दिल्ली में करारी हार का गुस्सा बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने अपनी ही टीम पर उतार दिया। पहले समधी अशोक सिद्धार्थ को बाहर किया, फिर केंद्रीय समन्वयक नितिन सिंह पर भी गाज गिरा दी। बहनजी का ये ‘पॉलिटिकल झाड़ू’ अपनों पर ही क्यों चलता है? विपक्ष से निपटने में चाहे जितनी ढील, लेकिन अपनों की गर्दन झट से पकड़ लेती हैं!

समधी अशोक सिद्धार्थ, जो उनके भतीजे आकाश आनंद के ससुर हैं, उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया। अब सवाल ये है कि हार का जिम्मेदार परिवार बन गया या नेतृत्व की कमजोरियां? क्या मायावती के दरबार में हार का कारण ढूंढने से आसान है ‘बलि का बकरा’ ढूंढना?

दिलचस्प ये है कि जब चुनाव आते हैं तो “सामाजिक भाईचारा” याद आता है, और हार के बाद सिर्फ “अपनों की बली” दी जाती है। आखिर बहनजी, दोष संगठन का है या आपकी रणनीति का? जब जड़ें ही खोखली हों तो शाखाएं काटने से पेड़ कैसे बचेगा?

बहनजी, पार्टी से अपनों को बाहर करने से पहले जरा आईना देखिए, कहीं ऐसा न हो कि अगली बार पार्टी की बैठक में आप अकेली ही नजर आएं!

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