अशोक बालियान,चेयरमैन,पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन
देश की आज़ादी के बाद 15 अगस्त, 1947 को जो भारतीय सरकार बनी, उसका काम सैकड़ों ‘छोटी’ संप्रभुता वाले ‘रियासतों’ पर अपनी क्षेत्रीय संप्रभुता स्थापित करना था। भारत की स्वतंत्रता और उसके साथ रियासतों का एकीकरण सिर्फ़ एक कूटनीतिक युद्ध नहीं था, बल्कि रियासतों के विलय का इतिहास आघात और नरसंहार की एक भयावह गाथा को छुपाता है। विभाजन के समय हुए हिंदू-मुस्लिम दंगे स्वतंत्रता के बाद के संघर्ष में केंद्र में रहे थे।हालाँकि, हैदराबाद रियासत का कम चर्चित अध्याय चुपचाप हिंदुओं के नरसंहार की त्रासदी और रजाकारों की भूमिका को छुपाए हुए है।हिंदुओं के सामूहिक नरसंहार का यह प्रकरण इस बात की याद दिलाता है कि कट्टरता और सत्ता के नशे में चूर ‘शांतिप्रिय’ किस हद तक गिर सकते हैं।
हैदराबाद राज्य ने सन 1700 के दशक में मुगल जागीरदार के रूप में अपना अस्तित्व शुरू किया था।इसके शासकों के पास निज़ाम का नाममात्र का ‘ख़िताब’ था। रियासत में 85 प्रतिशत हिंदू आबादी थी। भारत की आज़ादी के दौरान, सातवें निज़ाम मीर उस्मान अली अपनी सत्ता और संपत्ति को बनाए रखना चाहते थे।उन्होंने भारत सरकार के बार-बार कूटनीतिक प्रयासों के बावजूद भारत में शामिल होने से इनकार कर दिया था।
हैदराबाद राज्य में रजाकार सन 1940 के दशक के अंत में गठित एक कट्टरपंथी मिलिशिया थे।उनका नेतृत्व कासिम रजवी ने किया था, जो एक धार्मिक कट्टरपंथी व्यक्ति था। रजाकार सेना अपनी कुख्यात चरमपंथी विचारधारा के लिए जानी जाती थी। अपने नेता के मुस्लिम समर्थक कथन से प्रभावित होकर, इस मिलिशिया समूह का इरादा और दृढ़ संकल्प हैदराबाद में एक इस्लामिक राज्य स्थापित करना था।
तत्कालीन राज्य सचिव वीपी मेनन की पुस्तक ‘द इंटीग्रेशन ऑफ स्टेट्स’ में रजाकारों के नेता कासिम रिजवी के एक भाषण का जिक्र है,जिसमे उसने कहा था कि अगर भारत ने हैदराबाद में घुसपैठ की कोशिश की, तो उसे डेढ़ करोड़ हिंदुओं की राख और हड्डियों के सिवाय कुछ नहीं मिलेगा।
कासिम रजवी ने 31 मार्च 1948 को हैदराबाद में बेहद उत्तेजक भाषण दिया था। वहाँ के मुसलमानों को ललकारते हुए कहा था कि इस्लाम की फतह के पहले अपनी तलवारों को म्यान में वापस न ले जायें और एक हाथ में कुरान और एक में तलवार लेकर दुश्मन के सफाये के लिए निकल पड़ें।
इस भाषण का सबसे खराब व खतरनाक पहलू था, जब उसने कहा था कि इस जंग में भारत के साढ़े चार करोड़ मुसलमान हमारे साथ हैं। इसके बाद 12 अप्रेल 1948 को कासिम रजवी ने कहा था कि वह दिन दूर नही जब बंगाल की खाड़ी हमारी सल्तनत के पैर पखारेगी और दिल्ली के लाल किले पर आसफ़ जही झण्डा लहराएगा।
हैदराबाद के निज़ाम जब सत्ता को मजबूत कर रहे थे, तब प्रधानमंत्री नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस बेखबर थी। हैदराबाद राज्य द्वारा भारत सरकार को निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बाद भी, प्रधानमंत्री नेहरू के ‘शांतिप्रिय’ लोगों के प्रति प्रेम ने उन्हें समस्या के प्रति सौम्य दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित किया था। रजाकारों द्वारा हिंदुओं के नरसंहार व महिलाओं के साथ किये गए बलात्कार ने स्पष्ट रूप से धार्मिक असहिष्णुता और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के जहरीले मिश्रण को प्रदर्शित किया था।
रजाकार सेना के स्वयंभू कमांडर कासिम रिजवी के नेतृत्व में रजाकार जबर्दस्ती धर्म परिवर्तन पर भी आमादा थे। रजाकार गांवों पर हमला बोलते और लोगों पर इस्लाम अपनाने का दबाव बनाते थे और मना करने पर पुरुषों की हत्या कर दी जाती थी, जबकि स्त्रियों से या तो रेप होता, या फिर उन्हें उठाकर ले जाकर जबरन शादी कर ली जाती थी।
भारतीय स्वतंत्रता के बाद हिंदुओं के नरसंहार का दुखद अध्याय बहुलवाद और सहिष्णुता की आड़ में अनियंत्रित कट्टरता के खतरों की एक कठोर याद दिलाता है। इस प्रकार रजाकारों और हैदराबाद के विलय के बारे में सच्चाई को स्वीकार करके, भारत एक ‘शांतिपूर्ण’ समुदाय के गुमराह धार्मिक उत्साह में खोए हज़ारों लोगों की याद को सम्मानित कर सकता है।
उस वक्त जवाहर लाल नेहरू हैदराबाद पर कोई मिलिट्री एक्शन नहीं लेना चाहते थे, लेकिन पटेल ऐसा करने पर अडे थे। 15 अगस्त 1947 तक जिन तीन रियासतों का भारत में विलय मुमकिन नही हो सका था, उसमे हैदराबाद भी शामिल था। भारत के गृह मंत्री सरदार पटेल कई मौकों पर बातचीत की सार्थकता पर सवाल खड़े कर चुके थे। वह निजाम की नीयत में खोट महसूस कर रहे थे। गवर्नर जनरल माउन्टबेटन और पण्डित नेहरु इस सवाल को किसी प्रकार शान्ति से निपटाना चाहते थे,जबकि सरदार पटेल इसका हल सेना भेजकर करने के पक्ष में थे।
अंत में, भारत के गृह मंत्री सरदार पटेल के सख्त रवैया के बाद ‘ऑपरेशन पोलो’ के लिए भारत सरकार ने हैदराबाद सेना भेजी। 17 सितंबर 1948 को 100 घंटे से ज़्यादा चली लड़ाई के बाद हैदराबाद राज्य का अस्तित्व समाप्त हो गया था। और 18 सितंबर 1948 को रजाकारों के नेता कासिम रिजवी के अरेस्ट के साथ हैदराबाद का भारत में विलय हो गया था।