महाकुंभ नगर। संगम क्षेत्र में आगरा के एक व्यवसायी ने दान की परंपरा को अनूठे तरीके से निभाते हुए अपनी 13 वर्षीय बेटी को जूना अखाड़े को सौंप दिया था। महंत कौशल गिरि ने लड़की को जूना अखाड़ा में शामिल कराने और साध्वी बनाने का दावा किया था, लेकिन शुक्रवार को इसमें एक नया मोड़ आ गया।
जूना अखाड़े ने इसे नियम विरुद्ध मानते हुए महंत कौशल गिरि को सात वर्ष के लिए निष्कासित कर दिया। लड़की को अस्वीकार करते हुए सम्मान के साथ उसके माता-पिता के साथ घर भेज दिया। आपको बता दें क‍ि छह जनवरी को जूना अखाड़ा के महंत कौशल गिरि को आगरा के एक व्यवसायी ने अपनी बेटी दान कर दिया था।

19 जनवरी को लड़की का करवाना था प‍िंडदान

उसे गंगा स्नान करवाकर नामकरण किया गया था। 19 जनवरी को उसका पिंडदान करवाकर विधिवत संन्यास देने की तैयारी थी। उसके पहले शुक्रवार की दोपहर महाकुंभ मेला क्षेत्र के सेक्टर 20 स्थित अखाड़ा नगर में जूना अखाड़ा की आमसभा बुलाई गई। सभा में संरक्षक महंत हरि गिरि, सभापति श्रीमहंत प्रेम गिरि, अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीमहंत नारायण गिरि सहित अखाड़े के प्रमुख पदाधिकारी शामिल हुए।

22 साल से कम आयु वाले नहीं हो सकते अखाड़े में शाम‍िल

इस दौरान नाबालिग लड़की को बिना अखाड़े को सूचित किए कौशल गिरि द्वारा दान में लेने पर संतों ने रोष जताया। सभा में कहा गया कि अखाड़े की परंपरा में 22 वर्ष से कम किसी को शामिल होने पर रोक है। अखाड़े में अचानक हुई इस गतिविधि से पूरा मामला ही उलट गया है।

महंत को सात साल के ल‍िए क‍िया निष्कासित

नाबाल‍िग लड़की को अखाड़े में शाम‍िल कर लेने पर विचार विमर्श क‍िया गया। इसके बाद तय क‍िया गया कि लड़की को उसके माता-पिता के साथ वापस घर भेज दिया जाए। इस दौरान श्रीमहंत नारायण गिरि ने बताया कि आमसभा में कौशल गिरि को सात वर्ष के लिए अखाड़े से बाहर कर दिया गया है। कभी भी क‍िसी नाबाल‍िग को अखाड़े में शाम‍िल नहीं कि‍या जाता है।

चर्चा में हैं तीन साल के संत श्रवण पुरी

दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समागम महाकुंभ में वैसे तो संत और महात्माओं का आध्यात्मिक कुनबा जुट रहा है। इसमें एक ऐसे भी संत हैं जिनकी उम्र अभी केवल साढ़े तीन साल की है। उनका नाम है श्रवण पुरी। इन्हें संत का दर्जा जूना अखाड़े के बाबाओं ने अभी से दे दिया है। ऐसा इसलिए क्योंकि श्रवण पुरी के लक्षण साधु संन्यासियों के जैसे हैं।

श्रवण पुरी जूना अखाड़े के अनुष्ठान में शामिल होते हैं और आरती करते हैं। श्रवण पुरी का व्यवहार आम बच्चों से बिल्कुल अलग है। भोजन के अलावा चॉकलेट नहीं बल्कि फल खाना पसंद करते हैं। वो गुरु भाइयों के साथ खेलते हैं। पापा मम्मी को याद करने के बजाए संतों के साथ तुतलाती भाषा में श्लोक, मंत्र बोलते हैं।

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