अशोक बालियान, चेयरमैन पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन।
महाराजा सूरजमल का जन्म 13 फरवरी, 1707 को हुआ था। वे 22 मई, 1755 को डीग में राजगद्दी पर बैठकर भरतपुर (Bharatpur) के शासक बने थे। महाराजा सूरजमल ने मुगलों की राजधानी और वैभव के प्रतीक आगरा (Agra) किला (Agra fort) पर भी अधिकार कर लिया था।
14 जनवरी, 1761 में हुए पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठा शक्तिओं का संघर्ष अहमदशाह अब्दाली से हुआ था। यदि सदाशिव भाऊ के महाराजा सूरजमल से मतभेद न होते, तो इस युद्ध का परिणाम भारत के पक्ष में होता। इतिहास के पन्ने पलटने पर पता चलता है कि पानीपत के तीसरा युद्ध की नींव 10 जनवरी 1760 को अफगानी हमलावर अहमद शाह अब्दाली द्वारा दिल्ली में मराठा सेनापति दत्ताजी सिंधिया की हत्या कर दिल्ली पर कब्जा करने के साथ ही रखी गई थी।
महाराजा भरतपुर सूरजमल ने मराठा सेना के पानीपत युद्ध में हारने के बाद युद्ध से लौट रही बची हुई सेना के साथ आई स्त्रियों व बच्चों को शरण दी थी और हालात सामान्य होने पर अपनी सेना की सुरक्षा में मराठा स्त्रियों व बच्चों को आर्थिक व रसद की सहायता प्रदान कर महाराष्ट्र भिजवाया था।
25 दिसम्बर, 1763 को रूहेला सरदार नजीबुद्दौला के साथ हुए युद्ध में नजीबुद्दौला के संधि प्रस्ताव देने के बाद गाजियाबाद और दिल्ली के मध्य हिंडन नदी के तट पर महाराजा सूरजमल की एक अफगान सैनिक ने धोखे से हत्या कर दी थी।
महाराजा सूरजमल के बलिदान के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र जवाहर सिंह ने 4 अक्टूबर 1764 को दशहरे के दिन पूजा की और दिल्ली पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में महाराज जवाहर सिंह ने वहां लगे अष्टधातु के किवाड़ उतार लिए थे, जो 462 साल पहले अलाउद्दीन खिलजी चितौड़ से जितकर लाया था। इस तरह उन्होंने हिन्दुओ के इस कलंक को भी धो दिया था। अगर आपसी फूट न होती तो एक तो हिंदुस्तान मुगलों से आजाद हो जाता और न ही अंग्रेजो का शासन देश पर आता।
आज हम भरतपुर के पूर्व महाराजा सूरजमल की पुण्यतिथि पर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते है। वे एक दूरदर्शी, एक महान योद्धा थे, जिनकी वीरता और बलिदान को हमेशा याद किया जाएगा।