भारत में इस्लामिक जिहाद व जबरन धर्मांतरण का इतिहास’ से हमें अपने साथ अतीत में हुए जुल्म की जानकारी मिलेगी -अशोक बालियान,चेयरमैन,पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन
पीजेंट वेलफेयर के चेयरमैन अशोक बालियान व् महाराजा सूरजमल शिक्ष्ण संस्था,दिल्ली के रिसर्च विंग के निदेशक श्री राजेन्द्र कुमार ‘भारत में इस्लामिक जिहाद व् जबरन धर्मांतरण का इतिहास’ पर एक पुस्तक लिख रहे है, जो जल्दी ही प्रकाशित होगी। इस पुस्तक में यह भी पढने को मिलेगा कि भारत की आज़ादी से पहले पूर्वी बंगाल में मुसलमानों की जनसंख्या किसी मुसलमान जाति के प्रवास के कारण नहीं, बल्कि जबरन धर्म परिवर्तन के कारण थी। जेम्स वाइज की पुस्तक ‘Notes on the Races, Castes and Trades of Eastern Bengal by James Wise 1883’ के पेज 2 के अनुसार पूर्वी बंगाल में इस्लामिक के शासन के दौरान शासक जलालुद्दीन ने (सन 1414 से 1430) हिन्दुओं के धर्मांतरण के लिए केवल दो शर्तें रखी थीं, कुरान या मौत। इसके बाद काफी लोगों ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था और काफी लोग ऐसी शर्तों को मानने के बजाय परिवार सहित असम और कछार के जंगलों में भाग गए थे। जेम्स वाइज के अनुसार जहाँ भी इस्लामिक शासन रहा है, वहाँ दासता विकसित हुई है और वह भूभाग सदियों तक कुशासन और उत्पीड़न के दौर से गुजरा था।


जेम्स वाइज के अनुसार पूर्वी बंगाल में एक समय तक जबरन धर्म परिवर्तन की कहानियां हिन्दु धर्म से इस्लाम धर्म में शामिल होने वाले मुसलमानों द्वारा बिना किसी शर्म के खुद ही सुनाई जाती थी। पूर्वी बंगाल में जब मुस्लिम आबादी बिखरी हुई थी, तब प्रत्येक गृहस्थ के लिए अपने धार्मिक विश्वास के संकेत के रूप में अपनी छत पर मिट्टी का पानी का बर्तन (बधना) लटकाना प्रथा थी। एक दिन एक मौलवी कुछ वर्षों की अनुपस्थिति के बाद एक हिंदू गांव के बीच में रहने वाले एक परिचित से मिलने गया, लेकिन उस मौलवी को उस व्यक्ति की छत पर पानी का बर्तन (बधना) नहीं मिला। मौलवी द्वारा पूछताछ करने पर उसे बताया गया कि उसने इस्लाम धर्म त्याग दिया है और फिर से अपने हिन्दू धर्म में वापिस आ गया है।
मौलवी ने शहर लौटने पर, वहां के नवाब को हालात की सूचना दी, इसके बाद नबाब ने सैनिकों की एक टुकड़ी को उस गाँव में जाने का आदेश दिया गया। नबाब के आदेश पर उसकी सेना ने गांव को घेर लिया गया और उसमें रहने वाले हर व्यक्ति को मुसलमान बनने के लिए मजबूर किया गया था। इसके बाद हिंदुओं ने जबरन इस्लाम धर्म स्वीकार किया,क्योंकि यह हत्या या व्यभिचार के लिए सजा से बचने का यही एकमात्र रास्ता था। पूर्वी बंगाल में बाद के समय में जबरन धर्मांतरण करने की यह अनिवार्य प्रणाली और भी आगे बढ़ गई थी।
पूर्वी बंगाल में अत्याचारी इस्लामिक शासक मुर्शिद जूली खान ने एक कानून लागू किया था,जिसके अनुसार कोई भी ज़मींदार, जो बकाया राजस्व का भुगतान करने में विफल रहता है, या नुकसान की भरपाई करने में असमर्थ रहता है, तो उसे अपनी पत्नी और बच्चों के साथ इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया जायेगा।
जेम्स वाइज की उपरोक्त पुस्तक के पेज 8 के अनुसार भारत के अन्य हिस्सों में भी इस्लामिक शासकों ने यही किया था,जो पूर्वी बंगाल के शासक ने किया था। हिंदुओं के एक अन्य उत्पीड़क सिकंदर लोदी (1488-1516) ने मथुरा के पवित्र मंदिरों को नष्ट कर दिया था और हिंदुओं को अपने सिर या दाढ़ी मुंडाने, नियमित स्नान करने और चेचक की देवी सीता की पूजा करने पर सख्त प्रतिबंध लगा दिया था। सिकंदर लोदी का सारा जीवन लूट, बलात्कार, नर-संहार, हिन्दुओं के सामूहिक इस्लामीकरण और हिन्दू मन्दिरों को मस्जिद और मकबरे में रूपांतरण की एक लम्बी गाथा है।
हिन्दू परंपराओं के पालन पर ‘कर’ वसूली और इस्लाम मानने वालों को छूट देने के पीछे एकमात्र भाव यही था कि हिन्दू धर्मावलम्बी तंग आकर इस्लाम धर्म स्वीकार कर लें। सिकंदर लोदी के शासन काल में संत रविदास ने सिकंदर लोदी के क्रूर अत्याचारों व आतंक से दुखी हो उसके विरोध करने के लिए मजबूती से उठ खड़े हुए थे और जबरन मतांतरण के खिलाफ आवाज उठाई थी। उन्होंने उस आक्रान्ता की अवैध मतांतरण की चुनौती को स्वीकार कर न केवल सनातनधर्मियों को स्वधर्म में अडिग रहने का आत्मबल दिया, वरन हजारों मतांतरित हिन्दुओं की घर वापसी भी करायी थी।

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