दुनिया के मुस्लिम समुदाय को यह सच जानना चाहिए कि इज़राइल यहूदियों की 3 हज़ार वर्ष पहले से मातृ भूमि है-अशोक बालियान, चेयरमैन, पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन
इज़राइल और फिलिस्तीन के बीच शुरु हुआ विवाद अब तेजी से जंग में तब्दील होता जा रहा है। इजराइल के यहूदियों व् फलस्तीन के मुस्लिमों के बीच विवाद की जड़ काफी पुरानी हैं। इज़राइल और फिलिस्तीन मूलरूप से यहूदियों की ही धरती है। इस ऐतिहासिक तथ्य से मुस्लिम जनता अनजान है, वह समझती है कि फ़िलिस्तीन मुस्लिमों की भूमि है।
यहूदी मान्यता के अनुसार, अब्राहम की संतान की पीढ़ियों ने आगे चलकर यहूदी देश बनाया था, जिसका प्राचीन नाम लैंड ऑफ़ इज़रायल था।यहूदी धर्म दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है।
इस धर्म का इतिहास लगभग 3,000 वर्ष पुराना है। और लगभग 2200 साल पहले पहला यहूदी राज्य अस्तित्व में आया था।
इज़रायल के राजा किंग सोलोमन ने करीब 1,000 ईसा पूर्व में यहां एक भव्य मंदिर बनवाया था, लेकिन एक समय बेबिलोनियन सभ्यता के लोगों ने इस मंदिर को नष्ट कर दिया था।पांच सदी बाद, 516 ईसा पूर्व में यहूदियों ने दोबारा इसी जगह पर एक और मंदिर बनाया, इसके बाद रोमन आये और सन् 70 में रोमन्स ने इसे तोड़ दिया था। इसप्रकार यहूदियों का यह धार्मिक स्थान बनता गया और टूटता गया था।
दूसरी तरफ मुस्लिमों की मान्यता के अनुसार सन् 621 के एक रात पैगंबर मुहम्मद साहब एक उड़ने वाले घोड़े पर बैठकर मक्का से जेरुसलम आए थे।सन् 632 में पैगंबर मुहम्मद साहब की मृत्यु हुई थी।और इसके चार साल बाद पैग़म्बर के उतराधिकारी अबू बक्र ने फ़िलिस्तीन पर हमले की योजना बनायी और सन् 636 में इस्लामिक हमलावरो ने सीरिया को जीतकर जेरुसलम पर हमला कर उस पर कब्जा कर लिया था।उस समय यहां बैजेन्टाइन साम्राज्य का शासन था।
इस बाद उम्मैयद खलीफ़ाओं ने जेरुसलम में अल अक्सा नाम से एक भव्य मस्जिद बनवाई थी।ये दोनों इमारतें जेरुसलम में उसी आयताकार कंपाउंड के भीतर है, जिसे यहूदी अपने प्राचीन मंदिरों का स्थान मानते हैं।
जेरुसलम में एक तीसरा पक्ष ईसाई भी है और उनकी मान्यता के अनुसार ईसा मसीह ने इसी शहर में अपना उपदेश दिया था और उन्हें यहीं सूली पर चढ़ाया गया था। ईसाई ये भी मानते हैं कि एक रोज़ ईसा वापस दुनिया में लौटेंगे और उनकी इस सेकेंड कमिंग में जेरुसलम का अहम किरदार होगा।
The Land of Israel A Text-book on the Physical and by Robert Laird Stewart 1899 के पेज 1 के अनुसार फिलिस्तीन दक्षिणी सीरिया के उस हिस्से का परिचित नाम है, जिस पर स्थायी रूप से इज़राइल की जनजातियों का कब्ज़ा था। यह नाम, जैसा कि मूल रूप से बाइबिल और प्राचीन इतिहास में इस्तेमाल किया गया था, पलिश्तियों की भूमि तक सीमित था। The Land of Israel A Text-book on the Physical and by Robert Laird Stewart 1899 के पेज 41 केअनुसार रोमन शासन के समय लेबनान के दक्षिण का पूरा देश तीन प्रांतों में विभाजित था, अर्थात: गलील, सामरिया और यहूदिया में विभाजित था।
Jerusalem the Holy A Brief History of Ancient Jerusalem by Edwin Sherman Wallace 1898 के पेज 334 के अनुसार सन् 636 में इस्लामिक हमलावरों के आक्रमण के बाद यरुशलम एक मुस्लिम शहर बन गया था। यदि यहूदियों ने इनकार किया,तो तलवार के फैसले का सहारा लिया।
इसके बाद इस्लामिक शासन ने वर्ष 999 में ईसाइयों और यहूदियों के पास इस्लाम अपनाने या अपनी सारी संपत्ति खोने का विकल्प दिया था, और जो लोग बाद वाला विकल्प चुनते थे, उन्हें अक्सर हिंसक मौत का सामना करना पड़ता था।
सन 1099 में ईसाइयों और मुस्लिमों में इस भूमि को लेकर धर्मयुद्ध शुरू हुआ था और इस फर्स्ट क्रूसेड के तहत ईसाइयों ने जेरुसलम को जीत लिया था, लेकिन सन 1187 में मुस्लिमों ने जेरुसलम पर पुन: कब्जा कर लिया था।
इसके बाद प्रथम विश्व युद्ध से पहले फिलिस्तीन पर ऑटोमन साम्राज्य का कब्जा था, लेकिन युद्ध में उसकी हार के बाद यह क्षेत्र ब्रिटेन के कब्जे में आ गया था।
यहूदी पूरे यूरोप में बिखरे हुए थे।ब्रिटेन ने यहां यहूदी लोगों को उनके देश में पुन: बसाना शुरू कर दिया था, जो सदियों से अपने देश से बेदखल कर दिए थे।द्वितीय विश्व युद्ध में भी हिटलर के शासन के अंतर्गत पूरे यूरोप में भयंकर स्तर पर यहूदियों का नरसंहार हुआ था।
इजराइल और फलस्तीन के बीच टकराव की शुरुआत यहूदियों व अरब जगत के लोगों के लिए स्वतंत्र राष्ट्र की स्थापना के संघर्ष से हुई थी।सन 1947 में संयुक्त राष्ट्र ने फलस्तीन को दो हिस्सों में बांटा, जिसमे यहूदियों के लिए इजराइल और अरब जगत के लोगों के लिए फलस्तीन देश बना था।
इस फैसले को इजरायल ने स्वीकार कर लिया था लेकिन फिलिस्तीन ने इस फैसले को स्वीकार नही किया था और इस्राइल के पड़ोसी देशों (इजिप्ट, सीरिया, इराक और जॉर्डन) ने उस पर हमला बोल दिया था। इस युद्ध में इस्राइल ने अपना बचाव करते हुए इन चारों देशों को हरा दिया था।
इसके बाद सन् 1967 में एक बार फिर इन देशों ने इजरायल पर हमला किया,लेकिन इजरायल ने छह दिन में ही उन्हें हरा दिया था और वेस्ट बैंक, गाजा और पूर्वी जेरूसलम पर कब्जा कर लिया था।
इस युद्ध के बाद से ही वेस्ट बैंक और पूर्वी जेरूसलम पर इजरायल का कब्जा है, जबकि गाजा के कुछ हिस्से को उसने लौटा दिया है।ज्यादातर फिलिस्तीनी गाजा और वेस्ट बैंक में रहते हैं।
पिछले कुछ समय से फिलिस्तीनियों में पूर्वी जेरूसलम से कुछ फिलिस्तीनी परिवारों को बेदखल किए जाने को लेकर रोष पनप रहा था। इसी के चलते फिलिस्तीन का चरमपंथी संगठन हमास गाजा पट्टी से इस्राइल पर खतरनाक रॉकेटों से हमले करता रहता है।
हमास चार्टर एक यहूदी विरोधी दस्तावेज है,जो पूरी तरह से उनके धर्म के आधार पर यहूदियों की हत्या का समर्थन करता है।
10 मई 2021 को इज़रायल के लोग ‘जरुसलम डे’ मना रहे थे,इस दिन इज़रायल के लोगों पर फिलिस्तीनी लोगों ने पत्थरबाज़ी कर दी थीं। इसके बाद इज़रायली फोर्स मस्ज़िद कंपाउंड में घुस गई और इज़रायली फोर्सेज़ ने अल-अक्सा को खाली करवाकर उसके दरवाज़े बंद करवा दिए थे।
इसके बाद हमास ने इज़रायल पर रॉकेट दागनें शुरू कर दिए थे और जवाबी प्रतिक्रिया में इज़रायल ने फिलिस्तीनी इलाकों पर हवाई हमले शुरू कर दिए थे।इस लड़ाई से गाजा की मुस्लिम आबादी काफ़ी प्रभावित हुई थी।
इसके बाद 7 अक्तूबर 2023 को इज़राइल पर हमास हमलों के दौरान महिलाओं के साथ बलात्कार, यौन हिंसा और क्षत-विक्षत करने के साक्ष्य दुनिया ने देखे और सुने हैं।हमले के दिन हमास द्वारा फिल्माए गए नग्न और खून से लथपथ महिलाओं के वीडियो, तथा बाद में घटनास्थल पर लिए गए शवों के फोटोग्राफों से पता चलता है कि हमलावरों ने महिलाओं को यौन निशाना बनाया था।
हमले के बाद घटनास्थल से ली गई अनेक तस्वीरों में महिलाओं के शरीर कमर से नीचे तक नग्न अवस्था में दिखाई दे रहे हैं, या उनके अंडरवियर एक तरफ से फटे हुए हैं, पैर फैले हुए हैं, तथा उनके जननांगों और पैरों पर चोट के निशान हैं। हिब्रू विश्वविद्यालय के डेविस इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस के कानूनी विशेषज्ञ डॉ. कोचव एल्कायम-लेवी ने कहा, “ऐसा लगता है कि हमास ने इराक में आईएसआईएस (इस्लामिक स्टेट समूह) से, बोस्निया के मामलों से महिलाओं के शरीर को हथियार बनाने का तरीका सीखा है”।
इज़राइल की निर्दोष जनता, जिनमे महिलायें व बच्चे भी है, उनको हमास ने 7 अक्तूबर को बंधक बना लिया था, जिनमें से अभी तक भी काफ़ी बंधक हमास के क़ब्ज़े में है।क्या इज़राइल को उन्हें छुड़ाने के लिए मिल्ट्री ऑपरेशन करने का अधिकार नहीं।
ईरान को हमास द्वारा बंधक बनाये गये इज़राइल नागरिकों को छुड़ाने के लिए पहल करनी चाहिए थीं, क्योंकि वह हमास को सहायता व हथियार दे रहा है।लेकिन ईरान ने इज़राइल में आतंकवादी घटना होने के बाद भी इन आतंकवादी संगठनों को समर्थन देना जारी रखा है।
हमास द्वारा फिल्माए गए वीडियो में एक महिला को हथकड़ी लगाए और बंधक बनाए जाने का दृश्य शामिल है, जिसके हाथों पर कट लगे हैं तथा उसकी पतलून की सीट पर खून के बड़े धब्बे हैं।हमास की इस कार्यवाही का हिज़बुल्लाह व हूती ने समर्थन किया था।ईरान में एक चुनी हुई सरकार है, लेकिन उसका इन आतंकवादियों को समर्थन करना समझ से परे है।
इज़राइल द्वारा हमास व हिज़बुल्लाह के चीफ़ को मारने का उसके पास वैध कारण है, क्योंकि ये आतंकवादी संगठन है और इज़राइल में हिंसक घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार है। गाजा में हमास के आतंकवादियों को ख़त्म करने के लिए व लेबनान में हिज़बुल्लाह के आतंकवादियों को ख़त्म करने के लिए ही इज़राइल मिलिट्री ऑपरेशन चला रहा है।ईरान को आतंकवादी संगठनों का समर्थन नहीं करना चाहिए।
दुनिया के मुस्लिम समुदाय को समझना चाहिए कि हमास, हिज़बुल्लाह व हूती आतंकवादी संगठन है,जो हिंसा में विश्वास रखते है। इस लड़ाई में दोनों तरफ आम लोगों को जान और माल का नुकसान हो रहा है, जो दुखद है।यह लडाई बंद होनी चाहिए।इससे बच्चो व् महिलाओं के साथ मानवता प्रभावित होती है।