अशोक बालियान,चेयरमैन,पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन
भारत में कुछ समय से अलग-अलग जातीय समहू के नेता राजनीति में अपने जातीय समहू को भागीदारी देने व् उनके स्वाभिमान के नाम पर हिन्दुओं को बाँटने का कार्य कर रहे है,
जबकि भारत में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सभी जातीय समहू की भागीदारी होती है।
वर्तमान में भारत की राजनीति हिन्दुओं को आपस में बांटकर सत्ता का सुख भोगने में कुशल हो चुकी है। ये बांटने वाले लोग कौन हैं? इतिहास में या कथाओं में वही लिखा जाता है, जो ‘ विजयी’ होता है। हम अपने ही लोगों से हारी हुई कौम हैं। हमें किसी तुर्क, ईरानी, अरबी, पुर्तगाली, फ्रांस या अंग्रेजों ने नहीं, अपने ही लोगों ने बाहरी लोगों के साथ मिलकर हराया था।
हमारे देश में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था है। इसलिए भारत के नागरिक प्रत्यक्ष मताधिकार का प्रयोग करके अपने प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं। उसके बाद चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा एक सरकार का चुनाव किया जाता है। फिर चुनी हुई सरकार अपने विभिन्न कर्तव्यों का पालन करती है, जैसे रोजमर्रा का शासन चलाना, नये नियम बनाना, पुराने नियमों का संशोधन करना, आदि।ऐसी व्यवस्था में समाज के विभिन्न जातीय समूहों और मतों को उचित सम्मान मिलता है।
हमारे देश में विविधता भरी पड़ी है।और अनगिनत सामाजिक, भाषाई, धार्मिक और जातीय समूह हैं। इसीलिए भारत में सामाजिक समूहों के बीच सत्ता का बँटवारा लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में शामिल है। इस व्यवस्था में सभी जातीय समहू का कल्याण किया जाता है और इस व्यवस्था में सभी जातीय समहू की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भागीदारी होती है।
हिंदुओ को विभाजित रखने के उद्देश्य से ब्रिटिश राज में हिंदुओ को तकरीबन 2,378 जातियों में विभाजित किया गया। हिन्दुओं के ग्रंथ खंगाले गए और हिंदुओं को ब्रिटिशों ने नए-नए नए उपनाप देकर उन्हों स्पष्टतौर पर जातियों में बांट दिया गया। क्षूद्र एक ऐसा शब्द था जिसने देश को तोड़ दिया। दरअसल यह किसी दलित के लिए इस्तेमाल नहीं किया गया था। लेकिन इस शब्द के अर्थ का अनर्थ किया गया और इस अनर्थ को हमारे आधुनिक साहित्यकारों और राजनीतिज्ञों ने बखूबी अपने भाषण और लेखों में भुनाया।
भारत में वैदिक काल में वंश पर आधारित समाज का विवरण मिलता है, जैसे उस समय तीन ही वंशों सूर्य वंश, चंद्र वंश और ऋषि वंश का प्रचलन था। समय के साथ उक्त तीनों वंशों के ही अनेक उपवंश होते गए।
वैदिक सनातन धर्म में वर्ण भी होते थे। और यह विभाजन कर्म आधारित था, लेकिन बाद में यह जन्माधारित हो गया था। वर्तमान में हिंदू समाज में इसी का विकसित रूप के रूप में देखा जा सकता है।सन 1901 की जाति आधारित जनगणना के अनुसार भारत में दो हजार से अधिक जातियां निवास करती हैं।
जाति का अर्थ वंशानुक्रम (heredity ) पर आधारित एक विशेष सामाजिक समूह से लगाया जाता है। जबकि प्रजाति का अर्थ प्राणि विज्ञान में मनुष्यों के ऐसे समूह से है, जिनमें शारीरिक लक्षणों के आधार पर समानता और विभेद हो। जाति को अँग्रेजी में ‘caste’ अनूदित किया गया है। तथा Caste शब्द स्पैनिश और पुर्तगाली शब्द ‘casta’ से आया है, जिसका अँग्रेजी में अर्थ lineage, race, breed है।
‘कास्ट इन इंडिया’ के लेखक जे. एच. हट्टन ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि भारत में जाति व्यवस्था के लिए ब्राह्मण जिम्मेदार नहीं है, क्योकि जाति व्यवस्था की अनेक विशेषताएँ ऐसे भागों में भी फैली जहाँ ब्राह्मणों का प्रभाव नहीं है। जर्मन विद्वान नेसफील्ड ने भी इस विचार का समर्थन किया है। इनके अनुसार प्रारम्भ में जो वर्ग बने, वे व्यावसायिक आधार पर श्रेणियों में परिणत हो गये। बाद में यही श्रेणियाँ कठोर हो जाति में बदल गयी।और इनकी अपनी-अपनी परम्परायें बन गयीं।
इबेट्सन के अनुसार प्रारम्भ में मानव खानाबदोश था और रक्त-सम्बन्ध के आधार पर अपने कबीले से जुड़ा रहता था। मानव विकास के इस स्तर पर स्थायित्व नहीं था अतः जाति का तो प्रश्न ही नहीं उठता है। भोजन के लिए जब मानव ने कृषि करना शुरू करना किया, तो उसके जीवन में स्थायित्व आया। और धीरे-धीरे जाति प्रथा का विकास हुआ।
भारत में सनातन धर्म जिसे हिन्दू धर्म अथवा वैदिक धर्म के नाम से भी जाना जाता है। इसे दुनिया के सबसे प्राचीनतम धर्म के रूप में भी जाना जाता है। भारत की सिंधु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई चिह्न मिलते हैं। इस धर्म के अनुयायियों को हिंदू या सनातनी कहा जाता है। हिंदू धर्म में सनातन धर्म शब्द का इस्तेमाल “शाश्वत” या कर्तव्यों के पूर्ण समूह या धार्मिक रूप से निर्धारित प्रथाओं को दर्शाने के लिए किया जाता है, जो सभी हिंदुओं पर लागू होते हैं, चाहे वे किसी भी वर्ग, जाति या संप्रदाय के हों।
हिंदू धर्म में, धर्म व्यक्तिगत आचरण को नियंत्रित करने वाली धार्मिक और नैतिक व्यवस्था है और यह जीवन के चार उद्देश्यों में से एक है, जिसमें अन्य गुणों के अलावा सत्य, अहिंसा और उदारता शामिल है।सनातन धर्म में ब्रह्मा,विष्णु और महेश को प्रमुख आराध्य देवता माना गया है।
हमें उन लोगों से सावधान रहना होगा,जो भारत में कुछ जातीय समहू के नेता राजनीति में अपने जातीय समहू को भागीदारी देने व् उनके स्वाभिमान के नाम पर हिन्दुओं को बाँटने का कार्य कर रहे है।
अशोक बालियान
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