स्त्री और पुरुष के बीच मैत्री भी हो सकती है, मित्रता भी हो सकती है, यह भारतीय परंपरा का अंग नहीं रही। भारतीय परंपरा ने कभी इतना साहस नहीं किया कि स्त्री और पुरुष के बीच मैत्री की धारणा को जन्म दे सके।
और मैत्री होनी चाहिए। एक सुंदर, सुसंस्कृत व्यक्तित्व में इतनी क्षमता तो होनी चाहिए कि वह किसी स्त्री के साथ भी मैत्री बना सके, किसी पुरुष के साथ मैत्री बना सके। मैत्री का अर्थ है कि कोई शारीरिक लेन—देन का सवाल नहीं है, एक आत्मिक नाता है।
एक पुरुष और एक स्त्री के बीच इस तरह की दोस्ती हो सकती है जैसे दो पुरुषों के बीच होती है, या दो स्त्रियों के बीच होती है। मैत्री का आधार बौद्धिक हो सकता है। दोनों के बीच एक बौद्धिक तालमेल हो सकता है। दोनों के बीच रुचियों का एक सम्मिलन हो सकता है। दोनों में संगीत के प्रति लगाव हो सकता है।
पश्चिम में शरीर का संबंध ही एकमात्र संबंध नहीं है। यह श्रेष्ठतर बात है, ध्यान रखना। शरीर का संबंध ही एकमात्र संबंध अगर है, तो इसका अर्थ हुआ कि फिर आदमी के भीतर मन नहीं, आत्मा नहीं, परमात्मा नहीं, कुछ भी नहीं, सिर्फ शरीर ही शरीर हैं। अगर आदमी के भीतर शरीर के ऊपर मन है और मन के ऊपर आत्मा है और आत्मा के ऊपर परमात्मा है तो इन चारों तलों पर संबंध हो सकते हैं।
मैत्री थोड़ी आध्यात्मिक बात है। थोड़े ऊंचे तल की बात है। तुम कल्पना ही नहीं कर सकते कि एक स्त्री और पुरुष में मैत्री है। कि एक स्त्री और पुरुष घंटों बैठकर दर्शनशास्त्र पर या काव्यशास्त्र पर विचार विमर्श करते हैं। बहुत सी ऐसी बातें होती है जीवन में जो स्त्रीअपनी सहेली या पुरुष अपने पुरुष मित्र के साथ सांझा नहीं कर पाते हैं अतः स्त्री और पुरुष का जो आत्मिक संबंध होता है यह उनको एक मानसिक संबल देता है और यह मानसिक संबंध उन्हें अपने जीवन मैं रोज आने वाले उतार चढ़ाव से लड़ने की क्षमता देता है क्योंकि अगर आपका मस्तिष्क आपकी सोच आपका मानसिक संतुलन और आपका मानसिक स्वास्थ्य सही है तो आप अपने जीवन में किसी भी प्रकार की परेशानियों का अनुभव नहीं करेंगे इसका मतलब यह नहीं है की परेशानियां आयेंगी कि नहीं इसका अर्थ यह है कि हर परेशानी से लड़ने का आपके पास मानसिक संबल होगा और उसे वक्त आप इस अवस्था में होंगे कि अपना मानसिक संबल इस्तेमाल कर आप परेशानी के बारे में सोने के स्थान पर उसके हल के बारे में सोचेंगे कैसे जल्दी से जल्दी उसे परेशानी से बाहर आया जाए यह सोचेंगे और जिंदगी के उतार चढ़ाव में कभी विचलित नहीं होंगे
। अतः स्त्री और पुरुष का यह पवित्र संबंध जिसे हम मैत्री या मित्रता कहते हैं एक दूसरे को मानसिक रूप से बहुत ही संतुलित बना देता है और यह संबंध एक दूसरे को आगे बढ़ाने में भी एक दूसरे की सहायता करता है अतः भारत को अपने नजरिया को दृष्टिकोण को बदलना चाहिए आज के समाज में स्त्री और पुरुष का सिर्फ एक ही संबंध नहीं होता है अपने विचार अपने मानसिक अवस्था को हमें थोड़ा और खोलना होगा और समझना होगा कि यह आत्मिक संबंध एक इतिहास रच सकता है कान्हा और राधा भी मित्र ही थे इससे बड़ा उदाहरण स्त्री और पुरुष की मैत्री का और कोई क्या ही हो सकता है ।
बस यहीं पर मैं अपनी बात को विराम देना चाहूंगी …!!!
डॉक्टर स्वाति (कशिश)

