वक्फ–संशोधन विधेयक, 2024 मुस्लिमों के हित में है, फिर भी मुस्लिमों को गुमराह किया जा रहा है-अशोक बालियान, चेयरमैन, पीजेंट वेलफ़ेयर एसो.
अशोक बालियान
पीजेंट वेलफ़ेयर के चेयरमेन अशोक बालियान ने श्री जगदंबिका पाल (सांसद) अध्यक्ष,संयुक्त संसदीय समिति, नई दिल्ली को अपने सुझाव व विचार भेजते हुए कहा है कि भारत की सांसद में 8 अगस्त, 2024 को दो विधेयक, वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 और मुसलमान वक्फ (निरसन) विधेयक, 2024 , पेश किए गए थे,जिनका उद्देश्य वक्फ बोर्ड के काम को सुव्यवस्थित करना और वक्फ संपत्तियों का कुशल प्रबंधन सुनिश्चित करना है, ताकि वक्फ संपत्तियों के विनियमन और प्रबंधन में आने वाली समस्याओं और चुनौतियों का समाधान किया जा सके।
वक्फ अधिनियम 1995, अपने दायरे में व्यापक होने के बावजूद, इसमें कई खामियाँ हैं, जिनके कारण इसके प्रभावी क्रियान्वयन में क़ानूनी चुनौतियाँ आई हैं। वक्फ बोर्डों के भीतर भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के मामले सामने आए हैं, जिससे अधिनियम की प्रभावशीलता कम हुई है।
संशोधन विधेयक का उद्देश्य देश में वक्फ संपत्तियों के प्रशासन और प्रबंधन में सुधार करना भी है। विधेयक में वक्फ अधिनियम, 1995 का नाम बदलकर एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995 करने का प्रावधान है। यह जिलाधिकारी या उप-जिलाधिकारी पद के किसी अन्य अधिकारी को सर्वेक्षण आयुक्त के कार्य भी प्रदान करता है। यह बोहरा और आगाखानी समुदाय के लिए एक अलग वक्फ बोर्ड की स्थापना और मुस्लिम समुदायों के बीच शिया, सुन्नी, बोहरा, आगाखानी और अन्य पिछड़े वर्गों के प्रतिनिधित्व का भी प्रावधान करता है। विधेयक में दो सदस्यों वाले ट्रिब्यूनल ढांचे में सुधार करने और ट्रिब्यूनल के आदेशों के खिलाफ नब्बे दिनों की निर्दिष्ट अवधि के भीतर उच्च न्यायालय में अपील करने का भी प्रावधानहै।
इस नये प्रस्तावित बिल में जो भी प्रावधान हैं, उनमें अनुच्छेद 25 से लेकर 30 तक किसी भी धार्मिक संस्था की स्वतंत्रतामें हस्तक्षेप नहीं किया जा रहा है। न ही इसमें संविधान के किसी अनुच्छेद का उल्लंघन किया गया है। यह बिल किसी भी धार्मिक संस्था की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप नहीं करेगा।मुस्लिम समाज को सीए क़ानून की तरह विपक्ष व धार्मिक मुस्लिम नेताओं द्वारा गुमराह किया जा रहा है।
वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद के गठन में सीमित विविधता, मुतवल्लियों द्वारा शक्ति का दुरुपयोग, मुतवल्लियों द्वारा संपत्तियों के उचित खातों का रखरखाव न करना, स्थानीय राजस्व अधिकारियों के साथ प्रभावी समन्वय की कमी, अतिक्रमण हटाने के मुद्दे, वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण और शीर्षक की घोषणा, संपत्तियों का दावा करने के लिए वक्फ बोर्डों को व्यापक शक्ति जिसके परिणामस्वरूप विवाद और मुकदमेबाजी होती है। इसमें सुधार के लिए वक्फ बोर्ड से संबंधित मुद्दों पर विचार और सुझाव निम्नलिखित हैं-
1. वक्फ संपत्तियों की अपरिवर्तनीयता: “एक बार वक्फ, हमेशा वक्फ” के सिद्धांत के कारण कईविवाद और दावे सामने आए हैं। इनमें से कुछ, जैसे बेट द्वारका में दो द्वीपों पर दावा, अदालतों द्वारा उलझन भरा माना गया है। इसलिए इसमें संशोधन आवश्यक है।
2. मुकदमेबाजी और कुप्रबंधन: वक्फ अधिनियम, 1995 और इसके 2013 के संशोधन के कारण अतिक्रमण, कुप्रबंधन, स्वामित्व विवाद और पंजीकरण तथा सर्वेक्षण में देरी जैसी समस्याएं उत्पन्न हुई हैं।इसलिए इसमें संशोधन आवश्यक है।
3. कोई न्यायिक निगरानी नहीं: न्यायाधिकरण के निर्णयों पर कोई न्यायिक निगरानी नहीं है। उच्च न्यायिक निकाय में अपील करने की संभावना के बिना, न्यायाधिकरण द्वारा लिए गए निर्णय वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही का आभाव हैं। इसलिए इसमें संशोधन आवश्यक है।
4. असंतोषजनक सर्वेक्षण कार्य: सर्वेक्षण आयुक्त द्वारा वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण का कार्य असंतोषजनक पाया गया है। सर्वेक्षण पूरा न होने का मुख्य मुद्दा सर्वेक्षण आयुक्तों की सर्वेक्षण कार्य में विशेषज्ञता का अभाव है। इसके अलावा, वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण के काम को सुचारू रूप से चलानेके लिए राजस्व विभाग के साथ सर्वेक्षण रिपोर्टों के समन्वय के मुद्दे हैं। इसलिए इसमें संशोधन आवश्यक है।
5. प्रावधानों का दुरुपयोग: यह देखा गया कि राज्य वक्फ बोर्डों ने अधिनियम के कुछ प्रावधानों का दुरुपयोग किया है, जिससे समुदायों के बीच वैमनस्य और असंतोष पैदा हुआ है। संपत्ति को वक्फ संपत्ति के रूप में अधिगृहीत करने और घोषित करने के लिए वक्फ अधिनियम की धारा 40 का व्यापक रूप से दुरुपयोग किया गया है। इससे न केवल बड़ी संख्या में मुकदमेबाजी हुई है, बल्कि समुदायों के बीच वैमनस्य भी पैदा हुआ है। इसलिए इसमें संशोधन आवश्यक है।
6. संवैधानिक वैधता: वक्फ अधिनियम देश के केवल एक धर्म की धार्मिक संपत्तियों के लिए एकविशेष अधिनियम है, जबकि किसी अन्य धर्म के लिए ऐसा कोई कानून मौजूद नहीं है। दरअसल, इसी सवाल को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई है। इसलिए इसमें संशोधन आवश्यक है।
7. उच्च न्यायालय ने वक्फ की संवैधानिक वैधता से जुड़ी इस याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। एक समय में, मुसलमानों द्वारा वक्फ बोर्ड को दान देने की प्रथा धार्मिक बंदोबस्ती और धर्मार्थ नींव के समृद्ध इतिहास में निहित रही होगी, लेकिन क्या अभी भी इसकी आवश्यकता है। इसलिए संयुक्त संसदीय समिति को इसमें संशोधन के आलावा इस कानून को समाप्त करने पर भी विचार करना चाहिए।
आज़ादी के बाद पाकिस्तान चले गये मुस्लिमों की संपत्ति जो पाकिस्तान से आये हिंदुओं को मिलनी चाहिए थी, उसे उस समय की सरकार ने हिंदुओं को न देकर वर्ष 1954 में वक्फ एक्ट बना दिया था और पाकिस्तान जाने वाले मुस्लिमों की भारत में रह गई संपत्ति को वक़्फ़ बोर्ड को दे दी गई थी। इसके बाद वर्ष 1995 में एक नया वक्फ बोर्ड अधिनियम बना। इसके तहत हर राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में वक्फ बोर्ड बनाने की अनुमति दी गई। बाद में वर्ष 2013 में यूपीए सरकार ने वर्ष 1995 के मूल वक्फ एक्ट में बदलाव करके बोर्ड की शक्तियों में इजाफा किया था।
वक्फ एक्ट 1995 का सेक्शन 3 (आर) के मुताबिक, अगर कोई संपत्ति, किसी भी उद्देश्य के लिए मुस्लिमकानून के मुताबिक पाक (पवित्र), मजहबी (धार्मिक) या (चेरिटेबल) परोपरकारी मान लिया जाए तो वह वक्फ की संपत्ति हो जाएगी। वक्फ एक्ट 1995 का आर्टिकल 40 कहता है कि यह जमीन किसकी है, यह वक्फ का सर्वेयर और वक्फ बोर्ड तय करेगा। अधिनियम की धारा 27 बोर्ड को यह जानकारी एकत्र करने काअधिकार देती है कि क्या संबंधित संपत्ति वक्फ है। धारा 27 (1) कहती है कि इस संबंध में बोर्ड का निर्णय “अंतिम” होगा जब तक कि इसे सिविल कोर्ट द्वारा रद्द या संशोधित नहीं किया जाता। इसप्रकार वर्ष 2013 में संशोधन पेश किए गए, जिससे वक्फ को इससे संबंधित मामलों में असीमित और पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त हुई।
वर्ष 2022 में तमिलनाडु के वक्फ बोर्ड ने हिंदुओं के बसाए पूरे थिरुचेंदुरई गांव पर वक्फ होने का दावाठोंक दिया था। देश भर में 8.7 लाख से अधिक संपत्तियां, कुल मिलाकर लगभग 9.4 लाख एकड़, वक्फ बोर्ड के अधिकार क्षेत्र में हैं।
प्रस्तावित संशोधनों के तहत, वक्फ बोर्ड के दावों का अनिवार्य रूप से वेरिफिकेशन किया जाएगा। ऐसा ही एक अनिवार्य वेरिफिकेशन उन संपत्तियों के लिए भी प्रस्तावित किया गया है, जिनके लिए वक्फ बोर्ड और व्यक्तिगत मालिकों ने दावे और जवाबी दावे किए हैं।
वक्फ संपत्ति का उपयोग सिर्फ उन धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए, जिनके लिए पूर्वजों ने दान किया था, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। वक्फ एक्ट कहता है कि 30 सालों से ज्यादा वक्फ की दौलत लीज पर नहीं ली जा सकती, लेकिन इसे फॉलो नहीं किया जा रहा है। साथ ही बदले में वक्फ को बहुत नॉमिनल किराया मिलता है, जबकि नियम से ये रेंट बाजार के हिसाब का होना चाहिए।
विडंबना यह है कि वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण करने वालों, अवैध कब्जा करने वालों और हड़पने वालों की सूची में कई बड़ी हस्तियों और व्यक्तियों के नाम शामिल हैं। इन नामों में ‘जमात ए उलेमा हिंद’ वएआईएमआईएम (AIMIM) चीफ असदुद्दीन ओवैसी का नाम भी शामिल होना बताया जा रहा है।
यूपीए-2 सरकार के सत्ता से बाहर होने से ठीक पहले देश की राजधानी दिल्ली में 123 प्रमुख संपत्तियों को गैर-अधिसूचित और दिल्ली वक्फ बोर्ड को हस्तांतरित कर दिया था। इनमें से अधिकांश संपत्तियां उच्च बाजार मूल्य की थीं, जिनमें कॉनॉट प्लेस, मथुरा रोड, लोधी रोड, मानसिंह रोड, पंडारा रोड, अशोका रोड, जनपथ, संसद भवन, करोल बाग, सदर बाजार, दरियागंज और जंगपुरा शामिल हैं। इनमें से अधिकांश संपत्तियों में एक मस्जिद थी, लेकिन कुछ में दुकानें और आवास भी थे,
इस्लामिक देश तुर्की, लीबिया, मिस्र, सूडान, लेबनान, सीरिया, जॉर्डन, ट्यूनीशिया और इराक में वक्फ नहीं हैं। जबकि भारत में वक्फ संपत्तियां वक्फ अधिनियम, 1995 द्वारा शासित हैं। हालाँकि, मुसलमान वक्फ वैधीकरण अधिनियम 1913 में ही लागू हो गया था। 1923 में, मुसलमान वक्फ अधिनियम लागू हुआ। 1923 के अधिनियम के तहत, वक्फों के प्रबंधन की निगरानी सिविल अदालतें करती थीं। समुदाय की एकमात्र भूमिका इन व्यक्तिगत वक्फों के लिए मुतवल्लियों या प्रबंधकों की नियुक्ति करना थी। स्वतंत्रता के बाद, मुस्लिम वक्फ अधिनियम, 1954 को अधिनियमित किया गया और बाद में वक्फ अधिनियम, 1995 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया। 2013 में, वक्फ संपत्ति पर अतिक्रमण के लिए दो साल की जेल की सजा लागू करने और वक्फ संपत्ति की बिक्री, उपहार, विनिमय, बंधक या हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून में संशोधन किया गया था। विडंबना यह है कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर ये शक्तियाँ धीरे-धीरे राज्य से छीन ली गई हैं।
भारत में वक्फ के संबंध में मुस्लिम समुदाय के हाथों में न्यायिक शक्तियों का लगातार जमा होना और तुष्टिकरण इस प्रकार अलग-थलग मुद्दे नहीं हैं, वे एक ‘धर्मनिरपेक्ष’ गणराज्य में अन्य समुदायों की कीमत पर वोट बैंक बनाने का एक अभिन्न अंग थे। 1954 के अधिनियम की धारा 13 में ऐसे बोर्डों में नियुक्ति के लिए अयोग्यताएँ निर्धारित की गई थीं और सबसे पहली अयोग्यता [धारा 13 (ए)] यह थी कि किसी व्यक्ति को नियुक्त नहीं किया जा सकता यदि “वह मुस्लिम नहीं है और उसकी आयु इक्कीस वर्ष से कम है।” इन बोर्डों में महिलाओं की नियुक्ति के लिए कोई प्रावधान नहीं थे।
अधिनियम ने अलग-अलग वक्फ न्यायाधिकरण बनाए, जिन्हें वक्फ की संपत्तियों से संबंधित विवादों पर निर्णय लेना था। अधिनियम की धारा 83(7) ने न्यायाधिकरण के निर्णय को विवाद में पक्षों पर “अंतिम” और “बाध्यकारी” बना दिया। धारा 83(8) में निर्दिष्ट किया गया है कि न्यायाधिकरण के निर्णय के विरुद्ध कोई अपील नहीं की जा सकती। अधिनियम की धारा 6 के तहत वक्फ बोर्डों के निर्णय अंतिम माने जाएंगे तथा बोर्ड द्वारा वक्फ की सूची प्रकाशित किए जाने के एक वर्ष के बाद न्यायाधिकरण में अपील नहीं की जा सकेगी।
1923 और 1954 और 1995 के अधिनियमों में यही परिभाषा थी। 2013 के संशोधन में, इसे बदलकर “किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी भी चल या अचल संपत्ति को मुस्लिम कानून द्वारा पवित्र, धार्मिक या धर्मार्थ के रूप में मान्यता प्राप्त किसी भी उद्देश्य के लिए स्थायी रूप से समर्पित करना” कर दिया गया। वस्तुतः, किसी भी समुदाय की कोई भी संपत्ति अब वक्फ कानून के दायरे में आ गई। 2013 तक, वक्फ को “इस्लाम को मानने वाले व्यक्ति द्वारा स्थायी समर्पण” के रूप में परिभाषित किया गया था।
2013 में 1995 के अधिनियम की धारा 6 में संशोधन किया गया, जिसमें “इसमें रुचि रखने वाले किसी भी व्यक्ति” की जगह “पीड़ित व्यक्ति” शब्द को शामिल किया गया। यह परिवर्तन बहुत महत्वपूर्ण था और वक्फ की परिभाषा को विस्तारित करने का एक अभिन्न अंग था, ताकि गैर-मुस्लिमों को इसके दायरे में शामिल किया जा सके। तब तक बहुत सी संपत्तियां जो मूल रूप से वक्फ नहीं थीं, उन्हें अपने कब्जे में ले लिया गया था और उन्हें वक्फ भूमि में बदल दिया गया था, इसलिए यह परिवर्तन अनिवार्य हो गया।इसलिए वक्फ अधिनियम, 1995 स्पष्टरूप से सांप्रदायिक, भेदभावपूर्ण, असंवैधानिक है।
वक्फ संशोधनों से किसी मस्जिद, मदरसे, खानकाह, दरगाह या कब्रिस्तान किसी की कोई जमीन नहीं जाएगी। मुस्लिम समाज को यह बात समझनी चाहिए कि केंद्र का वक़्फ़ क़ानून में संशोधन के प्रस्तावित बिल मुस्लिमसमाज के हित में हैं।
पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन के प्रतिनिधि संयुक्त संसदीय समिति के सामने अपनी बात रखना चाहते है, इसलिए हम संयुक्त संसदीय समिति से अनुरोध करते है कि इसके लिए हमें उपयुक्त समय देने का कष्ट करे।
संबंधित मामलों में असीमित और पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त हुई।
वर्ष 2022 में तमिलनाडु के वक्फ बोर्ड ने हिंदुओं के बसाए पूरे थिरुचेंदुरई गांव पर वक्फ होने का दावाठोंक दिया था। देश भर में 8.7 लाख से अधिक संपत्तियां, कुल मिलाकर लगभग 9.4 लाख एकड़, वक्फ बोर्ड के अधिकार क्षेत्र में हैं।
प्रस्तावित संशोधनों के तहत, वक्फ बोर्ड के दावों का अनिवार्य रूप से वेरिफिकेशन किया जाएगा। ऐसा ही एक अनिवार्य वेरिफिकेशन उन संपत्तियों के लिए भी प्रस्तावित किया गया है, जिनके लिए वक्फ बोर्ड और व्यक्तिगत मालिकों ने दावे और जवाबी दावे किए हैं।
वक्फ संपत्ति का उपयोग सिर्फ उन धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए, जिनके लिए पूर्वजों ने दान किया था, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। वक्फ एक्ट कहता है कि 30 सालों से ज्यादा वक्फ की दौलत लीज पर नहीं ली जा सकती, लेकिन इसे फॉलो नहीं किया जा रहा है। साथ ही बदले में वक्फ को बहुत नॉमिनल किराया मिलता है, जबकि नियम से ये रेंट बाजार के हिसाब का होना चाहिए।
विडंबना यह है कि वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण करने वालों, अवैध कब्जा करने वालों और हड़पने वालों की सूची में कई बड़ी हस्तियों और व्यक्तियों के नाम शामिल हैं। इन नामों में ‘जमात ए उलेमा हिंद’ वएआईएमआईएम (AIMIM) चीफ असदुद्दीन ओवैसी का नाम भी शामिल होना बताया जा रहा है।
यूपीए-2 सरकार के सत्ता से बाहर होने से ठीक पहले देश की राजधानी दिल्ली में 123 प्रमुख संपत्तियों को गैर-अधिसूचित और दिल्ली वक्फ बोर्ड को हस्तांतरित कर दिया था। इनमें से अधिकांश संपत्तियां उच्च बाजार मूल्य की थीं, जिनमें कॉनॉट प्लेस, मथुरा रोड, लोधी रोड, मानसिंह रोड, पंडारा रोड, अशोका रोड, जनपथ, संसद भवन, करोल बाग, सदर बाजार, दरियागंज और जंगपुरा शामिल हैं। इनमें से अधिकांश संपत्तियों में एक मस्जिद थी, लेकिन कुछ में दुकानें और आवास भी थे,
इस्लामिक देश तुर्की, लीबिया, मिस्र, सूडान, लेबनान, सीरिया, जॉर्डन, ट्यूनीशिया और इराक में वक्फ नहीं हैं। जबकि भारत में वक्फ संपत्तियां वक्फ अधिनियम, 1995 द्वारा शासित हैं। हालाँकि, मुसलमान वक्फ वैधीकरण अधिनियम 1913 में ही लागू हो गया था। 1923 में, मुसलमान वक्फ अधिनियम लागू हुआ। 1923 के अधिनियम के तहत, वक्फों के प्रबंधन की निगरानी सिविल अदालतें करती थीं। समुदाय की एकमात्र भूमिका इन व्यक्तिगत वक्फों के लिए मुतवल्लियों या प्रबंधकों की नियुक्ति करना थी। स्वतंत्रता के बाद, मुस्लिम वक्फ अधिनियम, 1954 को अधिनियमित किया गया और बाद में वक्फ अधिनियम, 1995 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया। 2013 में, वक्फ संपत्ति पर अतिक्रमण के लिए दो साल की जेल की सजा लागू करने और वक्फ संपत्ति की बिक्री, उपहार, विनिमय, बंधक या हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून में संशोधन किया गया था। विडंबना यह है कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर ये शक्तियाँ धीरे-धीरे राज्य से छीन ली गई हैं।
भारत में वक्फ के संबंध में मुस्लिम समुदाय के हाथों में न्यायिक शक्तियों का लगातार जमा होना और तुष्टिकरण इस प्रकार अलग-थलग मुद्दे नहीं हैं, वे एक ‘धर्मनिरपेक्ष’ गणराज्य में अन्य समुदायों की कीमत पर वोट बैंक बनाने का एक अभिन्न अंग थे। 1954 के अधिनियम की धारा 13 में ऐसे बोर्डों में नियुक्ति के लिए अयोग्यताएँ निर्धारित की गई थीं और सबसे पहली अयोग्यता [धारा 13 (ए)] यह थी कि किसी व्यक्ति को नियुक्त नहीं किया जा सकता यदि “वह मुस्लिम नहीं है और उसकी आयु इक्कीस वर्ष से कम है।” इन बोर्डों में महिलाओं की नियुक्ति के लिए कोई प्रावधान नहीं थे।
अधिनियम ने अलग-अलग वक्फ न्यायाधिकरण बनाए, जिन्हें वक्फ की संपत्तियों से संबंधित विवादों पर निर्णय लेना था। अधिनियम की धारा 83(7) ने न्यायाधिकरण के निर्णय को विवाद में पक्षों पर “अंतिम” और “बाध्यकारी” बना दिया। धारा 83(8) में निर्दिष्ट किया गया है कि न्यायाधिकरण के निर्णय के विरुद्ध कोई अपील नहीं की जा सकती। अधिनियम की धारा 6 के तहत वक्फ बोर्डों के निर्णय अंतिम माने जाएंगे तथा बोर्ड द्वारा वक्फ की सूची प्रकाशित किए जाने के एक वर्ष के बाद न्यायाधिकरण में अपील नहीं की जा सकेगी।
1923 और 1954 और 1995 के अधिनियमों में यही परिभाषा थी। 2013 के संशोधन में, इसे बदलकर “किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी भी चल या अचल संपत्ति को मुस्लिम कानून द्वारा पवित्र, धार्मिक या धर्मार्थ के रूप में मान्यता प्राप्त किसी भी उद्देश्य के लिए स्थायी रूप से समर्पित करना” कर दिया गया। वस्तुतः, किसी भी समुदाय की कोई भी संपत्ति अब वक्फ कानून के दायरे में आ गई। 2013 तक, वक्फ को “इस्लाम को मानने वाले व्यक्ति द्वारा स्थायी समर्पण” के रूप में परिभाषित किया गया था।
2013 में 1995 के अधिनियम की धारा 6 में संशोधन किया गया, जिसमें “इसमें रुचि रखने वाले किसी भी व्यक्ति” की जगह “पीड़ित व्यक्ति” शब्द को शामिल किया गया। यह परिवर्तन बहुत महत्वपूर्ण था और वक्फ की परिभाषा को विस्तारित करने का एक अभिन्न अंग था, ताकि गैर-मुस्लिमों को इसके दायरे में शामिल किया जा सके। तब तक बहुत सी संपत्तियां जो मूल रूप से वक्फ नहीं थीं, उन्हें अपने कब्जे में ले लिया गया था और उन्हें वक्फ भूमि में बदल दिया गया था, इसलिए यह परिवर्तन अनिवार्य हो गया।इसलिए वक्फ अधिनियम, 1995 स्पष्टरूप से सांप्रदायिक, भेदभावपूर्ण, असंवैधानिक है।
वक्फ संशोधनों से किसी मस्जिद, मदरसे, खानकाह, दरगाह या कब्रिस्तान किसी की कोई जमीन नहीं जाएगी। मुस्लिम समाज को यह बात समझनी चाहिए कि केंद्र का वक़्फ़ क़ानून में संशोधन के प्रस्तावित बिल मुस्लिमसमाज के हित में हैं।
पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन के प्रतिनिधि संयुक्त संसदीय समिति के सामने अपनी बात रखना चाहते है, इसलिए हम संयुक्त संसदीय समिति से अनुरोध करते है कि इसके लिए हमें उपयुक्त समय देने का कष्ट करे।