प्रेम को सींचती,बढ़ रही कविता है।
ज़िंदगी को सकल, गढ़ रही कविता है।।
कर जतन, दर्द पीड़ा सहेजे हृदय
चांद के शीर्ष पर, चढ़ रही कविता है।।
अंजली श्रीवास्तव
राजसरकारो का राजदूत
प्रेम को सींचती,बढ़ रही कविता है।
ज़िंदगी को सकल, गढ़ रही कविता है।।
कर जतन, दर्द पीड़ा सहेजे हृदय
चांद के शीर्ष पर, चढ़ रही कविता है।।
अंजली श्रीवास्तव