यति नरसिंहानंद जी के शब्दों का विरोध हो सकता है ओर ऐसा कोई भी कार्य जो कानून ओर संविधान जिसकी इजाजत नहीं देता उसका समर्थन होना भी नहीं चाहिए लेकिन रावण का पुतला बुराई के रूप में दहन होता है इसी बुराई व अत्याचार को पिछले 500 वर्षों में समाज ओर देश में पनपी बुराइयों का पुतला दहन हो किसी का नाम नहीं लेना चाहिए था विवाद न बनता यति जी की बातों का विरोध किया जा सकता है लेकिन भीड़ द्वारा उत्तेजक भाषण हिंसा हथियार और पत्थर के रूप में इसकी भी इजाजत कानून और संविधान किसी को नहीं देता चाहे वे सवैधानिक पदो पर चुने हुए व्यक्ति ही क्यों ना हो भीड के बल पर धमकी भरी राजनीति नहीं होनी चाहिए देश मे भीड़ तंत्र नहीं लोकतंत्र है सरकार को न्याय संगत कार्रवाई करनी चाहिए धर्म जाति समुदाय से ऊपर उठकर दोशी कोई भी हो किसी एक व्यक्ति से नाराज होकर आप किसी मंदिर या पुलिस चौकी थाना या सार्वजनिक चीजों पर पर पत्थर नहीं चला सकते देश में कानून का इकबाल बुलंद है=किसान नेता विनीत त्यागी

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