गांव के लगभग 25 मुस्लिम परिवारों ने अपने नाम के साथ जोड़े हिन्दू सर नेम

जौनपुर शहर से करीब 30 से 35 किलोमीटर की दूरी पर केराकत तहसील में एक छोटा सा गाँव है डेहरी। डेहरी गाँव के लोग अपने नाम में मिश्रा, दुबे, शुक्ला जैसे अपने पुरखों के उपनाम जोड़ रहे हैं। यहाँ के रहने वाले 60 साल के नौशाद अहमद ने अपने घर की शादी के कार्ड पर नौशाद अहमद दुबे लिखा तो लोग चौंक गए। इसके बाद यह गाँव सुर्खियों में आ गया। मीडिया उन तक पहुँच गई।

नौशाद अहमद का कहना है कि उनके पूर्वज हिंदू थे, इसलिए अब वे अपने नाम के साथ अपने पूर्वजों के उपनाम और गोत्र लिख रहे हैं। नौशाद अहमद दुबे ने बताया कि लगभग सात पीढ़ी पहले उनके पूर्वजों में से एक लाल बहादुर दुबे मुस्लिम बन गए थे। वो अपना नाम लाल मोहम्मद शेख लिखने लगे थे। उनका कहना है कि उनके पूर्वज आजमगढ़ के रानी की सराय से आए थे।

डेहरी गांव के बहुत से ऐसे परिवार हैं जिन्होंने इस्लाम तो नहीं छोड़ा बल्कि हिन्दू धर्म वाले टाइटल को अपनाना शुरू कर दिया है।

इसमें ब्राह्मण टाइटल ही सभी ने स्वीकार किया है, इन लोगों का कहना है कि जब उन्होंने अपने खानदान की जड़ खंगालनी शुरू की तो उन्हें पता चला कि लगभग सात पीढ़ी पहले उनके पुरखे ब्राह्मण हिन्दू हुआ करते थे।

नौशाद रोज पांच बार नमाज अदा करते हैं और इस्लामिक रीति-रिवाजों का पालन करते हैं। उनका कहना है कि “मैं पुनः धर्म परिवर्तन करने की इच्छा नहीं रखता हूं।” हालांकि वह माथे पर तिलक लगाने के खिलाफ भी नहीं हैं।

नौशाद ने बताया कि दो साल पहले उन्होंने इतिहासकार और विशाल भारत संस्थान के अध्यक्ष राजीव श्रीवास्तव से अपनी जाति का पता लगाने में मदद ली थी। श्रीवास्तव ने रिकॉर्ड्स के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि नौशाद के पूर्वज ब्राह्मण थे और उनका गोत्र ‘वत्स’ था।

आपको बता दें कि नौशाद अहमद यहां नौशाद अहमद दुबे के नाम से जाने जाते हैं। वहीं गुफरान को ठाकुर गुफरान, इरशाद अहमद को इरशाद अहमद पांडे और अब्दुल्ला को अब्दुल्ला दुबे के नाम से जाने जाते हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, नौशाद अहमद कहते हैं, “अनेक मुस्लिम परिवारों ने दशकों से चौधरी, सोलंकी, त्यागी, पटेल, राणा, सिकरवार जैसे उपनामों का उपयोग किया है। किसी ने सवाल नहीं उठाया। लेकिन दुबे और ठाकुर जैसे उपनामों के इस्तेमाल से अब ध्यान आकर्षित हुआ है।” नौशाद ने यह भी बताया कि उन्होंने अपने नाम के साथ शेख नहीं लगाया, लेकिन उनके रिश्तेदार ऐसा करते थे। हमने ऐसा इसलिए नहीं किया क्योंकि यह एक अरबी उपनाम है। यह भारतीय नहीं है।

ऐसे में अपने पुरखों की याद में मुस्लिम नाम के आगे हिन्दू नाम का टायटल दुबे लिखकर अपने पुरखों से नाता जोड़ लिया गया है।

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