भीतरी घात से हुआ भाजपा को बड़ा नुकसान
राघव लखनपाल शर्मा का बढ़ता कद पार्टी के कुछ नेताओं को चुभ रहा था
कार्यकर्ताओं की नजर हाई कमान की ओर कार्रवाई न हुई तो 2027 में गंभीर होंगे परिणाम
सहारनपुर,देवबंद
लोकसभा चुनाव के बाद आए नतीजे के चलते भाजपा प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व पर हार के बाद पार्टी के खिलाफ भीतरी घात करने वाले नेताओं पर कार्रवाई करने का दबाव बनता जा रहा है। अगर केंद्रीय और प्रदेश नेतृत्व द्वारा कोई ठोस कार्रवाई अब नहीं की गई तो 2027 के विधानसभा चुनाव और 2026 में होने वाले पंचायत चुनाव में भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। जिस प्रकार से भाजपा सहारनपुर मंडल की तीनों लोक सभा सीटों पर हार गई है जहां आंकड़ों में उत्तर प्रदेश के अंदर भाजपा को 65 से 70 लोकसभा सीटें जीतने का दावा किया जा रहा था वहां मात्र 33 लोकसभा सीटें भाजपा जीतने में कामयाब हुई है। उत्तर प्रदेश में गठबंधन प्रत्याशियों की शानदार जीत और भाजपा की करारी हार के बाद केंद्रीय और प्रदेश नेतृत्व के पैरों से जमीन खिसक रही है। इतना ही नहीं हारे हुए पार्टी प्रत्याशियों के समर्थक व पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं में भी भारी नाराजगी है। चार जून को नतीजे आने के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में सियासी उबाल है। हालांकि पार्टी उत्तर प्रदेश नेतृत्व द्वारा स्पेशल 40 सदस्यों की टीम का गठन किया गया है। जिसमें प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और पार्टी के संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह सैनी और पार्टी के संगठन शिल्पी नेताओं को लगाया गया है। सहारनपुर लोकसभा की बात करें तो यहां पर प्रदेश महामंत्री एमएलसी गोविंद नारायण शुक्ला को पर्यवेक्षक बनाया गया है जो संभावित है 19 या 20 जून को सहारनपुर पहुंचेंगे और पार्टी कार्यकर्ताओं से हार के संबंध में चुनावी फीड बैक लेंगे। अब देखना यह है कि पूरे मामले में पार्टी संगठन क्या कार्रवाई अमल में लाता है।
पांच में से दो विधानसभा सीट ही जीत पाई भाजपा
सहारनपुर लोकसभा सीट पर पांच विधानसभा आती है। जिनमें से वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा देवबंद, रामपुर मनिहारान, और सहारनपुर नगर विधानसभा सीट पर जीती थी। लेकिन इस बार सहारनपुर में जहां भाजपा को अच्छी खासी लीड का अंदाजा था लेकिन परिणाम उसके उलट आए। यहां भाजपा 5 हजार वोटो से हारी है। तो रामपुर मनिहारान विधानसभा सीट पर भी मात्र 1 से 2 हजार वोट की लीड भाजपा को मिली है। बात करें तो देवबंद विधानसभा की यहां भाजपा को 20 हजार वोटो की लीड तो जरूर मिली है लेकिन परिणाम अपेक्षा के मुताबिक नहीं आया। यहां पूर्व के चुनाव में भाजपा को एक लाख से अधिक वोट मिले थे लेकिन इस बार 95 हजार वोट ही मिल पाए हैं। अगर बात करें तो बेहट और सहारनपुर देहात विधानसभा पर भाजपा हारी। जिसके चलते पांच विधानसभा सीटों में से भाजपा दो विधानसभा सीट पर ही जीत दर्ज कर पाई है। परिणाम स्वरुप भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा।
राघव लखनपाल शर्मा का बढ़ता कद कुछ पार्टी के नेताओं को नहीं आ रहा था पसंद
लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी राघव लखनपाल शर्मा को अंदरुनी कलह का भी सामना करना पड़ा है। सूत्रों का दावा है भाजपा के कुछ बड़े नेताओं ने राघव लखनपाल शर्मा को हरवाने में पूरी ताकत झोंक दी थी। क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि सहारनपुर की राजनीति में राघव लखनपाल का कद उनसे ऊंचा हो। भाजपा के अंदर कुछ नेता ऐसे हैं जो चाहते हैं कि सहारनपुर में वह अपना एक तरफा राज चलाएं।
लोकसभा चुनाव में हार के कारणों की ये रही मुख्य वजह
क्षत्रीय महापंचायत का लोकसभा चुनाव के समय पर होना परिणाम स्वरूप काफी संख्या में राजपूत समाज का और कांग्रेस प्रत्याशी इमरान मसूद के पाले में चला गया। दूसरी वजह यह रही भाजपा नेताओं और संगठन के बीच आपसी तालमेल नहीं रहा। जिसके चलते 19 अप्रैल को चुनाव के दिन पोलिंग वोटो से भाजपा के एजेंट गायब रहे, पन्ना प्रमुख से लेकर बूथ पालक तक भी पोलिंग बूथ पर मौजूद नहीं थे। इतना ही नहीं पार्टी के बड़े नेताओं के क्षेत्र में भी कम मात्रा में वोट प्रतिशत हुआ। बड़े नेताओं ने वोट प्रतिशत बढ़ाने के लिए जमीन स्तर पर कोई ठोस कार्य नहीं किया।
*दूसरे दल से आए नेताओं को मिली तव्वजो*
लोकसभा चुनाव में हारने की मुख्य वजह रही संगठन से जुड़े पुराने कार्यकर्ताओं को अलग-थलग कर दिया गया। इतना ही नहीं 2022 के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में सपा में राजनीति करने वाले लोगों को आगे बढ़ाया गया और पार्टी के कैडर को पीछे कर दिया गया। जिसके चलते भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा।
अपने ही समाज को नहीं मना सके भाजपा के राजपूत समाज के जनप्रतिनिधि
पश्चिम उत्तर प्रदेश में राजपूत समाज की नाराजगी भी भाजपा की हार की वजह रही। पश्चिम उत्तर प्रदेश से लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा समेत अन्य राज्यों में भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ा। लेकिन स्थिति को भांपने के बाद भी भाजपा में मौजूद राजपूत समाज के नेता अपने समाज के नाराज लोगों को नहीं मान सके यहां तक की कोई जमीन स्तर पर ठोस प्रयास भी नहीं किया गया। इतना ही नहीं चुनाव के दौरान वह अपने समाज के बीच तक भी नहीं पहुंचे।
प्रशांत त्यागी
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