बोलती हैं आंखे और बोलते हैं लफ़्ज़
पर मौन से सुंदर कोई बात नहीं होती
नाराजगी होती है, नफ़रत भी होती है
पर वाणी से बढ़कर कोई घात नहीं होती…….
बांटे गए हम प्रार्थनाओं के तरीको मे
पर हृदय की पुकार से बढ़कर अरदास नहीं होती
दिया श्मशान का हो या कब्रिस्तान का
मगर चलती हुई हवा की कोई जात नहीं होती
मानवता से बढ़कर कुछ नहीं है शायद
पर मनुष्यों से ही क्यूँ इसकी आस नहीं होती
ज़िंदगी जीने की कशिश ने ऐसा पकड़ा है
कि साँस चलती है मगर साँस नहीं होती….
कि झूठ की सीढ़ी से चढ़ तो जाते हैं ऊपर
सच की ज़मीन पर इसकी औकात नहीं होती
भले ही बांट लो तुम उसकी दुनिया अपने हिसाब से
पर समझ लो कि इंसानियत से बढ़कर कोई सौगात नहीं होती
कामयाबी और तरक्की का खेल यहां चलता जरूर है
पर दिलों को जीत पाने की काबिलियत नहीं होती
अपने हिस्से की खुशियां सब को चाहिये
मुट्ठी भर आसमान की जरूरत किसे नहीं होती
✍️Shubha Mishra
Noida
मौलिक एवं अप्रकाशित