🌹 क्रांतिकारी कवि दुष्यंत कुमार जयंती विशेष 🌹
“हो गई है पीर पर्वत-सी, पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।”
हिंदी साहित्य में क्रांतिकारी स्वर के पर्याय बने कवि दुष्यंत कुमार त्यागी का जन्म 1 सितम्बर 1933 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद के राजपुर नवादा गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम भूराराम त्यागी था, जो एक सामान्य किसान थे।
📚 शिक्षा और प्रारंभिक जीवन
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के विद्यालय से प्राप्त की। आगे की पढ़ाई के लिए नजीबाबाद और मुज़फ़्फ़रनगर भेजे गए, जहाँ से इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। साहित्य के प्रति गहरी रुचि ने उन्हें इलाहाबाद विश्वविद्यालय तक पहुँचा दिया। वहीं से उन्होंने हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर (एम.ए.) की उपाधि हासिल की। छात्र जीवन में ही उन्होंने कवि सम्मेलनों और नाट्य मंचों पर भाग लेना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे उनकी पहचान एक तेजतर्रार कवि के रूप में होने लगी।
जनपद मुजफ्फरनगर में उनकी पढ़ाई का जिक्र शायद ही कहीं पर मिले क्योंकि बीबीसी हिंदी ने उनकी जीवनी पर डॉक्यूमेंट्री बनाई थी उसमें वह मुजफ्फरनगर के डीएवी इंटर कॉलेज भी पहुंचे थे उनकी पढ़ाई के विषय में जानकारी लेने के लिए जानकारी के मुताबिक कभी दुष्यंत कुमार ने कक्षा 7 और 8 मुजफ्फरनगर के डीएवी इंटर कॉलेज से की थी
❤️ परिवार और निजी जीवन
दुष्यंत कुमार का विवाह 30 नवम्बर 1949 को सहारनपुर जनपद के गांव धघेड़ा राजेश्वरी त्यागी से हुआ। वे स्वयं हिंदी की शिक्षिका थीं और दुष्यंत जी की जीवन संगिनी ही नहीं बल्कि साहित्यिक प्रेरणा भी बनीं। उनके तीन संतानें हुईं – दो पुत्र आलोक और अपूर्व, और एक पुत्री, जिसका दुर्भाग्यवश सड़क दुर्घटना में निधन हो गया।
🖋️ साहित्यिक यात्रा और संघर्ष
पढ़ाई पूरी करने के बाद दुष्यंत जी को स्थायी नौकरी की तलाश रही। उन्होंने आकाशवाणी दिल्ली और बाद में मध्यप्रदेश के भाषा विभाग, भोपाल में कार्य किया। इसी दौरान भोपाल उनका स्थायी निवास बन गया।
जीवन के शुरुआती दौर में आर्थिक तंगी और संघर्ष उनके साथ रहे, लेकिन उनकी लेखनी ने उन्हें एक अलग ही मुकाम दिया। उनकी प्रमुख रचनाएँ साये में धूप, आवाज़ों के घेरे, सूर्य कहीं भी जल सकता है और छोटे-छोटे सवाल हैं।
🔥 ग़ज़ल का नया स्वर
दुष्यंत कुमार को हिंदी ग़ज़ल का नया प्रवर्तक माना जाता है। उन्होंने ग़ज़ल को महज़ रूमानी भावभूमि से निकालकर सामाजिक और राजनीतिक हकीकत से जोड़ा। उनकी पंक्तियाँ जनता की आवाज़ बन गईं।
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✍️ उनकी कुछ अमर पंक्तियाँ
“सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।”
“मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।”
“कहाँ तो तय था चरागाँ हर एक घर के लिए,
कहाँ चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।”
“मत कहो आकाश में कोहरा घना है,
ये किसी की व्यक्तिगत आलोचना है।”
“यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ,
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा।”
“न हो कमीज़ तो पैरों से पेट ढक लेंगे,
ये लोग कितने मुनासिब हैं, इस सफ़र के लिए।”
“कभी तो आसमान भी उतरे ज़मीन पर,
कभी तो ये घटाएँ बरसती नहीं हैं क्यों।”
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🌸 अंतिम पड़ाव और विरासत
30 दिसम्बर 1975 को मात्र 44 वर्ष की आयु में भोपाल में हृदयाघात से दुष्यंत कुमार का निधन हो गया। यह क्षति हिंदी साहित्य के लिए अपूर्णनीय रही।
उनके बाद उनकी पत्नी राजेश्वरी देवी ने साहित्यिक विरासत और परिवार दोनों को संभाला। 2021 में वे भी 87 वर्ष की आयु में इस दुनिया से विदा हो गईं।
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आज दुष्यंत कुमार को याद करना केवल एक कवि को नमन करना नहीं है, बल्कि उस जन-स्वर को याद करना है जो अन्याय और भ्रष्ट व्यवस्था के विरुद्ध उठी थी। उनकी कविताएँ आज भी संघर्षरत जनता की ताक़त और उम्मीद बनी हुई हैं।
🙏 जयंती पर शत-शत नमन इस अमर क्रांतिकारी कवि को।
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कवि दुष्यंत कुमार जी के पुत्रों—आलोक त्यागी और अपूर्व त्यागी—के करियर और भूमिका के बारे में
आलोक कुमार त्यागी
वे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) में अधिकारी थे और अब सेवानिवृत्त होकर भोपाल में ही निवास कर रहे हैं।
अलोक त्यागी ने अपने पिता की स्मृति और साहित्यिक विरासत को संरक्षित रखने में सक्रिय भूमिका निभाई है। वे चाहते हैं कि उत्तर प्रदेश की उनकी जड़ें और जन्मभूमि—बिजनौर के राजपुर नवादा—में भी उनकी स्मृतियों को संरक्षित किया जाए। उन्होंने सरकार से आग्रह किया है कि उनके पैतृक आवास को स्मारक या संग्रहालय के रूप में विकसित किया जाए, और यदि सरकार पहल करे तो वे उसका इस्तेमाल देने को तैयार हैं।
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अपूर्व त्यागी
अपूर्व त्यागी सेना में कर्नल (Colonel) के पद पर कार्यरत रहे हैं और सेवानिवृत्त हैं। वर्तमान में वे आगरा में रह रहे हैं।
दोनों पुत्रों ने मिलकर कवि के पैतृक आवास के प्रति सरकार को कदम उठाने में सहयोग दिया। उन्होंने संस्कृति विभाग को जीवन्त रूप में संग्रहालय और ऑडिटोरियम का रूप देने के लिए भूमि सौंपने तथा आवश्यक कागजी कार्यवाही पूरी करने में भी सक्रिय भूमिका निभाई।
“राजपुर नवादा में दुष्यंत स्मारक व संग्रहालय का निर्माण शुरू”
कवि दुष्यंत कुमार के पैतृक गांव राजपुर नवादा में उनकी स्मृतियों को संजोने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने उनके आवास को स्मारक व संग्रहालय के रूप में विकसित करने हेतु 6 करोड़ रुपये स्वीकृत किए हैं। संग्रहालय निर्माण का कार्य शुरू हो चुका है, जो वरिष्ठ भाजपा नेता व विधान परिषद सदस्य अश्वनी त्यागी के प्रयासों से संभव हुआ है।
Anuj Tyagi 8171660000

