देहरादून। युवा जिंदगी न सिर्फ परिवार की उम्मीद होती है, बल्कि उससे समाज और देश की उम्मीदें भी जुड़ी होती हैं। जिन युवा आंखों में भविष्य के अनगिनत ख्वाब झिलमिलाते रहते हैं, वह जाने-अनजाने रफ्तार की ऐसी जंग में शरीक हो रही हैं, जहां हरदम जीवन दांव पर लगा रहता है।
रफ्तार की इस जंग में सभी उतने भाग्यशाली नहीं होते हैं, जो सकुशल घर पहुंच पाते हैं। बीती रात ओएनजीसी चौक पर हुई भीषण दुर्घटना की तरह ही कई युवा जिंदगी की बाजी हार भी जाते हैं।

सुकूनभरा था देहरादून का मिजाज

सवाल यह उठता है कि रफ्तार की इस जंग में युवा जिंदगी कब तक हारती रहेगी। आखिर ऐसा क्या होता है कि दिनभर जाम से बोझिल रहने वाली दून की सड़कों पर रात के सन्नाटे के बीच कारों और दोपहिया की अंधी दौड़ शुरू हो जाती है। सुकून की शाम में होश गंवाने जैसी जिद और हुड़दंग की हद तक जाने वाला शोर भी घुलने लगता है।

दून के राजधानी बनने के दौरान शहर का जो मिजाज सुकूनभरा था, उसमें अब पांच सितारा कल्चर की चकाचौंध आंखों को चुंधियाने लगी है। कभी स्कूलों की राजधानी के लिए पहचाने वाला दून अब उच्च शिक्षा का हब भी बन गया है। नवयुवाओं के जोश में पब, बार-रेस्तरां और क्लब का जुनून भी घुलने लगा है। यहां जश्न की शाम तो होती है, लेकिन रात होश खोने तक ढल नहीं पाती है।
तो फिर मेट्रो शहरों के साथ कदमताल के बीच दून के युवाओं के लड़खड़ाते जोश को काबू में रखने की जिम्मेदारी किसकी है? यह जिम्मेदारी उन शिक्षण संस्थानों की भी, जिनके भरोसे अभिभावकों ने अपने बच्चों को छोड़ रखा है। यूनिवर्सिटी और कालेज प्रशासन को सिर्फ फीस तक का मतलब रखने की जगह छात्र छात्राओं को सीमा में रखने के लिए भी प्रयास करने चाहिए। जो सामाजिक और राजनीतिक संगठन छोटे-छोटे मुद्दों पर सड़कों पर उतर पड़ते हैं, उन्हें भी युवा पीढ़ी को जीवन की राह पर बनाए रखने के लिए अपने मुद्दों में बदलाव करना होगा।
सड़कों पर मर्यादा भूलकर रफ्तार के शौकीन युवाओं को हद में रखने के लिए पुलिस को भी सरकारी अभिभावक की भूमिका में पेश आना होगा। एक तरफ उन्हें यह देखना होगा कि शहर में रफ्तार की होड़ पर कैसे ब्रेक लगाए जाएं। इस काम में प्रभाव और नाम को दरकिनार कर सख्ती दिखाने से भी गुरेज नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि, यह शगल न सिर्फ रफ्तार का हिस्सा बनने वाले युवाओं की जान पर भारी पड़ता है, बल्कि कई दफा उसकी चपेट में दूसरे मासूम भी आ जाते हैं।

जश्न की शाम सजाने वालों की क्या कोई जवाबदेही नहीं?

जो बार, रेस्तरां, पब और क्लब जश्न की शाम सजाकर युवाओं के जुनून को बेकाबू बनाने हैं, रफ्तार के इस भयानक खेल में उनकी जवाबदेही भी तय करने की जरूरत है। सिर्फ कमाई के चक्कर में यह नहीं भूलना चाहिए कि उनके यहां आने वाले युवा सही हालत में हैं या नहीं। यह भी देखा जाना चाहिए कि जश्न का नशा कहीं युवाओं के सिर चढ़कर तो नहीं बोल रहा है।

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