जमीयत के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने आगे कहा कि औरत तो 50 साल में बूढ़ी हो जाती हैं, जबकि मर्द तो 80 वर्ष की उम्र तक जवान ही रहता है और इस्लाम में मर्दों को चार शादियां करने की इजाजत है। हमारी राय में जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी का बयान कि मुस्लिम पुरुष को तीसरी और चौथी शादी हक है और औरत 50 साल में बूढ़ी हो जाती हैं, आज के परिपेक्ष में उचित नहीं है।
इन दिनों देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड पर बहस छिड़ी हुई है और बहु विवाह व हलाला जैसी सामाजिक कुप्रथाओं पर रोक लगाने की मांग की जा रही है। हलाला में एक रात की शादी के बाद वह व्यक्ति दोबारा उस महिला को तलाक दे देते हैं, जो पहले पति के पास जाना चाहती है। भारत में मुस्लिम विवाह अधिनियम 1939 के तहत एक मुस्लिम पुरुष की चार पत्नियां हो सकती हैं,लेकिन तुर्की और ट्यूनीशिया जैसे इस्लामिक देशों में भी अब बहु-विवाह प्रतिबंधित है। भारत में अभी तक केवल गोवा राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है।
भारत में 22वें विधि आयोग ने यूनिफॉर्म सिविल कोड पर (UCC) पर जनता से एक महीने में राय मांगी है। आयोग द्वारा जारी आधिकारिक ईमेल आइडी membersecretary-lci@gov.in पर धार्मिक संगठन या व्यक्ति अपने सुझाव भेज सकते है। यूरोपीय देशों और अमेरिका के पास एक धर्मनिरपेक्ष कानून है, जो सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होता है फिर चाहे उनका धर्म कुछ भी हो।
केंद्र सरकार ने कुछ समय पहले शादी के लिए लड़कियों की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल करने का फ़ैसला किया था। इसके बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसका विरोध किया था। जबकि वर्ष 1917 में तुर्की की ख़िलाफ़त ने जब इस्लामी क़ानून बनाए तो सभी इमामों की राय को दरकिनार करते हुए लड़कों के लिए शादी की उम्र 18 साल और लड़कियों के लिए 17 साल तय की थी। वर्ष 2019 में सऊदी सरकार ने इसे बढ़ाकर 18 साल कर दिया था। इस मामले में दुनियाभर में मुसलमान अब खुले दिल और दिमाग़ से सोच रहे हैं। आख़िर भारतीय मुस्लिम संगठन इस मसले पर उदारता से क्यों नहीं सोचते है। क्यों वो सदियों पहले तय गई उम्र की सीमाओं में ही बने रहना चाहते हैं।
हिंदू धर्म में विवाह को जन्म-जन्मांतरण का संबंध माना गया है। इसलिए विवाह के वक्त पति और पत्नी अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लेते हैं। जबकि इस्लाम में शादी एक समझौता माना गया है। निकाह के वक्त पति, पत्नी के साथ एक काजी और दो गवाह को जरूरी माना गया है। हालाकि अनीशा बेगम बनाम मोहम्मद मुस्तफा केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शाह सुलेमान ने इस्लाम में शादी को समझौता के साथ ही एक संस्कार भी बताया है।
15वीं शताब्दी में हिंदू धर्म में से ही एक पंथ सिख धर्म बना था। सिख धर्म में शादी के लिए आनंद कारज कानून वर्ष 1909 में बना था। और वर्ष 1955 में फिर सिखों की शादी को हिंदू विवाह अधिनियम में शामिल कर दिया गया था, हालांकि वर्ष 2012 में फिर इसे अलग कर दिया गया था। हिंदू धर्म में शादी में 7 फेरे लिए जाते हैं, जबकि सिख धर्म में 4 फेरे लेने की रिवाज है। सिखों की पवित्र किताब गुरु ग्रंथ साहिब है जो गुरु के लेखन का संग्रह है। हिंदू धर्म की रक्षा के लिए सिख पंथ की स्थापना की गई थी।
ईसाई धर्म में विवाह को एक समझौता के साथ संस्कार माना गया है। शादी के दौरान दूल्हे और दुल्हन चर्च जाते हैं, जहां कई रस्में पूरी की जाती है। इस दौरान अंतिम सांस तक एक-दूसरे वफादार रहने की दोनों शपथ लेते हैं।
भारत में अधिकतर आबादी सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) को मानने वाली है। इनके धार्मिक ग्रन्थ वेद हैं। और वेदों का सार उपनिषद है। उनके पूजा स्थल को मंदिर या देवस्थान कहा जाता है। ये लोग मूर्तियों की पूजा करते हैं, जिसे भगवान का प्रतिबिंब माना जाता है।
भारत के लगभग 99 फीसदी के आसपास मुसलमानों के पूर्वज हिदू थे, और इनमे अपने हिन्दू पूर्वजों की संस्कृति, परंपराओं और मातृभूमि का समावेश भी हैं। इसीलिए हमे सबको अपने राष्ट्र के प्रति कर्तव्य को अन्य सभी चीजों के ऊपर मानना चाहिए और समय के साथ चलना चाहिए।

 

अशोक बालियान,चेयरमैन पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन

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