Category: कविता/शायरी

“जज़्बातों की पहरेदारी”

जज़्बातों की पहरेदारी ये अखियाँ नहीं मानतीं। छलक उठतीं हैं जब-तब…सुख-दुख में फर्क नहीं पहचानतीं।। पर मन कायल होता है इन जज़्बातों का। भीग जाता है इनकी बिन-मौसम बरसात में।।…

धुंध

जब आच्छादित हो झीना दुशाला फिर मार्ग प्रशस्त नहीं हो पाता, बाधित करे दृष्टि, ऐसे आंचल को ओढ़ हृदय अकुलाता। असमंजस में पग आगे बढ़ते कभी भयातुर हिय ठिठक जाता,…

“संतुलन”

एक ही पैर पर थिरकती झुक कर, कुछ तिरछी हो नृत्य की विभिन्न भंगिमाओं को निरंतर साधती अवनी, निशा दिवस की सखी बनी खेलती रहती है संग उनके, करती गलबहियां,…

स्त्री स्वयं में ब्रह्मांड लिए चलती है!”

यूं ही नहीं मान्यता है बिंदी की, स्त्री में छुपे भद्रकाली के रूप को शांत करती है । यूं ही नहीं लगाती काजल, नकारात्मकता निषेध हो जाती है जिस आंगन…

यदि पुरुष स्त्री को अपनी बाहों में लेना चाहता हैं

यदि पुरुष स्त्री को अपनी बाहों में लेना चाहता हैं, तो उसका तात्पर्य केवल वासना मात्र ही नहीं हो सकता हैं… कई दफा इसका अर्थ होता हैं, वह स्त्री की…

चाय

ढूंढने से भी घर में नही मिलती तुम्हारी निशानिया होती भी कैसे यहां तुम तो मेरे दिल में कैद हो सोचती हूं अक्सर आए दिन दे दूं रिहाई तुम्हे इस…

निश्छल प्रेम

कहा जानता हूं… मैं प्रेम की परिभाषा नही हैं मेरे पास.. शब्दकोष प्रेम के ना प्रेम का कोई इतिहास तुम और तुम्हारा विश्वास महफूज रखता हूं तुम दोनो को वो…