चंडीगढ़। इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला राष्ट्रीय राजनीति में तीसरा मोर्चा बनाने चाहते थे। अपने पगड़ी बदल भाई पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और जिगरी दोस्तों बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के साथ चौटाला ने क्षेत्रीय दलों को एक मंच पर लाने के लिए लंबी मुहिम चलाई।

चौटाला का ये सपना नहीं हो पाया पूरा

चौटाला का भाजपा और कांग्रेस की टक्कर में तीसरे मोर्चा खड़ा करने का सपना पूरा नहीं हो पाया। शिक्षक भर्ती घोटाले में जेल जाने के बाद उन्होंने तीसरे मोर्चे की जिम्मेदारी अपने छोटे बेटे और इनेलो के प्रधान महासचिव अभय सिंह चौटाला पर डाली, जो लगातार क्षेत्रीय दलों को एक मंच पर लाने की कोशिश में जुटे रहे।
इस दौरान ओमप्रकाश चौटाला भी निरंतर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, सामाजिक न्याय के बड़े योद्धा शरद यादव और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती संपर्क में रहे।

इनेलो ने बसपा के साथ लड़ा था पिछला चुनाव

पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में इनेलो ने बसपा के साथ मिलकर लड़ा, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर तीसरे मोर्चे की बात नहीं बन पाई। चौटाला चाहते थे कि तीसरे मोर्चे का नेतृत्व नीतीश कुमार करें, लेकिन वह पाला बदल गए। दरअसल लंबे समय से भारतीय राजनीति में तीसरे मोर्चे की बात उठती रही है।

लोकलाज से चलता है लोकराज का मंत्र अपनाया

पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल ने ‘लोकराज लोकलाज से चलता है’ का जो मंत्र दिया था, उसे ओपी चौटाला ने बखूबी अपनाया। वह ओमप्रकाश चौटाला ही थे जिन्होंने मूल्य वर्धित कर प्रणाली अपनाने की दिलेरी दिखाई। अपने पिता की तरह चौटाला ने कई ऐसे लोगों को राजनीति में मुकाम तक पहुंचाया, जिन्होंने कभी सपने में भी ऐसा नहीं सोचा था।

नाम के साथ चौटाला जोड़ गांव को राष्ट्रीय स्तर पर कर दिया प्रसिद्ध

ताऊ देवीलाल के बड़े बेटे ने अपने नाम के आगे चौटाला जोड़कर अपने गांव को राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि दिलाई। चौधरी ओमप्रकाश परिवार के पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने अपने नाम के साथ गांव का नाम चौटाला जोड़ दिया। इसके बाद उनके छोटे भाई रणजीत सिंह से लेकर परिवार के सभी लोगों ने अपने नाम के साथ चौटाला लगाना शुरू कर दिया। इससे चौटाला गांव को राजनीतिक गलियारों में नई पहचान मिली।

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