स्थानीय ट्रक यूनियन द्वारा दस हजार रुपये का चेक इस कॉलेज के कोष के लिए भेजा गया था, जिसकी रसीद मंजर शफी के नाम थी और इसी आधार पर मंजर शफी कॉलेज प्रबंध समिति के आजीवन सदस्य की हैसियत से इसमें सम्मिलित होना चाहते थे. किन्तु ट्रक यूनियन के पदाधिकारियों द्वारा यह लिख दिया गया कि उन्होंने इसके लिए अभी तक किसी को अधिकृत नहीं किया है। ऐसे में एसडीएम द्वारा जो कि इस कॉलेज की प्रबंध समिति के उपाध्यक्ष थे उन्होंने मंजर शफी को मान्यता नहीं दी।
कॉलेज कार्यक्रम दी जानी थीं उपाधियां
पूर्व की तरह ही 28 मार्च 1978 को महात्मा गांधी मैमोरियल कॉलेज में रंगारंग कार्यक्रम मनाया जाने वाला था. इसमें विद्यार्थियों व शिक्षकों को उपाधियां दी जानी थीं। दो बजे से होने वाले इस कार्यक्रम से पहले कुछ मुस्लिम छात्राएं प्राचार्य से मिलीं और प्रस्तावित उपाधियों को बहुत ही आपत्तिजनक बताते हुए उसे रोके जाने की मांग की। विद्यार्थी संघ के निदेशक तथा प्राचार्य ने विद्यार्थियों को परामर्श दिया कि वे उपाधि वितरण के अतिरिक्त अन्य कार्यकम करें, परन्तु विद्यार्थी संघ के पदाधिकारियों ने इस परामर्श को ठुकरा दिया।
शुरू हो गया दंगा
इसी घटना क्रम में एक और मामला जुड़ गया। वेतन आदि को लेकर नगरपालिका कर्मचारियों व रिक्शाचालकों में ही रोष व्याप्त था। इसका लाभ उठाते हुए कर्मचारियों को उनके वेतन पर ऋण देकर मोटा ब्याज वसूलने वाले रंगन लाल सहदेव वाल्मीकि ने दंगे के दिन 29 मार्च 1978 को तहसीलपर प्रदर्शन व घेराव शुरू कर दिया। इस भीड़ में अराजक तत्व भी शामिल थे। तहसीलदार का परगनाधिकारी के घेराव के संबंध में टेलीफोन जिस समय थाना संभल पर आया उस समय उस समय मंजर शफी अपने 40-50 समर्थकों सहित कोतवाली में उपस्थित थे तथा पिछले दिन विद्यालय में होली पर कुछ मुस्लिम छात्राओं को उपाधियां देने का विरोध करते हुए वाद-विवाद कर रहे थे। पता लगते ही मंजर शफी अपने समर्थकों को लेकर तहसील की ओर चल दिए।
लूटमार और भगदड़ मचने लगी
इधर रंगनलाल व उनके समर्थकों द्वारा घेराव किए जाने के कारण मंजर शफी परगनाधिकारी से भेंट नहीं कर सके तथा तहसील से बाजार की ओर लौटने लगे। मंजर यफी व उनके साथी बनियागर्दी नहीं चलेगी जैसे उत्तेजनात्मक नारे लगा रहे थे। बाजार को बलपूर्वक बंद कराना शुरू दिया। इस पर प्रमोद पान वाले का साथ देने हेतु व्यापारी वर्ग जिनमें पंजाबी वर्ग प्रमुख था, मौके पर आ गया। इस पान की दुकान से लगी हुई सब्जी मंडी में लूटमार व भगदड़ शुरू हो गई। मंजर शफी के साथ ही विभिन्न दिशाओं में लूटमार व आगजनी शुरू हो गई।
अफवाह फैलाना कर दिया शुरू
मंजर शफी के समर्थकों ने विभिन्न स्थानों में जाकर अफवाह फैलाना शुरू कर दिया। बताया जाता है कि अफवाहों में मंजर शफी का मारा जाना, मस्जिद का तोड़ा जाना, पेश इमाम का जलाया जाना तथा कोतवाली के पास बनी मस्जिद को नष्ट किया जाना और अनेक लूटपाट व कत्ल की अफवाहों का फैलाया जाना था। भयावह स्थिति देखते हुए परगनाधिकारी द्वारा तत्काल कर्फ्यू लगाने का आदेश जारी किया गया तथा जिला मुख्यालय से अतिरिक्त पुलिस बल प्राप्त होने तक दंगाईयों द्वारा विभिन्न स्थानों पर आगजनी लूटमार और हत्या की बारदातें कर चुके थे और अनेक स्थानों पर आग जल रही थी तथा विभिन्न स्थानों पर मीड़ के इकट्ठा होने और आक्रमणकारियों के उग्र होने की सूचनायें प्राप्त हो रही थी। इसी समय कॉलेज मे टाईटल देने का कार्यकम चल रहा था।
दुकानों को बंद करने से मना किया तो मारपीट
इसी दौरान मंजर शफी निवासी बल्ले की पुलिया थाना नखासा का हिन्दू विधार्थियों से विवाद हो गया था। मंजर शफी एक जुलूस के रुप मे बाजार में आने लगा और दुकानदारों से दुकान बंद करवाने लगा। तभी बाजार में कन्हैया एवं प्रमोद गुप्ता ने दुकान बंद करने से इनकार कर दिया और कन्हैया द्वारा तिरपाल का डंडा निकाल कर मंजर शफी के मार दिया तो मारपीट शुरु हो गई थी। मुस्लिमों द्वारा मुरारीलाल के फड का फाटक तोड़कर उसमे आग लगाने की बात प्रकाश में आयी।
29 मार्च 1978 से 20 मई तक कर्फ्यू
29 मार्च 1978 से 20 मई तक कर्फ्यू नगर के क्षेत्रों में लगा रहा। इस बींच केवल दो अप्रैल को पहले दिन कर्फ्यू खुला था तो छुरेबाजी की दो घटनाओं के अतिरिक्त स्थिति सामान्य रही। इस दंगे के संबंध में कुल 169 अभियोग पंजीकृत हुए थे, जिनमें से तीन मकदमें पुलिस द्वारा पंजीकृत कराए गये थे तथा शेष अभियोग संभल के दोनों संप्रदाय के व्यक्तियों द्वारा पंजीकृत कराए गए थे।