क्या मुस्लिम इस्लाम धर्म में धर्मान्तरित होने से पहले का अपना धर्म, अपने रीतिरिवाज व् अपने पूर्वजों के बारे में सोचते हैं?-अशोक बालियान,चेयरमैन,पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन
उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस बात पर जोर दिया कि सनातन हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण स्थल भारत की विरासत के प्रतीक हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सालार मसूद ग़ाज़ी जैसे लोगों का महिमामंडन करना देश का अपमान है।भारत के मुसलमानों के पूर्वज बाबर व् औरंगजेब नहीं है, उन्होंने जबरन धर्मांतरण किया था।
पीजेंट के चेयरमैन अशोक बालियान व महाराजा सूरजमल स्मारक शिक्षा संस्था, नई दिल्ली के रिसर्च के निदेशक ने इस्लाम धर्म में धर्मान्तरित मुस्लिम जाट सहित कुछ मुस्लिम समुदाय पर यह अध्यन किया है कि जबरन इस्लाम धर्म में धर्मान्तरित मुस्लिम समुदाय धर्मांतरण से पहले का अपना धर्म, अपने रीतिरिवाज व् अपने पूर्वजों के बारे में सोचते क्या हैं? आठवीं शताब्दी की पहली तिमाही में मोहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में एक अरब सेना सिंध की धरती पर पैर जमाने में सफल रही थी। यहाँ पर मोहम्मद बिन कासिम ने हिन्दुओं को जबरन इस्लाम धर्म में धर्मान्तरित करने का कार्य किया था। इसके बाद विदेशी इस्लामिक हमलावरों के आने पर पूर्व और पश्चिम में हिंदुओं के बड़े हिस्से अपने पूर्वजों से अलग होने शुरू हो चुके थे।
हमने अपने अध्यन में पाया है कि जब हमने उनसे जबरन इस्लाम धर्म में धर्मान्तरित होने की बात बताई तो उनमे निराशा देखने को मिली है। मुस्लिम समुदाय यह निराशा न केवल आगे धर्मांतरण को हतोत्साहित करती है, बल्कि कई मुसलमानों को अपने पुराने धर्म में लौटने के लिए प्रेरित करती है। वे भी जानते है कि हमारा इतिहास वस्तुतः हिन्दू समाज का इतिहास है, हिन्दू संस्कृति का इतिहास है। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी उनकी पसंद है।
इस्लाम धर्म में धर्मान्तरित मुस्लिम जाट अपने पूर्वजों के उन पूर्वाग्रहों को बरकरार रखते हैं, जिन्हें भारत पर विदेशी इस्लामिक हमलावरों ने आक्रमण के समय बलपूर्वक हिन्दू धर्म से धर्मांतरित किया गया था। भारत में सनातन धर्म ने ही इस समस्त अध्यात्म-सम्पदा का सृजन किया है, जिसमे अनेकों पंथों शामिल है।
हमने जब उनसे कहा कि विदेशी इस्लामिक हमलावर मुहम्मद बिन कासिम सिंध में तीन साल से कुछ ज़्यादा समय तक रहा और जब उसे इराक के गवर्नर हजाज ने वापस बुलाया तो न सिर्फ़ सिंध में अरब शक्ति तेज़ी से कम हुई, बल्कि ज़्यादातर नव-धर्मांतरित लोग अपने पुराने धर्म हिन्दू धर्म में लौट आए थे, तो उन्होंने कहा कि भारत में जबरन धर्मांतरण के इतिहास को इतिहासकारों ने छुपाया है, वरना सच्चाई सामने आने पर लोग अपने पुराने धर्म हिन्दू धर्म में लौट सकते थे। हिन्दू धर्म से इस्लामिक धर्म में धर्मान्तरित लोगों का यह भी कहना है कि तब्लीग़ी जमात भी उनको कट्टर इस्लाम की तरफ ले जा रही है। वापस लौटने की सम्भावना पर उन्होंने उत्तर नहीं दिया।
तब्लीग़ी जमात का जन्म भारत में विदेशी हमलावर शासकों द्वारा हिंदुओं को जबरन मुस्लिम बनाने की घटनाओं के बाद स्वामी श्रद्धानंद द्वारा 20वीं सदी में उनकी हिंदू धर्म में घरवापसी को रोकने के लिये हुआ था।
भारत में जबरन इस्लाम धर्म कबूल किया गया था लेकिन सभी धर्मांतरित मुस्लिम हिंदू परंपरा और रीति-रिवाज नहीं छोड़ रहे थे। ब्रिटिश काल के दौरान भारत में आर्य समाज ने उन्हें दोबारा से हिंदू बनाने का शुद्धिकरण अभियान शुरू किया था, जिसको रोकने के लिए मौलाना इलियास कांधलवी ने सन 1927 में तबलीगी जमात का गठन किया था।
तबलीगी जमात सऊदी अरब सहित मध्य एशिया के ज्यादातर देशों में बैन है, सऊदी सरकार ने तब्लीगी जमात को आतंकवाद का दरवाजा बताया है, लेकिन भारत में तबलीगी जमात बे रोक-टोक अपना कार्य कर रही है।
तबलीगी जमात के प्रचार का प्रभाव पड़ने से पहले मुस्लिम जाट में भी हिंदू जाट की तरह किनशिप सिस्टम था और वो लोग माता-पिता का गौत्र छोड़कर शादियां करते थे।एक ही गांव में शादियां नहीं होती थी।यहां के मुस्लिम जाट गाय की पूजा किया करते थे।गोवर्धन त्यौहार भी मनाते थे।शादियों में भात लाने का सिस्टम भी था।
तबलीगी जमात के प्रचार का प्रभाव पड़ने से अब मुस्लिम जाट भी अपनी इस्लामिक धार्मिक पहचान को ओढ़ कर चलते हैं जैसे दाढ़ी रखना या फिर टोपी पहनना।मुस्लिम औरतों ने भी ओढ़नी छोड़कर सलवार कमीज पहनना शुरू किया हुआ है।अब बच्चों के अरेबिक नाम रखे जाने लगे हैं।लोगों का रूझान धार्मिक रिवाजों की तरफ हुआ है और थोड़ा खान-पान में भी बदलाव आया है।कुछ लोगों का मानना है कि तबलीगी जमात उनको कट्टरपंथी की तरफ़ ले जा रही है।
हमने अपने अध्यन में यह भी पाया है कि भारत में राजनैतिक स्वार्थ के कारण सनातन धर्म का स्थान एक काल्पनिक नए धर्म “सैक्युलरिज्म धर्म” ने ले लिया है। देश की जनता को समझाया जा रहा है कि सैक्युलरिज्म के सहारे ही यह देश एक संगठित राष्ट्र बनेगा। भारत में आजादी के बाद भारत-सरकार के शिक्षा मन्त्रालय को एक ऐसा इतिहास लिखवाने का आदेश दिया था, जिसमें विदेशी इस्लामिक हमलावरों को विदेशी हमलावर न कहा जाए।
आज भारत में सनातन धर्म व सैक्युलरिज्म धर्म पर बहस चल रही है और वैचारिक संघर्ष भी चल रहा है,लेकिन जबतक हमारी दृष्टि हमारे मन में स्पष्ट नहीं होगी, जबतक वैचारिक संघर्ष के लिए तैयार नहीं होंगे, जबतक हमें अपने विषय में तथा जिन शक्तियों के साथ हमें संघर्ष करना है, उनके विषय में सम्यक् ज्ञान नहीं होगा, तबतक हम यह युद्ध नहीं जीत सकते। जो समाज विचारात्मक संघर्ष करने से कतराता हैं, वो समाज विचारात्मक आक्रमण को परास्त नहीं कर पाता है, वो समाज भविष्य में अपने विरुद्ध सशस्त्र आक्रमण को आमंत्रित करता हैं।
यदि विचारात्मक आक्रमण को नहीं रोका जाता, तो उसका शिकार होने वाले समाज को निरीह मान लिया जाता है और उस समाज पर सशस्त्र आक्रमण होकर ही रहता है। यह प्रकृति का नियम है। हमें सनातन धर्म के विरुद्ध विचारात्मक आक्रमण को उसके असली रूप में जानना चाहिए। अन्यथा हम विचारात्मक संघर्ष नहीं कर पाएँगे।
आज भारतवर्ष में एक भी ऐसा प्रतिष्ठान नहीं है जिसको सही अर्थो में हिन्दू प्रतिष्ठान कहा जा सके। हमारे पास बहुत से आश्रम और मठ हैं तथा कुछ प्रकाशन संस्थान हैं। हमारे पास बहुत से स्वामी व् कथावाचक है जो कथा करते रहते हैं। किन्तु सारे देश में एक भी ऐसा संस्थान नहीं है,जो हिन्दू दृष्टि से विद्वता का विस्तार करता हो, जो हिन्दुओं की समस्त सांस्कृतिक सम्पदा को एक सूत्र में बांधता हो और जो सनातन धर्म के विरुद्ध विचारात्मक आक्रमण के खतरे को हमारे सामने रख सके।
हमारे अध्यन की खोज भविष्य में कितनी आगे बढ़ेगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हिंदू समाज इसे वर्तमान में समझता है या नहीं। यह खोज हिंदू समाज के लिए इन विध्वंसकारी तकनीकों से निपटने में उपयोगी हो सकती है।क्योकि अभी तक हिंदू अभिजात वर्ग अपने समाज, संस्कृति और देश के प्रति अपना कर्तव्य निभाने में विफल रहा है। हिन्दू समाज को अपने इतिहास को समझना होगा, अपने धर्मग्रन्थों को समझना होगा, अपनी संस्कृति को गहनता से तथा विस्तार से समझना होगा, और एक राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान को समझना होगा। स्पेन में 700 साल बाद सभी मुस्लिम पुन: अपने धर्म ईसाई धर्म में वापिस लौट आये थे, क्योकि वहां पर देश के उस इतिहास को समझा गया था,जिसमे उनका जबरन ईसाई धर्म से इस्लाम धर्म में उनका धर्मांतरण किया गया था। रहते हैं। किन्तु सारे देश में एक भी ऐसा संस्थान नहीं है,जो हिन्दू दृष्टि से विद्वता का विस्तार करता हो, जो हिन्दुओं की समस्त सांस्कृतिक सम्पदा को एक सूत्र में बांधता हो और जो सनातन धर्म के विरुद्ध विचारात्मक आक्रमण के खतरे को हमारे सामने रख सके।
हमारे अध्यन की खोज भविष्य में कितनी आगे बढ़ेगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हिंदू समाज इसे वर्तमान में समझता है या नहीं। यह खोज हिंदू समाज के लिए इन विध्वंसकारी तकनीकों से निपटने में उपयोगी हो सकती है।क्योकि अभी तक हिंदू अभिजात वर्ग अपने समाज, संस्कृति और देश के प्रति अपना कर्तव्य निभाने में विफल रहा है। हिन्दू समाज को अपने इतिहास को समझना होगा, अपने धर्मग्रन्थों को समझना होगा, अपनी संस्कृति को गहनता से तथा विस्तार से समझना होगा, और एक राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान को समझना होगा। स्पेन में 700 साल बाद सभी मुस्लिम पुन: अपने धर्म ईसाई धर्म में वापिस लौट आये थे, क्योकि वहां पर देश के उस इतिहास को समझा गया था,जिसमे उनका जबरन ईसाई धर्म से इस्लाम धर्म में उनका धर्मांतरण किया गया था।

