दिल को अपने रुलाना नहीं चाहती।
सच की राहों पे जाना नहीं चाहती।
ज़िंदगी है ज़रा सी मैं जी लूं इसे,
मुद्दा कोई बनाना नहीं चाहती।।
छीन लेती है खुशियां लबों से मेरी,
ऐसी दुनियां सजाना नहीं चाहती।।
मुफलिसी अपनी प्यारी है इज्जत भरी,
कोई दौलत कमाना नहीं चाहती।।
कोई देखे मुझे एक सामान सा,
ऐसा कोई दिवाना नहीं चाहती ।।
उसके हुकमो करम पर रजामंद हूँ
रोज़ दर-दर पे जाना नहीं चाहती।।
✍️©®अंजली श्रीवास्तव
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