स्वतंत्र लेखक चौधरी सुमित सिंह जसोई
अभी शादियों का सीजन चालू था तो कई निमंत्रण आये हुए थे।एक किसान परिवार में शादी से 3-4 पहले पहुंच गया मैं,क्योंकि शादी के दिन नही जा सकता था कहीं बाहर का कार्यक्रम था।शादी वाला घर बिल्कुल शांत पड़ा था।
मैंने वहाँ पहुंचकर घर के लड़के को आवाज दी।
2-3 बार आवाज देने पर उत्तर आया।
लड़के की माँ बाहर आई और बोली- भाई वो तो नही है यहाँ, कहीं बाहर गया है।
मैंने पूछा – और बाकी सब कहाँ हैं? 3 दिन में शादी है,अब तो हो-हल्ला होना था,सब शांत पड़ा है ?
माँ बोली- चल रही है तैयारी,सब उसी में लगे हैं और बाहर गये हैं।
मुझे ऐसा लगा जैसे वह जल्दी से मुझे भेजकर वापस जाना चाहती थी।
मैंने भाव समझा और नमस्ते करके निकलने लगा,तभी अंदर से वह लड़की निकलकर आई जिसकी शादी थी।
सुबक सुबक कर रोती इस बहन के अभी तक हल्दी भी नही लगी थी।
मैंने वापस पलटकर माँ से पूछा- सब ठीक है ?
तभी पीछे पीछे लड़की का भाई भी आ गया जिसको मैं आवाज लगा रहा था।
वह भी परेशान दिख रहा था।
मुझे लग रहा था कि उसकी माँ नही चाहती थी कि मैं वहाँ रहूं लेकिन वह मेरे छोटे भाई जैसा लड़का मुझे देखकर आया और लिपटकर फफक फफककर रोने लगा।
मैं उसको अंदर ले गया।
माँ-बहन भी पीछे पीछे आ गई।
मैंने लड़के से पूछा क्या हुआ?
वह अंदर कमरे में ले गया जहाँ उसके पिताजी बैठे हुए थे।पास ही जमीन पर फंदा बनी हुई रस्सी रखी थी।
देखते ही समझ आया कि क्या हुआ होगा।
मैंने उस अंकल को बोला- यह कोई समाधान नही है, 3 दिन में लड़की की शादी है।
क्या समस्या है वह बताइये?
पिताजी ने बताना शुरू किया-शादी की तैयारी में लगे हैं बहुत दिन से।
जहाँ से हो सकता था पैसों का इंतजाम करके जेवर,कपड़े तो ले लिए हैं। हलवाई और टेंट वाला भी बुक है।
कल शाम को हलवाई आने हैं लेकिन अभी तक राशन की व्यवस्था नही हो सकी।
घर मे एक पैसा नही बचा है।
बनियों ने उधार देने से मना कर दिया,दूसरे दुकानदार भी उधार देने को तैयार नही हैं।
मैंने पूछा- बिरादरी में या कुनबे में किसी को बताया ये सब ?
बोले- नही बताया, जो लगता था कि वह सहयोग कर सकता है उनसे बात करी थी।कुनबे वालो ने तो आकर पूछा ही नही कि कैसे कर रहे हो सब।
वें तो तमाशा देखने के लिए तैयार खड़े हैं।
मैंने कहा- बैंक या कृषि कार्ड ?
बोले- वहाँ का कर्जा पहले से है,बंटवारे के बाद मकान बनाने पड़े थे उसमें लिया था।
हम्म्म्म……….
इसके सिवा कोई और शब्द अब पूछने को रह ही नही गया था……….
एक दुकानदार को फोन लगाया……
बात करके बड़ी मुश्किल से मेरी जिम्मेदारी पर सामान देने की बात पर दुकान वाला राजी हुआ।
दूध वाले ने पहले तो हाथ खड़े कर दिये थे फिर उसे भी किसी तरह मनाया।
कुछ जो अन्य सामाजिक मित्रो से सहयोग ले सकते थे वह लिया।
लेकिन जाते हुए उन्हें कहा कि यह सब भी उधार ही है,शादी के बाद कोशिश कीजियेगा कि जल्दी आप चुका दें यह सब।
माँ बोली- शादी के बाद हम जमीन बेच देंगे पर यह कर्जा चुकायेंगे ।
कहानी खत्म……….
अब समीक्षा………
यह एक छोटी जोत का किसान परिवार था जो अपनी जमीन में गन्ना उगाता था और घर खाने लायक गेहूं-धान या पशुओं के लिए चारा उगा लेता था।
इतनी जोत में घर के सामान्य खर्चे निकालना ही मुश्किल है।
कम पढ़े लिखे होने के कारण बेटे को भी कोई अच्छा डिप्लोमा-डिग्री नही दिलवा सके।
नोकरी के नाम पर बस इतनी जानकारी है कि पुलिस-फौज की नोकरी होती है या फिर किसी फैक्टरी में नोकरी होती है।
कुछ प्रयास करने के बाद भी पुलिस और फौज में लगी नही। बीच मे कोरोना के कारण भर्ती ना होने से उम्र भी निकल गई।
व्यापार को पैसे वालो का काम समझते हैं।
उधार में बिकने वाली गन्ने की फसल उगाते हैं जिसके भरोसे कोई दुकानदार भी सामान उधार देने को तैयार नही होता।
बीए किया हुआ बेटा बिल्कुल अनस्किल्ड है।
मतलब यह कि कहीं नोकरी भी करे तो 8-10 हजार मिलेंगे जिसमे बाहर रहकर अपना खर्चा निकालना मुश्किल है।
कुछ समय पहले सरकार कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का एक विकल्प किसानों के लिए लेकर आई थी जिसमे किसान मार्किट की समझ रखने वाली कंपनियों के हिसाब से कोई फसल उगा सकता था।
कंपनियों के पास ट्रांसपोर्ट की सुविधा होती है तो देश मे कहीं भी माल बिक सकता था।
लेकिन दलालों और किसानों के शत्रुओं ने ऐसा बवंडर रचा कि किसान के जीवन मे सुधार की अंतिम संभावनाओं को भी खत्म कर दिया।
समाज अपना महत्व खो रहा है, वह सिर्फ परिवारों तक सिमटता जा रहा है।
गन्ने के किसान तो अब बस सरकार की तरफ ही देख रहे हैं कि सरकार 10-20 रुपये गन्ने पर बढ़ाकर दे दे जिससे भयंकर महंगाई के बीच उन्हें भी साल भर में कुछ हजार की ज्यादा कमाई हो जाये……
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