भारत में इस्लामिक बर्बर विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा तोड़े गए सभी एतिहासिक हिन्दुओं के पूजा स्थलों पर “उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991” लागू नहीं होता है- अशोक बालियान, चेयरमैन, पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन
उत्तरप्रदेश के जनपद सम्भल में कुछ मुस्लिम राजनैतिक व धार्मिक नेता मुस्लिम समाज को ग़लत जानकारी दे रहे है और ग़लत जानकारी के आधार पर उनको भड़का भी रहे है। भारत में एक कालखंड में इस्लामिक व् मजहबी हमलावरों ने हिन्दुओं के मुख्य मन्दिरों को ध्वंस किया था और उन्ही के अवशेषों पर मस्जिद खड़ी कर दी थी।इन्ही स्थलों को वापिस लेने के लिए हिन्दू पक्ष कोर्ट गए है।
जनपद सम्भल में कोर्ट के आदेश के बाद जामा मस्जिद के सर्वे के लिए एक टीम सुबह साढ़े 7 बजे मस्जिद पहुंची थी और इसके लिए इलाके में पुलिस बल की तैनाती की गई थी, लेकिन सुरक्षा के लिए खड़ी पुलिस पर इलाके की उग्र भीड़ ने पथराव किया था,गाड़ियां जला दी थी,उस समय सड़कों पर चेहरा ढके सिर्फ युवाओं की उग्र भीड़ की गूंज थी। स्क्रीन पर दिख रही तस्वीरें सबकुछ बयां कर रही हैं।इस हिंसक घटना में जिन युवाओं की जान गयी है,उसका सभी को दुःख है।लेकिन इन युवाओं की जान जाने के लिए उनको भडकाने वाले भी जिम्मेदार होने चाहिए। मुख्य मंत्री योगी ने हिंसा करने वालों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही के आदेश दिए है।
उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 कानून में सात धाराएँ हैं। इस अधिनियम के शुरुआती खंड में कानून का उद्देश्य किसी भी उपासना स्थल के धर्मांतरण पर रोक लगाना और किसी भी उपासना स्थल के धार्मिक चरित्र को 15 अगस्त, 1947 के अनुसार बनाए रखना बताया गया है। इस अधिनियम का यह खंड भारत के हिन्दुओं को अपने पूजा स्थलों को पुनः प्राप्त करने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है। हिन्दुओं के धार्मिक स्थलों को तोड़ने का कार्य विदेशी इस्लामिक आक्रमणकारियों के कार्यकाल में हुआ है, जिस अवधि का 15 अगस्त, 1947 की कट-ऑफ तिथि से कोई संबंध नहीं है, इसलिए भारत की स्वतंत्रता की तिथि को कट-ऑफ तिथि मानने का कोई औचित्य नहीं है।
लेकिन इस अधिनियम की धारा 4 (3) (ए) किसी भी पूजा स्थल को अधिनियम के प्रभाव से छूट देती है, जो एक प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक या पुरातत्व स्थल है या प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के अंतर्गत आता है। “उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991” “धार्मिक चरित्र” को परिभाषित नहीं करता है, इसलिए हिन्दुओं के तोड़े गए उपासना स्थलों के धार्मिक चरित्र पर विवाद को सुनने का अधिकार व् उस पर निर्णय करने का अधिकार कोर्ट को है।
अगर किसी पूजा स्थल के वास्तविक धार्मिक चरित्र को संवैधानिक साधनों और साक्ष्य प्रक्रियाओं के माध्यम से उचित संस्था या न्यायालय द्वारा निर्धारित किया जाता है, तो कोई सांप्रदायिक वैमनस्य नहीं होना चाहिए। भारत में हिन्दू व् मुसलमानों की पहचान उनके महान पूर्वजों से हैं।और हिंदू व मुस्लिमों के पूर्वज एक ही है।
भारतीय मुसलमानों को यह बात समझनी चाहिए कि उनके पूर्वज इस्लाम धर्म स्वीकार करने के पूर्व हिन्दू ही थे।और जिनमे से अधिकतर को जबरन इस्लाम धर्म स्वीकार करना पड़ा था। इनके पुरखे हिन्दू धर्म में अगाध निष्ठा रखते थे। इनकी रगों में हिन्दू संस्कृति का ही रक्त प्रवाहित है। इसलिए यह आवश्यक है कि भारतवासी यह जाने कि भारतीय मुसलमानों के पूर्वज जो हिन्दू थे, वे किन परिस्थितियों में मुसलमान हुये, तभी उनके मुसलमान होने के कारण का उन्हें पता चल सकेगा और वर्तमान में उन्हें भारत और भारतीयता के सम्बन्ध में निर्णय लेने में सहूलियत होगी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस्लामिक हमलावरों ने भारत में हिन्दुओं के हजारों मन्दिरों को ध्वंस किया था।और जबरन धर्मांतरण किया था।
यूरोप के एक देश स्पेन में जबरन इस्लाम स्वीकार करने वाली जनता ने अपने इतिहास से सबक लेकर अपने इतिहास की भूलों को सुधारा था, क्योकि सन 711 में विदेशी इस्लामिक आक्रमणकारियों ने स्पेन पर जबरन कब्जा कर वहां की जनता को इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर किया था। इसके सैकड़ों वर्षों बाद सन 1492 को स्पेन के सबसे ताकतवर मुस्लिम साम्राज्य को वहां के मूल लोगों के राजपरिवार ने उखाड़ दिया था। और 500 से ज्यादा मस्जिदों को तोड़ पुन: चर्च बना दिया गया था। यह वें मस्जिदें थीं, जिन्हें चर्च तोड़कर बनाया गया था। इसके साथ ही देश की वह जनता जिन्हें जबरन इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया था, वे लगभग साढ़े सात सौ वर्ष बाद घर वापिसी कर अपने ईसाई धर्म में वापिस आ गए थे। जिन लोगों ने इस्लाम धर्म नहीं छोड़ा, ऐसे लोगों को स्पेन से देश निकाला दे दिया गया था।
हमारी मुस्लिम समाज से अपील है कि सभी एतिहासिक मन्दिरों के विषय में मुस्लिम समाज की तरफ से प्रस्ताव आना चाहिए कि पूर्व में इस्लामिक बर्बर विदेशी आक्रमणकारियों ने जो ऐतिहासिक पूजा स्थलों को तोडा गया था, उनका समाधान होना चाहिए। भारत में हिन्दू समाज उन्ही मुख्य उपासना स्थलों को वापिस चाहता है, जिन्हें तोड़कर मस्जिद बनाई गयी थी।