हितेश त्यागी साखन
हरिद्वार की राजनीति के तीन ध्रुव—प्रणव सिंह, उमेश कुमार और त्रिवेंद्र सिंह रावत—जिनके इर्द-गिर्द यह पूरा खेल घूमता है। लेकिन ये खेल आखिर है किसका? जनता की सेवा का, या फिर ब्राह्मण-ठाकुरवाद के नाम पर सत्ता की बंदरबांट का?
उमेश कुमार, जिन्हें कभी वरिष्ठ पत्रकार के रूप में देखा गया,सरकार गिराने में देखा गया,कई दिग्गज नेताओं को ठीक करते देखा गया,,,,लेकिन आज राजनीति के शतरंज पर खुद एक मोहरे बन गए हैं। लगता है, हरिद्वार की ज़मीन पर खड़े होकर उन्होंने यह तय कर लिया है कि अब वह खुद को जनता से बड़ा मानने लगे हैं। लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजों ने उनकी गलतफहमी का इलाज कर दिया। हरिद्वार और उत्तराखंड की जनता ने उन्हें उनकी जगह दिखा दी—ज़मीन पर। पर लगता है, ये सबक सीखने की उनकी कोई मंशा नहीं है।
और अब बात त्रिवेंद्र सिंह रावत की। क्या उनकी राजनीति का मकसद केवल उमेश कुमार से निजी खुन्नस निकालना है? या ये कोई बड़ी साजिश का हिस्सा है? हाल ही में वायरल हुए ऑडियो में प्रणव सिंह ने त्रिवेंद्र का नाम लिया हैं, क्या वह महज संयोग है? ये सवाल केवल जनता के हैं, लेकिन जवाब केवल त्रिवेंद्र के पास है।
इस पूरे तमाशे में प्रणव सिंह का रोल भी दिलचस्प है। ऑडियो में उनके शब्द, त्रिवेंद्र पर उनके निशाने, —ये सब क्या है? महज व्यक्तिगत रंजिश या किसी बड़े राजनीतिक खेल की बिसात?
सच तो यह है कि हरिद्वार की राजनीति, जो कभी पवित्र गंगा के किनारे से प्रेरणा लेकर जनता की सेवा के लिए जानी जाती थी, अब व्यक्तिगत झगड़ों और जातिवादी ध्रुवीकरण के गंदे खेल में सिमटकर रह गई है।
या यूं कहें, की हरिद्वार की राजनीति में सब अपने-अपने खेल में लगे हैं। उमेश कुमार को ये याद रखना चाहिए कि पत्रकारिता की कुर्सी छोड़कर राजनीति के मैदान में उतरने का मतलब ये नहीं कि जनता आपकी चुपचाप जय-जयकार करेगी। और त्रिवेंद्र, अगर आपकी राजनीति का मकसद केवल बदला लेना है, तो यह आपको भी कहां ले जाएगा, ये सोचने की जरूरत है।
हरिद्वार की जनता को समझना होगा कि ये तीनों नाम चाहे जितने बड़े हों, असली ताकत उनके वोट में है। उन्हें फैसला करना होगा कि ये खेल कब खत्म होगा।
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