✒️ अशोक बालियान-चेयरमैन,पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन
हिमाचल की मंडी लोकसभा सीट से बीजेपी सांसद और अभिनेत्री कंगना रनौत से चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर बदसलूकी के बाद हंगामा के बीच यह मुद्दा गौण हो गया है कि देश में अलगाववादी और खालिस्तान समर्थकों का सांसद चुना जाना, लोकतंत्र की जय है या राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है। देश में विपक्ष के कुछ नेता व् किसान संगठनों के कुछ नेता सीआईएसएफ की सुरक्षाकर्मी कुलविंदर कौर का समर्थन कर रहे है, जो बिलकुल भी उचित नहीं है।
विपक्ष के कुछ नेताओं व् किसान संगठनों के कुछ नेताओं के समर्थन देने के बाद लग रहा है कि सीआईएसएफ की सुरक्षाकर्मी कुलविंदर कौर की राजनीति में एंट्री हो हो सकती है। अगर बेअंत सिंह का बेटा सिर्फ इसलिए चुनाव जीत सकता है, क्योंकि उसके पिता ने भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की थी और अमृतपाल सिंह इसलिए जीतता है,क्योंकि वह जरनैल सिंह भिंडरावाले जैसा दिखता है, तो कुलविंदर कौर को भी समर्थन मिल सकता है।
पंजाब में जरनैल सिंह भिंडरावाले का दौर आतंक से भरा हुआ था। इसी दौर में आतंकवादियों ने सन 1987 में एक बस से उतारकर 38 हिंदुओं की हत्या कर दी थी, मरने वालों में मासूम बच्चे और महिलाएं भी शामिल थीं।जो सिख भिंडरावाले से सहमत नहीं थे, उनकी भी हत्या की जा रही थी।
देश का हर नेता किसी न किसी के बारे में आए दिन बयान रहता है।अगर हर नेता की बात पर सुरक्षा बलों के जवान इसी तरह रिएक्ट करना शुरू कर दें, तो देश की व्यवस्था का क्या होगा?
कुलविंदर कौर के थप्पड़ को सपोर्ट करने वाले आग से खेल रहे हैं।पंजाब में कुछ देशी-विदेशी ताकतें वहां के लोगों में मोदी के प्रति जहर भर रही है और वे ताकतें इस अभियान में खालिस्तान देख रही है। जो राजनैतिक दल या किसान संगठन इन तत्वों को सपोर्ट कर रहे है, उन्हें पंजाब में पूर्व की घटनाओं से सबक लेना चाहिए। पंजाब के कुछ किसान आन्दोलन के पीछे किसानों के नाम पर मोदी से नफरत ही मुख्य कारण है न की किसान समस्या। पंजाब के लोगों ने हमेशा देश के लिए कुर्बानियां दी है, इसलिए उम्मीद है कि वे इन ताकतों से गुमराह नही होंगे।
पंजाब में दो राष्ट्रविरोधी खालिस्तानी विचारधारा वाले नेता लोकसभा चुनाव जीत गए है, जिसमे खडूर साहिब से ‘वारिस‘पंजाब दे’ के प्रमुख अमृतपाल सिंह और फरीदकोट लोकसभा सीट से दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारे के बेटे सरबजीत सिंह की जीत पंजाब ही नहीं बल्कि देश-विदेश में चर्चा का विषय बन गई है।
खडूर साहिब और फरीदकोट में चुनाव जीतने वाले खालिस्तानी, ड्रग्स के व्यापार, नशे की लत, अनसुलझे बेअदबी मामलों के अलावा सिख धर्म के खतरे में होने की झूठी कहानी जैसे मुद्दों के नाम पर वोटर्स को लुभाने में सफल रहे है। इसी तरह दिल्ली की तिहाड़ जेल में टैरर-फंडिंग के मामले में बंद कश्मीर के अलगाववादी नेता शेख अब्दुल राशिद वहां की बारामूला लोकसभा सीट से चुनाव जीत गए है।
पंजाब में लोकसभा चुनाव कट्टरपंथियों की बढ़ती पैठ की ओर इशारा करते हैं। अमृतपाल सिंह ने जेल में रहने के बावजूद स्थानीय लोगों के समर्थन और विदेश में खालिस्तानियों द्वारा कथित फंडिंग के दम पर चुनाव जीता है। रासुका के तहत असम के डिब्रूगढ़ जेल में बंद अमृतपाल सिंह अक्सर कहते है कि उनकी लड़ाई भारत सरकार से है, किसी समुदाय से नहीं है। उनके विवादित बयान नफरत से भरे होते है और उसके बयान लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान उनके समर्थकों द्वारा खुलेआम प्रचारित किए गए। इसीतरह दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारे के बेटे सरबजीत सिंह की जीत भी देश की एकता और अखंडता के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। इस चुनाव में सरबजीत सिंह को किसान संगठनों का भी भरपुर समर्थन मिला है।
दरअसल सरबजीत सिंह के पिता बेअंत सिंह, उन दो सिक्योरिटी गार्ड्स में से एक थे, जिन्होंने 31 अक्टूबर, 1984 को भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की प्रधानमंत्री आवास के अंदर अंधाधुंध गोलियां बरसाकर हत्या कर दी थी।
इसतरह के उम्मीदवारों के जितने से सवाल उठता है क्या? ये विजय कहीं भारत की अस्मिता के लिए ही तो खतरा नहीं हैं? इन जीतों से कई प्रश्न उठ खड़े हुए हैं।