1983: वो ऐतिहासिक दिन जब भारतीय क्रिकेट ने करवट ली

अनुज त्यागी

तीसरे क्रिकेट विश्वकप का फाइनल 25 जून 1983, लॉर्ड्स का मैदान और सामने दो बार की वर्ल्ड चैंपियन वेस्ट इंडीज़। एक ऐसी भारतीय टीम, जिसे कोई चैंपियन मानने को तैयार नहीं था। लेकिन कपिल देव की अगुवाई में उस दिन कुछ ऐसा हुआ, जो इतिहास बन गया।

भारतीय टीम ने संघर्षपूर्ण प्रदर्शन किया और 54.4 ओवर में 183 रन पर सिमट गई। के. श्रीकांत ने 38 रनों की अहम पारी खेली, वहीं संदीप पाटिल (27) और मोहिंदर अमरनाथ (26) ने भी योगदान दिया। वेस्टइंडीज के लिए एंडी रॉबर्ट्स ने सबसे ज्यादा तीन विकेट चटकाए, जबकि मार्शल, होल्डिंग और लैरी गोम्स को दो-दो सफलताएं मिलीं। जोएल गार्नर ने एक विकेट लिया।

183 रन पर ऑल आउट होने के बाद लगने लगा था कि ये मैच भारत के हाथ से निकल चुका है। लेकिन फिर शुरू हुई असली जंग — गेंदबाज़ों की। मदन लाल, मोहिंदर अमरनाथ और पूरी टीम ने वो कर दिखाया जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।

184 रनों का लक्ष्य वेस्टइंडीज जैसी मजबूत टीम के लिए मामूली माना जा रहा था। लेकिन भारत की गेंदबाज़ी ने उस दिन इतिहास लिखने की ठान ली थी। मदन लाल और मोहिंदर अमरनाथ ने तीन-तीन विकेट लेकर कैरेबियाई बल्लेबाज़ी की रीढ़ तोड़ दी। बलविंदर संधू ने दो, जबकि कपिल देव और रोजर बिन्नी ने एक-एक विकेट झटका।

विवियन रिचर्ड्स ने 33 रन बनाकर संघर्ष किया, लेकिन टीम को जीत तक नहीं पहुंचा सके। पूरी वेस्टइंडीज टीम 52 ओवर में 140 रन पर ढेर हो गई।

विव रिचर्ड्स से लेकर क्लाइव लॉयड तक, सभी दिग्गज ढेर हो गए। हर विकेट के साथ मैदान गूंज उठा। भारत ने जैसे ही आखिरी कैच पकड़ा, करोड़ों लोगों की धड़कनों ने जश्न का रूप ले लिया।

1983 का यह दिन भारतीय क्रिकेट के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो गया — यह उस जज़्बे की मिसाल बन गया जो किसी भी हालात में हार मानने को तैयार नहीं।

वो सिर्फ एक जीत नहीं थी — वो भारतीय क्रिकेट की आत्मा में आत्मविश्वास का पहला बीज था।

 

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