाकिस्तान को दिया गया. इस समझौते में विश्व बैंक भी एक हस्ताक्षरकर्ता (सिग्नेटरी) है.
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