प्रशांत त्यागी की कलम से………
आदर्श आचार संहिता के दौरान आखिर कैसे हो गया सहकारी समितियां में भर्ती घोटाला?
पूरे मामले में कई सत्ता पक्ष के नेता भी जांच के घेरे में
देवबंद की भटोल और मंझौल व बड़गांव सहकारी समिति में भी हुई थी भर्ती
सहारनपुर, संवाददाता।
सहकारी समितियां में रिश्वत के बदले नौकरी देने के मामले में राज्य सरकार के आदेश पर जांच तेज हो गई है। शासन स्तर से गठित की गई कमेटी पूरे मामले की गंभीरता के साथ जांच कर रही है। लेकिन सवाल यह उठता है आखिर यह भर्ती घोटाला हुआ ही क्यों? क्योंकि जिस प्रकार से प्रदेश की सत्ता पर काबिज मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में प्रदेश से सरकार चल रही है जिसका साफ-साफ संदेश है किसी भी विभाग में तनिक भी भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, लेकिन इसके बावजूद भी सहारनपुर में रिश्वत के बदले नौकरी दी गई और करोड़ों रुपए का यह घोटाला हुआ है। अपने आप में सरकार की छवि खराब करने वाला यह कार्य तो है ही है ऊपर से विपक्ष को भी एक बड़ा मुद्दा मिल गया। सूत्रों की माने तो इस पूरे घोटाले में भाजपा के कई बड़े दिग्गज नेता भी शामिल हो सकते हैं। देवबंद की बात करें तो देवबंद में मंझौल, भाटोल, देवबंद, बड़गांव, समेत कई सहकारी समितियां हैं जहां पर रिश्वत के बदले नौकरी देने की बात सामने आ रही है। इन सहकारी समितियां में ज्यादातर भाजपा के ही सभापति हैं जिनमें से वर्तमान में पार्टी संगठन में भी पदाधिकारी हैं। बताया जाता है जिन सहकारी समितियों में रिश्वत के बदले नौकरी दी गई उन सहकारी समितियां के बोर्ड से लेकर सभापति तक और एमडी तक भी इस पूरे घोटाले में शामिल है। पूरा यहां खेल लोकसभा चुनाव के दौरान लगी आचार संहिता के बाद से शुरू हुआ। भाजपा के कई जनप्रतिनिधि जल्द ही जरूर से ज्यादा अमीर बनने की चाहत में इस पूरे खेल में फंस गए। सत्ता के जरिए अपनी जान बचाने में लगे हैं। लेकिन किसी ने कहा है की अति का अंत बहुत बुरा होता है। अब देखना यह है कि सरकार इस मामले में कितनी निष्पक्षता के साथ कार्रवाई करती है इस पर पूरे जनपद की लोगों की नजर लगी हुई है। सूत्र बताते हैं भाजपा सरकार में जनपद से एक राज्य मंत्री हैं जिन्होंने यह पूरा मामला मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाया और उनके द्वारा शिकायत के बाद ही मामले की जांच शुरू हुई।
पूरे घोटाले पर विपक्ष का मुंह बंद बना चर्चा का विषय
सहारनपुर जनपद की बात करें तो यहां पर सांसद कांग्रेस के हैं, सपा के दो विधायक भी हैं और विपक्ष के कई बड़े नेता भी लेकिन जिस प्रकार से लखनऊ से दिल्ली तक विपक्ष के नेता भाजपा के खिलाफ हमलावर हैं वह स्थिति सहारनपुर में नजर नहीं आ रही है। यहां संसद से लेकर विपक्ष के दोनों विधायक पूरे मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं वह नहीं बोल रहे हैं जिससे साबित हो रहा है कि वह भी कहीं ना कहीं विपक्ष की भूमिका निभाने में असफल साबित हुए हैं। क्योंकि लोकतंत्र में विपक्ष का काम ही सत्ता पक्ष के द्वारा किए जा रहे कार्यों पर नजर रखना और अगर कोई कार्य जनता के विपरीत हो रहा है उसके खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करना। लेकिन यहां पर विपक्ष के नेताओं के मुंह पर शायद टेप लगी है इस वजह से वह बोल नहीं पा रहे हैं या कुछ और मजबूरी है यह तो उन्हें ही पता है।
15 से 22 लाख रुपए तक की ली गई रिश्वत?
रिश्वत के बदले नौकरी देने के मामले में सहकारी समिति का यह घोटाला अपने आप में अजीब है। सूत्रों का दावा है कि इस भर्ती के दौरान 15 से 18 और 22 लाख रुपए तक की रिश्वत ली गई। करोड़ों रुपए की रिश्वत का यह घोटाला आने वाले समय में बड़ा मामला बन सकता है। अब देखना है कि सरकार इस मामले में दोषियों के खिलाफ क्या कार्रवाई करती है?
जांच के बाद रोका गया वेतन अब कार्य भी नहीं कर सकेंगे भर्ती हुए लोग
प्रदेश सरकार द्वारा पूरे मामले में गंभीरता के साथ जांच शुरू कराई गई। इसके बाद ही आज पूरे प्रकरण में आदेश जारी हुए और जो इस भर्ती में रखे गए थे सभी का वेतन रोकते हुए उन्हें कार्य से भी रोका गया है। मामले की जांच होने तक अब वह कार्य नहीं कर सकेंगे जिससे पता चल रहा है कि सरकार इस मामले में कितनी संजीदा है और उच्च स्तर पर कार्रवाई कर रही है। हो सकता है जल्दी असली गुनहगारों तक भी सरकार के हाथ पहुंचे और उनके खिलाफ भी बड़ी कार्रवाई नजर आए।
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