आशीष त्यागी,देहरादून

 

दीवाली के 11 रोज बाद उत्तराखंड में एक विशेष त्योहार मनाया जाता है इसे ईगास या बूढ़ी दीवाली कहते हैं. आइए आपको इसके बारे में बताते हैं.

दीवाली के 11 दिन बाद उत्तराखंड में यह पर्व मनाए जाने के पीछे बहुत सी मान्यताएं हैं. कोई कहता है कि भगवान राम के अयोध्या लौटने का समाचार पहाड़ के लोगों तक बहुत देर से पहुंचा था. इसे पहुंचने में ही 11 दिनों का समय लग गया तो ऐसे में लोगों ने 11 दिन बाद दीपावली का उत्सव मनाया.

बूढ़ी दिवाली को इगास या बुड्ढी दियावड़ी भी कहा जाता है.

एक दूसरी लोककथा के अनुसार ईगास का त्योहार उत्तराखंड के एक मशहूर योद्धा के अपने घर लौटने का पर्व है. दीपावली के 11 दिन बाद यह त्योहार मनाया जाता है. इस दिन सुबह की शुरुआत मीठे पकवानों को खाकर होती है. रात के समय तो भैलो जलाया जाता है.

यहां पर पटाखे, आतिशबाजी का चलन नहीं है. इसीलिए मशालों से गांव को रोशन किया जाता है

जौनसार बावर कृषि प्रधान क्षेत्र है, इसलिए यहां के लोग खेती-बाड़ी के काम में व्यस्त रहते हैं.दीपावली पर फसलें तैयार होती हैं, इसलिए ग्रामीणों को समय पर अपनी फसलें काटनी होती हैं. सर्दियों से पहले सभी कामों को निपटाना होता है, इसलिए ग्रामीण जब खेती-बाड़ी के काम पूरा कर लेते हैं, तब वे दीपावली का त्योहार मनाते हैं.


पहाड़ी लोग देवदार और चीड़ की लकड़ि‍यों की मशालें जलाकर रोशनी की और खूब नाच-गाना करके अपनी खुशी जाहिर की। तभी से यहां बूढ़ी दिवाली मनाने की परंपरा चल पड़ी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *