लखनऊ। भारतीय संविधान में निहित आरक्षण की व्यवस्था उसके मूलभूत उद्देश्यों की प्राप्ति में कितनी कारगर रही है, दैनिक जागरण संवादी के मंच पर रविवार को इस पर तीखी बहस हुई।
‘संविधान और आरक्षण’ विषय पर केंद्रित इस सत्र में नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के विभागाध्यक्ष व दलित चिंतक प्रो. विवेक कुमार, सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता व संविधान विशेषज्ञ अश्विनी उपाध्याय और कानपुर के अरमापुर पीजी कॉलेज में राजनीति शास्त्र के सहायक प्रवक्ता धीरेंद्र दोहरे ने सामाजिक न्याय की यात्रा में आरक्षण की भूमिका, उपादेयता, प्रासंगिकता व समीक्षा के गूढ़ मुद्दों पर बेबाकी से विचार व्यक्त किए। सत्र का संचालन दैनिक जागरण मेरठ के समाचार संपादक रवि प्रकाश तिवारी ने किया।आरक्षण को प्रतिनिधित्व और गरीबी उन्मूलन का कार्यक्रम मत बनाइए : विवेक कुमार
प्रो. विवेक कुमार ने कहा कि कुछ लोग आरक्षण को नौकरियों का खेल समझ रहे हैं जबकि यह राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया है। देश के सभी समाजों को कुल जनसंख्या में उनकी आबादी के अनुपात के आधार पर विभिन्न संस्थाओं में प्रतिनिधित्व देकर ही राष्ट्र सशक्त बनेगा। आरक्षण को प्रतिनिधित्व और गरीबी उन्मूलन का कार्यक्रम मत बनाइए। कुछ समाजों की हजारों वर्षों की सांस्कृतिक पूंजी से लड़ने के लिए वंचित वर्ग को एक-दो पीढ़ियों का नहीं बल्कि हजारों वर्षों का आरक्षण देना पड़ेगा।
विवेक कुमार ने कहा, संविधान न्याय की पुस्तक नहीं, सामाजिक किताब है। नौकरियों में आरक्षण को लेकर राजनीतिक नेतृत्व की मंशा पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि 1960 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर कहा था कि मुझे आरक्षण अच्छा नहीं लगता है। यह दोयम दर्जे के नागरिक तैयार करेगा। नतीजा यह हुआ की सत्तर के दशक तक नौकरियों में आरक्षित वर्ग का जबर्दस्त बैकलाग पैदा हो गया और अस्सी का दशक आते-आते यह कहा जाने लगा कि नौकरियों में आरक्षित वर्ग के लिए योग्य अभ्यर्थी नहीं मिल रहे।
आरक्षण से नहीं मिल सकती समानता : अश्विनी उपाध्याय
संविधान विशेषज्ञ अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि यदि आरक्षण रूपी दवा खाने के बावजूद आपकी बीमारी ठीक नहीं हो रही है तो हमें यह देखना होगा कि यही औषधि ठीक है या इसके साथ कुछ और भी लेने की जरूरत है। जाति व्यवस्था 1800 वर्ष पुरानी है जबकि गोत्र व्यवस्था 10,000 वर्ष पुरानी है। जाति हमें तोड़ती है, गोत्र हमें जोड़ता है। संविधान के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जाति व्यवस्था के साथ गोत्र को भी शामिल करना चाहिए था। यह भी सवाल किया कि आरक्षण का लाभ उन्हें मिलना चाहिए, जो सांसद-विधायक, मंत्री, राष्ट्रपति या ऊंचे ओहदों वाले अधिकारी बन चुके हैं या फिर उन्हें जो इसके लाभ से अब तक वंचित हैं?
अश्वनी उपाध्याय ने कहा कि आरक्षण देकर समान अवसर मिल ही नहीं सकता। समानता तब आएगी जब मालिक और मजदूर के बच्चों की किताब एक होगी। इसके लिए देश में समान शिक्षा व्यवस्था होनी चाहिए। यह भी कहा कि दलित समाज घटिया कानून की मार झेल रहा है। देश में वक्फ बोर्ड की 10 लाख एकड़ जमीन में से छह लाख एकड़ दलितों की भूमि कब्जा करके हासिल की गई है। दलितों को आर्थिक न्याय दिलाने के लिए पुलिस-प्रशासन और न्यायपालिका से भ्रष्टाचार खत्म करना जरूरी है।
आरक्षण में कोटा के अंदर कोटा का निर्णय अत्यंत दुखद : धीरेंद्र दोहरे
धीरेंद्र दोहरे ने आरक्षण की स्थिति की समीक्षा को समीचीन बताने के साथ यह भी कहा कि राज्यों को आरक्षण में कोटा के अंदर कोटा तय करने का अधिकार देने का निर्णय अत्यंत दुखद है। इस आधार पर तो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए आरक्षण का जो कोटा निर्धारित किया गया है, उसमें इस वर्ग की विभिन्न जातियों के लिए भी अलग-अलग कोटा तय होना चाहिए। इससे बड़ी समस्या होगी। उन्होंने कहा कि आज जाति आधारित जनगणना की मांग जोर पकड़ती जा रही है लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि देश को सुरक्षित हाथों में रखना है।
धीरेंद्र दोहरे ने कहा, कि आरक्षण-आरक्षण कहते-कहते कहीं समाज न टूट जाए। यह भी कहा कि राजनीतिक दल आरक्षण को लेकर विभिन्न वर्गों में व्याप्त असुरक्षा की भावना को भुनाते भी हैं। समाज में आर्थिक तरक्की हुई है लेकिन यह तरक्की संविधान की मंशा के अनुरूप नहीं हो पाई है। सामाजिक न्याय के पैमाने पर उन्होंने बसपा सरकार के रिपोर्ट कार्ड को सबसे अच्छा और इस मामले में भाजपा के रिकार्ड को कांग्रेस सरकारों से काफी बेहतर ठहराया। उन्होंने कहा कि आरक्षण में कोटे के अंदर कोटा तय किए जाने से पहले बैकलाग के पद भरे जाने चाहिए।