अशोक बालियान, चेयरमैन,पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन
वाराणसी कोर्ट ने पिछले सप्ताह हिंदू पक्ष की याचिका पर ज्ञानवापी के व्यास तहखाने में हिन्दुओं को पूजा-पाठ करने का अधिकार दे दिया था, इसके बाद जिला प्रशासन ने वहां उसी रात पूजा-पाठ करा दिया था, जिसपर जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने सख्त एतराज किया है।उन्होंने अदालत के फैसले पर सवाल खडा किया है। कल जुमे कि नमाज के दौरान वाराणसी में मौलाना नोमानी ने अपनी तकरीर में केंद्र और यूपी की सरकारों पर जमकर निशाना साधा ,जबकि काशी विश्वनाथ मंदिर का केस कोर्ट में चल रहा है और वहां हिदुओं को पुन: पूजा करने का अधिकार भी कोर्ट ने दिया है।ये मुस्लिम धार्मिक नेता मुस्लिमों को ग़लत जानकारी दे रहे है और ग़लत जानकारी के आधार पर उनको भड़का भी रहे है।


भारत में एक कालखंड में इस्लामिक व् मजहबी हमलावरों ने हिन्दुओं के मुख्य मन्दिरों को ध्वंस किया था और उन्ही के अवशेषों पर मस्जिद खड़ी कर दी थी। अयोध्या में आज जिस स्थान पर भव्य रामजन्म मन्दिर बना है,उसपर भी एक कालखंड में बाबर के सेनापति मीरबाकी ने तोड़कर मस्जिद का निर्माण किया था।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस्लामिक हमलावरों ने भारत में हिन्दुओं के हजारों मन्दिरों को ध्वंस किया था। बनारस में हिन्दुओं के प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर के एक हिस्से को औरंगजेब ने तुडवा दिया था। काशी विश्वनाथ मंदिर मंदिर के एक हिस्से के टूटे विस्तृत अवशेष मस्जिद के तहखाने में देखे जा सकते हैं।
ब्रिटिश काल में लिखी पुस्तक Description of a View of the Holy City of Benares by Robert Burford 1859 के पजे 12 में अंकित है कि मुग़ल कमांडर हिंदुओं को अपमानित करने के लिए एक संकीर्ण और कट्टर दिमाग की नीचता के साथ, अपने लंपट सैनिकों को प्रतिदिन मस्जिद की छत पर चढ़ने, घरों के आंतरिक आंगनों और पवित्र घाटों पर स्नान करने वालों पर नज़र रखने के लिए कहता था।
ब्रिटिश काल में लिखी दूसरी पुस्तक Journal of the Asiatic Society of Bengal By Asiatic Society 1832 के पेज 78 पर अंकित है कि हिन्दुओं के लिए यह बहुत ही पवित्र स्थान था, व बहुत से हिंदू अभी भी तीर्थयात्रा पर इस स्थान पर आते हैं और पूजा करते हैं । यहाँ लगने वाले मेले में एक भव्य उत्सव होता है, जो मार्च में एक दिन के लिए होता है, उस दिन भीड़ श्रद्धापूर्वक उमड़ती है।
काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। महाराजा विक्रमादित्य ने काशी विश्वनाथ मंदिर (बिशेश्वर मंदिर) का निर्माण ईसा पूर्व करवाया था और मुगल शासक औरंगजेब ने सन 1669 में काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर उसके एक हिस्से पर ज्ञानवापी मस्जिद बनाई थी। 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया था।यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है।उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित पुस्तक Maasir-I-Alamgiri BY Saqi Mustad Khan में पेज 55 पर इस विध्वंस का वर्णन दर्ज है।


औरंगजेब के शासन के बाद मराठा शासक मल्‍हार राव होल्‍कर की बहू और इंदौर की महारानी अहिल्‍याबाई होल्‍कर ने ज्ञानवापी मस्जिद के ठीक सामने सन 1777 ने पुन: काशी विश्‍वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था।इस मंदिर पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र बनवाया था।
ब्रिटिश आर्किटेक्ट जेम्स प्रिंसेप ने 19वीं शताब्दी में लिखी अपनी पुस्तक Benares Illustrated by James Prinsep 1831 के पेज 39 पर काशी का इतिहास से लेकर काशी की संस्कृति, काशी के घाट और ज्ञानवापी परिसर में मौजूद मंदिर के बारे में जानकारी दी है। इस पुस्तक में जेम्स प्रिंसेप ने ज्ञानवापी को मंदिर होने का दावा किया है।और उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद को विश्वेश्वर मंदिर बताया है। इस पुस्तक में विश्वेश्वर मंदिर का नक्शा भी प्रकाशित किया गया है।
एक अंग्रेज यात्री राइट ने अपनी पुस्तक Life in India by Wright 1854 में पेज 77 पर बनारस के बारे में लिखते हुए कहा है कि जहाँ पर यह मस्जिद स्थित है, वह स्थान कभी बहुत विशाल और भव्य हुआ करता था। यहाँ एक हिंदू मंदिर, जिसमें शिव का प्रतीक था, दाहिनी ओर की बड़ी इमारत, जिसका एक भाग देखा जा सकता है, अब एक मस्जिद है। मन्दिर के इस हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया गया था। उन्होंने आगे लिखा है कि हिंदू कहते हैं कि मन्दिर की मूर्ति को आक्रमणकारियों के नापाक हाथों से बचने के लिए मंदिर से नीचे उतरकर पास के कुएं में फेंक दिया था। कुआँ एक विशाल और सुंदर मंडप में है, जैसा कि निकट दर्शाया गया है।
एक अंग्रेज यात्री दानिएल विलियम ने अपनी पुस्तक The Oriental annual, or, Scenes in India by Daniell, William 1834 में पेज 136 पर बनारस के बारे में लिखते हुए कहा है कि हमारी पहली यात्रा बिशेश्वर नामक एक प्रसिद्ध मंदिर की थी, जिसमें नक्काशीदार पत्थर के काम के बहुत छोटे लेकिन सुंदर नमूने शामिल हैं, और यह स्थान हिंदोस्तान में सबसे पवित्र में से एक है, हालांकि औरंगजेब ने इसके एक भाग पर मस्जिद का निर्माण अपवित्र कर दिया था।


एक अंग्रेज यात्री राल्फ पिच ने 16 वी शताब्दी के सन 1585 में अपनी यात्रा के वर्णन पर लिखी अपनी पुस्तक England’s Pioneer to India 1583-1591 by Ryley 1899 में पेज 103 पर बनारस के बारे में लिखते हुए कहा है कि यहाँ गंगा का जल अत्यन्त फलदायक है। बनारस एक महान शहर है, और वहां कपास से बने कपड़े का बड़ा भंडार है। राल्फ पिच की कहानी उन मूर्तियों के सूक्ष्म विवरणों से भरी हुई है, जो उसने विभिन्न मंदिरों में देखी थीं, और उन्हें प्रतिदिन की जाने वाली पूजा की विभिन्न विधियों के बारे में बताया था। उनके कुछ विवरण उत्सुक हैं।राल्फ पिच ने अपनी इस यात्रा में केवल मन्दिरों का जिक्र किया है क्योकि उस समय वहां मस्जिद नहीं थी।
एक अंग्रेज यात्री एडविन ग्रीव्स ने अपनी यात्रा के वर्णन पर लिखी अपनी पुस्तक Kashi the city illustrious, or Benares by Edwin Greaves, 1909 के पेज 9 पर लिखा है कि विश्वनाथ मंदिर को लेकर सन 1809 में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दंगे हुए थे। पुराने विश्वनाथ मंदिर के एक हिस्से पर बनी मस्जिद, अपने निर्माण के बाद से ही विवाद का कारण बनी हुई है।
एडविन ग्रीव्स पेज 80 पर लिखते है कि यह मस्जिद हमेशा से ही हिंदुओं की आंखों की किरकिरी रही है, क्योंकि यह उस स्थान के बिल्कुल केंद्र में है, जिसे वे विशेष रूप से पवित्र भूमि मानते हैं। मस्जिद के पीछे और उसकी निरंतरता में संभवतः पुराने विश्वनाथ मंदिर के कुछ टूटे हुए अवशेष हैं।यह अवश्य ही एक महान इमारत रही होगी।मस्जिद के अंदर कुछ खंभे भी बहुत पुराने प्रतीत होते हैं।मस्जिद के पूर्व में एक सादा लेकिन अच्छी तरह से निर्मित स्तंभ स्थित है, जो ज्ञान के कुएं सियान बापी को कवर करता है।यह कुआँ एक पत्थर की जाली से घिरा हुआ है, जिस पर एक ब्राह्मण बैठता है। उपासक आते हैं। स्तंभ के उत्तर में महादेव के नंदी की एक विशाल आकृति है। इस नंदी के निकट गौरी शंकर (पार्वती और महादेव) की आकृतियों वाला एक मंदिर है।
यह अजीव विडम्बना है कि काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने के आदेश देने वाला विदेशी मुगल शासक औरंगजेब कहता है कि उसने मन्दिर तोड़ने के आदेश दिए थे, उस समय के समकालीन मुस्लिम लेखक साकी मुस्तइद खां कहते है कि औरंगजेब के आदेश पर इसको तोडा गया था, लेकिन आज कुछ धार्मिक मुस्लिम नेता जनता को गुमराह कर कह रहे है कि मस्जिद मन्दिर तोड़कर नहीं बनाई गयी थी।
यूरोप के एक देश स्पेन में जबरन इस्लाम स्वीकार करने वाली जनता ने अपने इतिहास से सबक लेकर अपने इतिहास की भूलों को सुधारा था, क्योकि सन 711 में विदेशी इस्लामिक आक्रमणकारियों ने स्पेन पर जबरन कब्जा कर वहां की जनता को इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर किया था। इसके सैकड़ों वर्षों बाद सन 1492 को स्पेन के सबसे ताकतवर मुस्लिम साम्राज्य को वहां के मूल लोगों के राजपरिवार ने उखाड़ दिया था। और 500 से ज्यादा मस्जिदों को तोड़ पुन: चर्च बना दिया गया था। यह वें मस्जिदें थीं, जिन्हें चर्च तोड़कर बनाया गया था। इसके साथ ही देश की वह जनता जिन्हें जबरन इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया था, वे लगभग साढ़े सात सौ वर्ष बाद घर वापिसी कर अपने ईसाई धर्म में वापिस आ गए थे। जिन लोगों ने इस्लाम धर्म नहीं छोड़ा, ऐसे लोगों को स्पेन से देश निकाला दे दिया गया था।
हमारी मुस्लिम समाज से अपील है कि सभी एतिहासिक मन्दिरों के विषय में मुस्लिम समाज की तरफ से प्रस्ताव आना चाहिए कि पूर्व में विदेशी इस्लामिक हमलावरों ने जो ऐतिहासिक गलती की थी, उनका समाधान होना चाहिए।भारत में हिन्दू समाज उन्ही मुख्य उपासना स्थलों को वापिस चाहता है,जिन्हें तोड़कर मस्जिद बनाई गयी थी।

अशोक बालियान, चेयरमैन,पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन

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