बन्धन तो कई तरह के होते हैं…..
जन्म का बंधन….
सात फेरों का बन्धन…
जिम्मेदारियों का बंधन…

मन_का_बंधन….
एक मन का ही बन्धन है जो
रेशम सा कोमल…हवा सा हल्का….
नदी सा पवित्र….है।
ये ऐसा बन्धन है जो अपने आप ही बंध जाता है…
ये अजीब सा एहसास है जो कभी कभी बर्षों के सम्बंध में भी नहीं होता….और कभी पलभर में ही जुड़ जाता है…।
इसमें अल्फ़ाज़ नहीं बस केवल जज़्बात होते है….एहसास होते है ….जो बिन कहे ही सब_कुछ कह जाते है…।
दूर हो या पास मन में एक अलग ही जगह बन जाती है…..।

इसलिए मन का बंधन एहसासों का बंधन है जज्बातों का बंधन है….।।

✍️ डाक्टर स्वाति मिश्रा

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