एक और वर्ष जाने को है….. नया वर्ष पायदान पर खड़ा है!
बीते वर्ष का लेखा जोखा हर वर्ष ही करते हैं हम! क्या पाया क्या खोया, क्या खर्च किया क्या संचय किया… इस सबसे परे यह सोचना ज़रूरी है कि “गत वर्ष के अनुभवों से क्या सीखा हमने”?
मैं पाने-खोने से ज़्यादा, सीखने की प्रक्रिया पर ध्यान देती हूँ! पाना खोना तो प्रकृति की सतत नियमावली है…. किसी के हिस्से कम, किसे के हिस्से ज़्यादा!
कई यात्राएँ भी हुईं गत वर्ष… साहित्यिक भी और पारिवारिक यात्राएं भी जिनका अनुभव भी खट्टा मीठा रहा!
सुष्मिता सेन जी का एक साक्षात्कार देख रही थी जिसमें उन्होंने कहा है कि, “सामने वाला चाहे आपसे कितनी भी बत्तमीज़ी से प्रश्न करे, आपको उसका जवाब तमीज़ से ही देना चाहिए क्यूँकि वो उसकी सोच और तरीका है और ये आपका तरीका है”!
बात तो सही ही है! गत वर्ष कई लोगों की बदसलूकी का जवाब मैंने तेज़ आवाज़ में दे दिया था…. इस वर्ष का यह प्रण है….. स्वयं को संयमित रखना है! जाते हुए वर्ष को हर्ष से विदा करिये और नए वर्ष का सहर्ष स्वागत करिये!
थोड़ी खुशियाँ, थोड़े से दर्द, कुछ संघर्ष लायेगा
करेंगे कोशिशें गर हम, नया उत्कर्ष लायेगा
यही अनुभव अभी तक तो मिला हम सब को जीवन में
नयी राहें, नये रिश्ते नया ये वर्ष लायेगा!!
नन्दिनी श्रीवास्तव
कवयित्री
गाज़ियाबाद