रूपाजीवा
एक स्त्री बिकती है, या बेच दी जाती है जिस्मफ़रोशो की मंडी में; संसार के लिए , खो देती है स्त्रीत्व, न बहन, न बेटी, न माँ; रह जाती है…
राजसरकारो का राजदूत
एक स्त्री बिकती है, या बेच दी जाती है जिस्मफ़रोशो की मंडी में; संसार के लिए , खो देती है स्त्रीत्व, न बहन, न बेटी, न माँ; रह जाती है…
बैशाख के महीने में तपती धूप, गर्मी,उमस से परे… गेहूं की बलिया बीनते बच्चे, बोरे में भरते, भरने को पेट, ईंट भट्टों पर ईंट ढ़ोते मजदूर मेहनत करने को मजबूर!…
यही तो है दुनिया मेरी किताबों का मेरा जहां, इससे ही मिलती ऊर्जा इससे ही मिलता ज्ञान । एकाकीपन आने ना दे जीवन में यदि हो किताब, इससे बढ़कर मित्र…
दिल को अपने रुलाना नहीं चाहती। सच की राहों पे जाना नहीं चाहती। ज़िंदगी है ज़रा सी मैं जी लूं इसे, मुद्दा कोई बनाना नहीं चाहती।। छीन लेती है खुशियां…
तू है दिलबर मेरा तू ही गमखार है। तू मेरा प्यार है, तू मेरा प्यार है।। दूर तुझसे रहूं ये मुनासिब नहीं, मेरी चाहत का तू ही तो हकदार है।।…
प्रेम को सींचती,बढ़ रही कविता है। ज़िंदगी को सकल, गढ़ रही कविता है।। कर जतन, दर्द पीड़ा सहेजे हृदय चांद के शीर्ष पर, चढ़ रही कविता है।। अंजली श्रीवास्तव
माँ के’ आशीष में’ सच मानिए’ इतना दम है। कि उसके’ सामने लाचार दीखता यम है। माँ के’ आँचल की’ छाँव बरगदों पे’ है भारी, जिसको’ सूरज भी’ मानता है’…
रूह पहने इक बदन से मर रहे हैं हर्फ़ जो मेरे सुख़न से मर रहे हैं कोई ख़्वाहिश दिल में जल कर मर गई है और हम उसकी जलन से…
हर पल बदलता है हर लम्हा बदलता है सेकंड और मिनट की सुई भी चलती जाती है पर फिर भी जब गलती होती उस सुई के सामने खड़ी हो जाती…
हर दिन सुबह की पहली किरन के साथ लाज़मी हैं कि जागें ये जुगनू सी चमकती आँखे मुस्कुराते होंटो से कितनी तितलियाँ बिखेरतीं किलकारियों में गूँजती कितनी बाँसुरियों की आवाज़ें…