सचिन त्यागी
बागपत जिले में बरनावा लाक्षाग्रह को दरगाह और कब्रीस्तान बताने वालों को अदालत ने खरिज कर दिया है। 53 साल से इस पर विवाद चला आ रहा था। अदालत के फैसले के बाद लाक्षाग्राह पर पुलिस बल तैनात कर दिया गया है। ज्ञानवापी फैलसे के बाद बागपत में भी एतिहासिक फैसले से खुशी की लहर है।
बागपत जिले के पूर्वी दिशा में बसा बरनावा गांव इतिहास के नजर से महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां के लाक्षाग्रह को महाभारत काल से जुड़ा बताया जाता है। कहा जाता है कि यही वो लाखक्षा्रह है जहां पांच पांडवों को मारने के लिए दुयोधन ने साजिस रची और लाख का एक महल बनाया। जिसमें आग लगाकर पांडव सुरंग के रास्ते अपन जान बचाकर निकल गये है। इस लाक्षग्राह पर महाभारत काल के अवशेष मौजूद है। लेकिन 1970 के दशक में करीब 53 साल पहले मुकीद खान के एक व्यक्ति ने कृष्ण दत्त ब्रह्मचारी पर वाद दर्ज कराया था कि वह मुस्लिमो के कब्रिस्तान को खुर्द बुर्द करके वहाँ हवन आदि कर रहे है और उक्त टीले को पांडव कालीन लाक्षागृह होने का दावा कर रहे है। यह मुकदमा मेरठ की अदालत में सात साल चला। बागपत जिला बनने के बार इसको 1997 में बागपत में स्थान्तरित हो गया। तब से यह मुकदमा बागपत सिविल जूनियर डिवीजन प्रथम की अदालत में विचारधीन था तमाम बहस और साक्ष्यों के बाद सोमवार को बागपत की अदालत ने फैसला सुना दिया है। मुश्लिम पक्ष को इस फैसले जहां झटका लगा है वही ज्ञान वापी के बाद बागपत में इस फैसले से खुशी की लहर है।
कोर्ट में पेश किये गये साक्ष्यों के आधार पर अदालत ने माना है कि दावा करने वाले पक्ष कोई ठोस साक्ष्य पेश नहीं कर पाया जबकि जमीन सरकारी अभिलेखों में लाक्षाग्रह की दर्ज है।

