15 से 20 महिलाओं का समूह
ग्रामीण पर्यटन के क्षेत्र में कार्य का अनुभव रखने वाले प्रदीप को कोविड 19 लाकडाउन में गांव लौटना पड़ा था। ग्रामीण पर्यटन के अनुभव के चलते उन्हें अपने गांव कुछ नया करने का विचार आया, आठ मार्च 2022 को उन्होंने अपनी दो छानियों को होमस्टे में बदलकर पर्यटन को स्वरोजगार से जोड़ने की शुरुआत की। इसके साथ ही गांव की 15 से 20 महिलाओं का एक समूह तैयार किया, जिन्हें होमस्टे संचालन के अंतर्गत आतिथ्य सत्कार से लेकर विलेज टूर व भोजन बनाने का प्रशिक्षण दिया गया।
गांव की ब्रांडिंग ब्वारी गांव के रुप में की गई, धीरे-धीरे प्रदीप की मेहनत रंग लाई और वह पर्यटकों को अपने गांव में आकर्षित करने में कामयाब हो गए। दैनिक जागरण से बातचीत में प्रदीप पंवार ने बताया कि उनके गांव के कंडक ट्रैक से भागीरथी नदी से लेकर टिहरी बांध का सुंदर नजारा दिखाई देता है। इसके साथ ही यहां से स्वर्गारोहणी, बंदरपूंछ आदि पर्वत श्रृंखलाओं के साथ हिमालय के 180 डिग्री में दर्शन होते हैं। बताया कि उनकी पत्नी अनीला पंवार भी उनके इस स्वरोजगार में हाथ बंटाती हैं।
प्रदीप ने बताया कि उनके ब्वारी गांव में सालभर पर्यटक आते हैं। जब भी पर्यटक पहुंचते हैं तो गांव की महिलाएं उनके स्वागत सत्कार से लेकर सभी कामों के लिए आगे आते हैं। इस गांव से महिला सशक्तीकरण का संदेश भी दूर तक पहुंचा है। साथ ही ग्रामीण महिलाओं की आजीविका भी मजबूत हो रही है। बताया कि उन्होंने अपने होमस्टे को पर्यटन विभाग में पंजीकृत कराया है, जहां से उन्हें आनलाइन बुकिंग भी मिलती है।
जब शुरुआत की थी तो लोगों ने बनाया था मजाक प्रदीप पंवार ने बताया कि जब उन्होंने छानियों को होमस्टे में बदलने की शुरुआत की थी तो लोगों ने उनका मजाक उड़ाया था। लोगों का कहना था कि यहां यात्रा सीजन भी छह माह से कम दो ही महीने चल पाता है। हाईवे पर स्थित होटलों में यात्री व पर्यटन नहीं आते। ऐसे में गांव की छानियों में रहने कौन जाएगा, लेकिन ये प्रदीप की दृढ़ इच्छाशक्ति थी कि वह अपने गांव को पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनाने में सफल रहे।
गांव में बारह महीने आते हैं पर्यटक
बकौल प्रदीप आज छह माह नहीं बल्कि उनके गांव में बारह महीने पर्यटक आते हैं। जो भी यहां रहने आता है वह तीन दिन से लेकर सप्ताहभर तक जरूर रुकता है। ऐसे पहुंच सकते हैं ब्वारी गांव प्रदीप ने बताया उनके गांव पहुंचने के लिए ऋषिकेश से गंगोत्री हाईवे पर चिन्यालीसौड़ बड़ेथी तक आना पड़ता है। यहां से बनचौरा वाली रोड पर इंद्रा मथोली की सड़क कटती है। इस सड़क से उनका गांव मात्र 200 मीटर की पैदल दूरी पर स्थित है। गांव में करीब 100 परिवार निवास करते हैं।
हालांकि इस गांव पर भी पलायन की मार पड़ी है। कई परिवार बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने आदि कारणों से चिन्यालीसौड़ के साथ देहरादून में शिफ्ट हो चुके हैं। बताया कि उनकी दो छानियों में 6 से 8 लोग आराम से रुक सकते हैं। दो लोगों के रहने, खाने व अन्य गतिविधियों का शुल्क चार हजार रुपये हैं। यहां पर्यटकों को 10 किमी के कंडक व जगदेई ट्रेक का भी भ्रमण कराया जाता है।