अशोक बालियान, चेयरमैन,पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन
भारत के मणिपुर राज्य में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच झड़प के एक दिन बाद 4 मई 2023 को कांगपोकपी जिले के बी फीनोम गांव के पास हमला हुआ था। इस दौरान भीड़ ने दो कुकी महिलाओं को निर्वस्त्र कर सड़क पर घुमाया था। पीड़ितों ने कहा है कि इस दौरान उन्हें सुनसान इलाके में लेजाकर उन्हें यौन यातना दी गई। इस घटना का एक वीडियो वायरल होने के बाद हर ओर गुस्सा है। इस घटना पर 21 मई को केस दर्ज हुआ था, और अब वीडियो वायरल होने पर इस घटना ने सभी को झकझोर दिया है। पीड़ित परिवार की ओर से दर्ज कराई शिकायत के मुताबिक एक महिला के साथ भीड़ ने गैंगरेप भी किया था।
यह पहली बार नहीं है कि मणिपुर में जारी हिंसा के दौरान महिलाओं को निशाना बनाया गया है। 4 जून को मणिपुर के पश्चिम इंफाल जिले में भीड़ ने एक एंबुलेंस को रास्ते में रोक उसमें आग लगा दी। एंबुलेंस में सवार 8 साल के बच्चे, उसकी मां और एक अन्य रिश्तेदार की मौत हो गई थी। पीड़िता मां मैतेई समुदाय से आती थीं। गौरतलब है कि मैतेई समुदाय को एसटी (अनुसूचित जनजाति) का दर्जा देने के कोर्ट के फैसले के खिलाफ 3 मई को मणिपुर में मैतेई और कुकी जनजातियों के बीच हिंसक झड़प शुरू हो गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले को स्वत: संज्ञान लिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने केंद्र और राज्य सरकार को सख्त कार्रवाई का निर्देश दिया है। चीफ जस्टिस ने यहां तक कह दिया कि या तो सरकार कार्रवाई करे, नहीं तो हम खुद इस मामले में हस्तक्षेप करेंगे। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मेरा हृदय पीड़ा से भरा है, क्रोध से भरा है। और किसी भी गुनहगार को बख्शा नहीं जाएगा।
मणिपुर एक काफी छोटा, 33-35 लाख की विविध किस्म की आबादी वाला राज्य है। मणिपुर में मैतेई, कूकी और नगा तीन जातीय समुदाय मुख्य रूप से निवास करते हैं और इनके बीच जातीय संघर्ष चलते रहते हैं। मैतेई वैष्णव हैं, जो अधिकतर इम्फाल में रहते है। कूकी ईसाई हैं और वे पहाड़ी क्षेत्र में रहते है। नगा भी अधिकतर ईसाई हैं और पहाड़ी क्षेत्र के ही निवासी हैं।
मणिपुर की राजधानी इम्फाल बिल्कुल बीच में है। ये पूरे प्रदेश का 10 प्रतिशत हिस्सा है, जिसमें प्रदेश की 57 प्रतिशत आबादी रहती है। बाकी चारों तरफ 90 प्रतिशत हिस्से में पहाड़ी इलाके हैं, जहां प्रदेश की 43 प्रतिशत आबादी रहती है।
भारतीय संविधान के आर्टिकल 371 सी के तहत मणिपुर की पहाड़ी जनजातियों को विशेष दर्जा और सुविधाएं मिली हुई हैं, जो मैतेई समुदाय को नहीं मिलती है। मणिपुर में लैंड रिफॉर्म एक्ट’ की वजह से मैतेई समुदाय पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदकर बस नहीं सकता, जबकि जनजातियों पर पहाड़ी इलाके से घाटी में आकर बसने पर कोई रोक नहीं है। इससे दोनों समुदायों में मतभेद बढ़े हैं।
मणिपुर में मैतेई समुदाय को एसटी (अनुसूचित जनजाति) का दर्जा देने के कोर्ट के फैसले के बाद मौजूदा तनाव की शुरुआत गवर्नमेंट लैंड सर्वे के विरोध में चुराचंदपुर जिले से हुई थी। और 27-28 अप्रैल की हिंसा में मुख्य तौर पर पुलिस और कुकी आदिवासी आमने-सामने थे। इसके ठीक पांचवें दिन यानी तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर ने आदिवासी एकता मार्च’ निकाला था। ये मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने के विरोध में था। यहीं से स्थिति काफी बिगड़ गई थी।और पूरा राज्य हिंसा की आग में झुलसना शुरू हो गया था।
वर्ष 1700 के दशक की शुरुआत में मणिपुर और म्यांमार दोनों स्वतंत्र राज्य थे। मणिपुर के पहले हिन्दू महाराजा पम्हीबा थे, जिनका शासनकाल 1709 से 1751 तक रहा था। उन्होंने मैतेई धर्म त्याग कर हिन्दू धर्म अपना लिया था और अपने साम्राज्य में इसे लागू कर दिया था। इसप्रकार उन्होंने ही सभी मैतेई समुदाय के लोगों को हिन्दू धर्म शामिल किया था।
बर्मा ने वर्ष 1819 में राजा मरजीत के शासन काल में मणिपुर पर हमला कर दिया था और चाही खारेट तुनगपा ने बतौर राजा मणिपुर में शासन संभाल लिया था, लेकिन कुछ सालों बाद वर्ष 1825 में गंबीर सिंह के नेतृत्व में मणिपुरियों ने राजा के साथ जंग लड़ी और बर्मा के राजा (तोंगो वंश) को हराकर मणिपुर में अपने शासन को पुनर्स्थापित कर लिया था। उनके निधन के बाद उनके पुत्र चंद्रकीर्त राजा बने थे। फिर वर्ष 1886 में उनकी मृत्यु के बाद उनके जयेष्ट पुत्र सूरज चंद की ताजपोशी की गई थी।
मणिपुर में अपने पति के साथ तीन वर्ष बिताने वाली अंग्रेज लेखिका अपनी पुस्तक My three years in Manipur and escape from the recent mutiny by Grimwood 1892 में लिखती है कि मणिपुर के राजा सूरज चंद का शासन वर्ष 1890 तक ही चला, क्योंकि एक रात्री में उनके ख़िलाफ़ भाइयों ने बग़ावत कर दी थी। सिंहासन के इस रक्तहीन संघर्ष के बाद कुल्लाचंद्र मणिपुर के राजा बन गए थे, लेकिन टिकेंद्रजीत उसके उत्तराधिकारी बनकर राज्य का कामकाज देख रहे थे, जबकि अंग्रेजों को यह पसंद नहीं था। इस घटना को मणिपुर के इतिहास में ‘राजमहल विद्रोह’ के रूप में जाना जाता है।
इसी बीच वर्ष 1891 के अप्रैल माह में ब्रितानी हुकूमत की फ़ौज ने मणिपुर पर हमला कर दिया था। और अंग्रेजों के राजनीतिक एजेंट ग्रिमवुड ने तब राजा कुलाचन्द्र को उनके उतराधिकारी देशभक्त राजा टिकेंद्रजीत को अंग्रेजों को सौंपने के लिए कहा था। लेकिन राजा कुलाचंद्र ने इसके लिए साफ इनकार कर दिया था। 27 अप्रैल, 1891 को कंगला पैलेस को अंग्रेजों ने अपने कब्जे में ले लिया था। और अंग्रेजी अदालत द्वारा टिकेंद्रजीत को मौत की सजा सुनाई गई थी। महाराजा चंद्रकीर्त की वर्ष 1886 में मौत के बाद ब्रिटेन ने अंदरूनी कलह का फायदा उठाकर मणिपुर पर नियंत्रण स्थापित कर लिया था।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मणिपुर राज्य जापान की सेना और ‘मित्र देशों’ की सेना के बीच चल रहे युद्ध का एक बड़ा केंद्र भी रहा था। आखिरकार इस युद्ध की समाप्ति के बाद ब्रितानी हुकूमत ने वर्ष 1947 में प्रान्त की बागडोर महाराजा बुधाचंद्र को सौंप दी थी।
इन दिनों धर्मिक व जातीय आग में झुलस रहे मणिपुर में फ़ोर्स को तैनात करने में सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि यहाँ पर दोनों पक्षों की महिलायें भी जानबूझकर मार्गों को अवरुद्ध करती रहती हैं और सेना व सुरक्षा बलों के संचालन में हस्तक्षेप कर रही है, इस तरह का अनुचित हस्तक्षेप हानिकारक है। यह कार्य एक बड़ी साजिश का हिस्सा हो सकता है, ताकि देश व राज्य का सिस्टम बदनाम हो।यह भी दुर्भाग्य है कि जातीय हिंसा की सबसे बड़ी शिकार मणिपुरी महिलाएं ही हो रही हैं।
इसीलिए इस समय मणिपुर राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति पर तत्काल उच्चतम स्तर द्वारा ध्यान दिए जाने की जरूरत है।