… बहुत प्रकार है साड़ी के पर मूल रूप से साड़ी आत्म कवच है……
जीवन के विभिन्न चरणों में अलग अलग तरीके से महिलाएं साड़ी पहनती है… युवा पीढ़ी का अलग ट्रेंड, परिपक्व पीढ़ी का अलग ट्रेंड. वृद्धावस्था का अलग ट्रेंड..फिर भी महिला परिधानों में साड़ी अपने शीर्ष स्थान पर कायम है….. अपनी भारतीय संस्कृति का परचम विश्व स्तर पर लहराने के लिए साड़ी को भारतीय धरोहर के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है.. संस्कृति ही संस्कार मजबूत करती है…..

.साड़ी पर कुछ पँक्तियाँ प्रस्तुत है

#साड़ी

मैं साड़ी हूं…..
मर्यादा का आवरण
शोभित मंगलकारी हूं…..

मैं साड़ी हूं…
मैं जन्मीं हूं खेतों में
पेड़ों में कीड़ों में.
मैं पलती हूं अक्सर
बुनकरों के मस्तिष्क में…..
धागे के हर सूत पर
रहती बलिहारी हूं….
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मैं साड़ी हूं……

मैं साड़ी हूं
तंत्र से यंत्र तक
माप होती रहती मेरी…
कई गांवों से शहरों तक
होती हैं यात्राएं मेरी….
शहरों मे माल मे हूं तो
गांवों मे फुलवारी हूं

मैं साड़ी हूं………

मैं साड़ी हूं…..
मेरे रूप हैं कई….
मेरे अनुरूप हैं कई
पटोला शिफान और कांजी वरम
जंचती बहुत है बनारसी रेशम….
सुन्दर रूप बनाकर नारी का
मैं भी मनमोहक और प्यारी हूं……
मैं साड़ी हूं…

मैं साड़ी हूं….
सदियों से टिकी हैं मुझ पर आशाएं…,,
मुझसे होकर गुजरी है कई सभ्यताएं…
घूंघट आंचल या हो
पल्लू
सब की मैं कलाकारी हूं
मैं साड़ी हूं….

मैं साड़ी हूं….
मैं धरोहर हूं….
परम्परा और मर्यादा की शान हूं.
संस्कार से सजी सात्विक परिधान हूं.
तीज त्योहारों में दिखाती हूं छटा
वैसे मैं तो मनुहारी हूं….

मैं साड़ी हूं…….

✒️Shubha Mishra

मौलिक एवं स्वरचित

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