Category: कविता/शायरी

हम मजदूर

बैशाख के महीने में तपती धूप, गर्मी,उमस से परे… गेहूं की बलिया बीनते बच्चे, बोरे में भरते, भरने को पेट, ईंट भट्टों पर ईंट ढ़ोते मजदूर मेहनत करने को मजबूर!…

दिल को अपने रुलाना नहीं चाहती

दिल को अपने रुलाना नहीं चाहती। सच की राहों पे जाना नहीं चाहती। ज़िंदगी है ज़रा सी मैं जी लूं इसे, मुद्दा कोई बनाना नहीं चाहती।। छीन लेती है खुशियां…

विश्व कविता दिवस पर विशेष पंक्तियां

प्रेम को सींचती,बढ़ रही कविता है। ज़िंदगी को सकल, गढ़ रही कविता है।। कर जतन, दर्द पीड़ा सहेजे हृदय चांद के शीर्ष पर, चढ़ रही कविता है।। ✍️अंजली श्रीवास्तव

माँ

माँ के’ आशीष में’ सच मानिए’ इतना दम है। कि उसके’ सामने लाचार दीखता यम है। माँ के’ आँचल की’ छाँव बरगदों पे’ है भारी, जिसको’ सूरज भी’ मानता है’…

गजल

रूह पहने इक बदन से मर रहे हैं हर्फ़ जो मेरे सुख़न से मर रहे हैं कोई ख़्वाहिश दिल में जल कर मर गई है और हम उसकी जलन से…

“बेटियाँ”

हर दिन सुबह की पहली किरन के साथ लाज़मी हैं कि जागें ये जुगनू सी चमकती आँखे मुस्कुराते होंटो से कितनी तितलियाँ बिखेरतीं किलकारियों में गूँजती कितनी बाँसुरियों की आवाज़ें…