मन ही हार जाता है और मन ही जीत जाता है
अंतर्मन कभी कभी यूँ मुझसे मिलने आता है
सोने के मृग पर जब सीता का मन आता है
मारीचि कपट वेश में जब लक्ष्मण को बुलाता है
सीता का मन वहीँ पर हार जाता है
रावन का मन वहीँ पर जीत जाता है
दुर्योधन पर व्यंग्य करने जब द्रौपदी का मन आता है
मन – संघर्ष प्रबलता के साथ महाभारत बन जाता है
पासे के खेल में जब धर्मराज हार जाता है
अहंकारी दुर्योधन का मन वहीँ पर जीत जाता है
गौतम ऋषि का वेश धर जब इंद्र ने भरमाया था
विश्वासघात लगा गौतम को पतिव्रता ने धोखा खाया था
क्रोध वहीँ पत्थर बन कर हार जाता है
श्राप वरदान बन कर वहीँ पर जीत जाता है
श्रवण ध्रुव प्रह्लादका मन भक्ति में रम जाता है
सच्चे मन से विदुर – शबरी के जूठे फल वो खा जाता है
वो सर्वोच्च होते हुए सब कुछ वहीँ पर हार जाता है
निष्ठा भाव भरा भक्त मन वहीं पर जीत जाता है
अहिल्या द्रौपदी और सीता का जिक्र अंतर्मन में होता है
छिपकर वहीँ गौतम रावन और दुर्योधन भी सोता है
अंतर्मन से बिछड़कर कर मन वहीँ पर हार जाता है
पर आशा विश्वास साथ हो वहीँ पर मन जीत जाता है
Shubha Mishra