लखनऊ। प्रदेश के दो डिस्कॉम के प्रस्तावित निजीकरण को लेकर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मंगलवार को भाजपा पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि पहले भाजपाई बिजली का निजीकरण करेंगे, ⁠फिर बिजली का रेट बढ़ाएंगे। उसके बाद कर्मचारियों की छंटनी करेंगे, फिर ठेके पर लोग रखेंगे और ठेकेदारों से भाजपाई कमीशन लेंगे। तंज कसते हुए आगे कहा कि बिजली के बाद क्या पता पानी के निजीकरण का भी नंबर आ जाए?
सपा प्रमुख अखि‍लेश यादव ने आरोप लगाया कि निजीकरण के बाद भाजपा सरकार बिजली का बिल बढ़ाकर जनता का शोषण करेगी। बढ़े बिल का हिस्सा बिजली कंपनियों से पिछले दरवाजे से लेकर भाजपाई इस भ्रष्ट कमाई का इस्तेमाल सरकार बनाने में करेंगे। भाजपाइयों को कर्मचारियों और आम जनता के आक्रोश का भी डर नहीं हैं, क्योंकि ये चुनाव वोट से नहीं खोट से जीतते हैं। जहां जनता सजग होती है और प्रशासन ईमानदार होता है, वहां भाजपा वाले हार जाते हैं।

पांचों निजी कंपनियों के लिए दो-दो हजार करोड़ रुपये होगा आरक्षित मूल्य

लखनऊ। पूर्वांचल व दक्षिणांचल डिस्कॉम के 42 जिलों की बिजली आपूर्ति निजी हाथों में सौंपने के प्रस्ताव को अब बस कैबिनेट से मंजूरी मिलने का इंतजार है। पावर कारपोरेशन के बोर्ड आफ डायरेक्टर और एनर्जी टास्कफोर्स द्वारा पीपीपी माडल पर दोनों डिस्कॉम को पांच हिस्से में बांटते हुए निजी हाथों में सौंपने संबंधी मंजूर किए गए मसौदे के अनुसार हर एक कंपनी के लिए दो हजार करोड़ रुपये का आरक्षित मूल्य होगा। पांचों कंपनियों के लिए न्यूनतम बिड प्राइस को भी तय कर दिया गया है।

इस बीच उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने पीपीपी माडल पर बिजली आपूर्ति निजी कंपनियों को देने के लिए केंद्र सरकार की स्टैंडर्ड बिडिंग गाइडलाइन का पालन न कर रिजर्व प्राइस पर आरएफपी के मसौदे पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसा निजी कंपनियों को बड़ा फायदा दिलाने के लिए किया जा रहा है। प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए पूरे मामले की सीबीआई से जांच कराई जाए।
एनर्जी टास्क फोर्स ने पूर्वांचल डिस्काम की तीन कंपनियों में गोरखपुर के लिए न्यूनतम बिड प्राइस 1010 करोड़, काशी के लिए 1650 करोड़ रुपये, प्रयागराज के लिए लगभग 1630 करोड़ रुपये और दक्षिणांचल डिस्काम की आगरा-मथुरा कंपनी के लिए लगभग 1660 करोड रुपये जबकि झांसी-कानपुर के ले लगभग 1600 करोड़ रुपये की न्यूनतम बिड प्राइस तय की है।
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा का दावा है कि दोनों डिस्काम की परिसंपत्तियां लगभग 70 से 80 हजार करोड़ रुपये है। प्रत्येक निजी कंपनी के लिए दो हजार करोड़ रुपये आरक्षित मूल्य तय करने पर वर्मा ने सवाल उठाते हुए कहा कि केंद्र सरकार के नियमों के अनुसार कंपनी की कुल परिसंपत्तियों का 30 प्रतिशत नेट वर्थ जरूरी है। परिसंपत्तियां 80 हजार करोड़ रुपये की होने की दशा में 24 हजार करोड़ रुपये नेट वर्थ होना चाहिए। यानी की हर एक कंपनी के लिए नेटवर्थ 4800 करोड़ रुपये होना चाहिए।
परिषद अध्यक्ष का कहना है कि एनर्जी टास्क फोर्स को गैर सरकारी उपभोक्ताओं की तकनीकी व वाणिज्यिक हानियां 39.42 प्रतिशत से 49.22 प्रतिशत बताया गया है जबकि केंद्र सरकार की आरडीएसएस स्कीम में 18.49 से 18.97 प्रतिशत ही बताई गई है। इसके आधार पर ही आरएफपी को मंजूर किया जाना चाहिए था।
"
""
""
""
""
"

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *