इश्क़ की चाहत भी तुझ से ही है,
और इस तड़प की शिकायत भी तुझ से ही है,
ख्वाबों की उड़ान भी तुझ से ही है,
और सुबह की शुरूआत भी तुझ से ही है,
साथ में हँसना, अकेले में रोना,
सीने में धड़कन का होना तुझ से ही है,
बिखरी जुल्फों को सँवारना, रेंगती उँगलियाँ का ठिकाना,
मेरा हर एक बहाना बस तुझ से ही है,
बातों बातों पे लड़ना, फिर टूटकर इक दूजे में बिखरना,
मेरा हर किस्सा पुराना तुझ से ही है,
साथ लहरों सा बहना,
जाके साहिल में मिलना,
जिंदगी की कश्ती में बहना भी तुझ से ही है,
मेरी सांसो का चलना, मेरे लहु का बहना,
मेरी हिचकी का आना भी तुझ से ही है,
मेरी जख्मों का मरहम,
मेरे सपनों का संगम,
मेरा हर एक मौसम तुझ से ही है,
मेरे अश्क का दर्पण, मेरे रूह का तर्पण,
मेरा रोम रोम मेरा कण कण, सिर्फ तुम से ही है… हे मेरे आराध्य मेरे कृष्ण सब कुछ सिर्फ तुमसे ही है।।।

✍️ डा स्वाति मिश्रा “कशिश”

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