पुलिस द्वारा तय रूट प्लान के अनुसार ही श्रद्धालु एंट्री पाइंटों पर जूते उतारकर आएं। जूता उतारने की व्यवस्था मंदिर के आसपास नहीं है। पब्लिक एड्रेस सिस्टम पर जारी गाइड लाइन का श्रद्धालु पालन कर व्यवस्था में सहयोग दें।
हर दिन निकलती थी स्वर्ण मुद्रा, इसलिए नहीं होते बांकेबिहारी के चरण दर्शन
ठाकुर बांकेबिहारी की लीला निराली है। ठाकुरजी के चरण दर्शन मिलना आसान नहीं। वर्ष में एक ही दिन अक्षय तृतीया के दिन ठाकुर बांकेबिहारी भक्तों को चरण दर्शन के कर अक्षय पुण्य प्रदान करते हैं। इसके पीछे कारण ये कि जब ठाकुर बांकेबिहारी का निधिवन राज मंदिर में प्राकट्य हुआ तब स्वामी हरिदास के पास उनकी भोग सेवा के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी। तब ठाकुरजी ने कृपा की और हर दिन ठाकुरजी के चरणों में एक स्वर्ण मुद्रा निकलने लगी, जिससे ठाकुरजी की सेवा पूजा और भोगराग की व्यवस्था सुचारू हुई। जिस दिन से गिन्नी निकलना शुरू हुई, उसी दिन स्वामी हरिदास ने ठाकुरजी के चरणों के दर्शन कराना बंद कर दिया।
वर्ष में एक बार होते हैं अब चरण दर्शन
ठाकुर बांकेबिहारी के चरणों के दर्शन वर्ष में एक ही दिन अक्षय तृतीया पर होते हैं। वर्षभर आराध्य के चरण पोशाक में छिपे रहते हैं। इसके पीछे रहस्य यह है कि शुरुआती दौर में स्वामी हरिदास बांकेबिहारी से लाड़ लड़ाते और उनकी सेवा में ही दिन गुजारते थे। तब ठाकुरजी की सेवा भोग के लिए धन का अभाव रहता था।
ठाकुरजी का ही चमत्कार था कि इस अभाव को दूर करने के लिए हर दिन आराध्य के चरणों में एक स्वर्ण मुद्रा मिलने लगी। इससे स्वामीजी उनकी सेवा करते रहे। अब मुद्रा तो नहीं निकलती, लेकिन ठाकुरजी के चरण दर्शन न कराने की परंपरा आज भी सेवायत निभा रहे हैं।
हर मनोकामना होती है पूरी
ठाकुर जी स्वामी हरिदास की साधना से प्रसन्न होकर प्रकट हुए थे। ठाकुरजी के चरणों में अपार खजाना है मान्यता है ठाकुरजी के चरण के विलक्षण दर्शन करने वाले की हर मनोकामना पूर्ण होती है। यही कारण है कि अक्षय तृतीया पर आराध्य के चरण दर्शन को लाखों भक्त वृंदावन पहुंचते हैं।
इस दिन ठाकुरजी सुबह तो राजा के भेष में चरण दर्शन देते हैं और उनके चरणों में चंदन का सवा किलो वजन का लड्डू भी रखते हैं। मंदिर सेवायत आचार्य गोपी गोस्वामी का कहना है कि यह चंदन का लड्डू भी इसी मान्यता के तौर पर रखा जाता है कि स्वर्ण मुद्रा के दर्शन भक्तों को कराए जा सकें।