अशोक बालियान, चेयरमैन, पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन
पीजेंट वेलफेयर के चेयरमैन अशोक बालियान व् सूरजमल शिक्ष्ण संस्था के रिसर्च विंग के निदेशक श्री राजेन्द्र कुमार ‘भारत में जिहाद का इतिहास’ पर एक पुस्तक लिख रहे है, जो जल्दी ही पढने को मिलेगी। इस पुस्तक में इस्लामिक हमलावरों द्वारा की गयी अनेकों खुनी घटनाओं के साथ यह भी पढने को मिलेगा कि मध्य पूर्व पश्चिमी एशिया व इजराइल आदि देशों में संघर्ष के इलाक़े, जिहाद के जोश से भरे विदेशी लड़ाकों की प्रेरणा का स्रोत बन रहे हैं। यहां तक कि गाज़ा में भी, जहां की भौगोलिक और राजनीतिक स्थिति ऐसी है कि वहां दूसरे देशों के लड़ाके जाकर जिहाद नहीं कर सकते हैं। इसके बावजूद जिहादियों के इरादों में कोई कमी नहीं आई है।
इस पुस्तक में यह भी पढने को मिलेगा कि कैसे दुनिया में शुरू से आजतक कैसे विदेशी इस्लामिक हमलावर व जिहादी आतंकवादी हिंसा को उचित ठहराने और शांतिपूर्ण मुसलमानों के बीच भर्ती करने के लिए कुरान का उपयोग करते हैं। और एक महान मक़सद का ख़्वाब दिखाकर इन नौजवानों को आकर्षित किया जाता है।
भारत में विदेशी इस्लामिक हमलावरों का इतिहास मानव सभ्यता के इतिहास का सबसे खूनी अध्याय है।पाश्चात्य विद्वान जेम्स स्टुअर्ट मिल के अनुसार भारत में इस्लामी जिहाद की घटनाये बर्बरता को रेखांकित करती है।इसका प्रमाण वे अभिलेख है, जो बताते हैं कि हिन्दुओं का जबरन धर्मांतरण किया गया था और उनके आस्था के केंद्र व् उनके मन्दिरों को नष्ट कर उनके स्थान पर मस्जिदें खड़ी की थी।
सन् 711 से लेकर 1748 में मुहम्मद शाह के शासनकाल तक यह सिलसिला अनवरत चला था और इनका उद्देश्य विशुद्ध रूप से हिन्दू आस्थाओं को चोट पहुंचाकर इस्लाम को बढ़ाना था। आज भी पाकिस्तान में बैठे लश्कर तोइबा प्रमुख हाफिज सईद का कहना है कि जेहाद का आखिरी लक्ष्य अन्य सभ्यताओं पर इस्लाम का प्रभुत्व कायम करना है।
इस पुस्तक में यह भी पढने को मिलेगा कि पश्चिमी देशों में जिहाद के प्रति आकर्षण की चुनौती, अप्रवासों का स्थानीय तबके से मेल-जोल न हो पाने की वजह से पैदा होती है।ये ऐसी प्रक्रिया है जिसे अपने आप जारी रहने दिया जाए, तो ये तीन से चार पीढ़ियों और कई दशकों में अपनी ज़मीन तैयार करती है।
मुस्लिम समाज के वे युवा जो जिहाद की तरफ आकर्षित होते है वे दो अलग और विपरीत पहचानों वाली दुनिया के बीच फंसने के कारण, ये अप्रवासी पीढ़ी अपनी असली पहचान परिभाषित करने के लिए संघर्ष करते हैं।पहचान की इसी तलाश का जिहादी संगठन अपने दुष्प्रचार के ज़रिए फ़ायदा उठाते हैं। वो अप्रवासियों की दूसरी पीढ़ी को खुलकर समझाते हैं कि जिहाद ही उनकी पहचान है और अपने मज़हब के लिए लड़ना उनका फ़र्ज़ है। जिहादी संगठन अप्रवासियों की इस नई पीढ़ी को ये समझा पाने में कामयाब हो जाते हैं कि असली पहचान एक बड़े नैतिक मक़सद के लिए लड़ने की है। इस तरह उनको जिहाद में ज़िंदगी का एक बड़ा मक़सद होने का ख़्वाब और उस ख़्वाब को पूरा करने की ताक़त दिखाई जाती है।
अंग्रेज़ी बोलने वाले कट्टर मौलाना अनवर अल-अवलकी, जिसे पश्चिम में अल क़ायदा के लिए भर्तियां और प्रचार करने वाला कहा जाता है, से लेकर लंदन में 7/7 के हमले के सबसे नौजवान आतंकवादी हसीब हुसैन तक, और 2015 में शार्ली हेब्दो के दफ़्तर पर हमला करने के लिए ज़िम्मेदार चेरिफ और सईद कोउआची भाइयों तक, ये सब के सब दूसरी पीढ़ी के अप्रवासी थे,जो जिहाद की तरफ आकर्षित हुए थे।
भारत में धार्मिक पहचान, राष्ट्रीय अस्मिता में घुल-मिल जाती है, और ‘भारतीय होना’ किसी मज़हबी पहचान के ऊपर भारी पड़ता है। भारत का अनुभव यहां के मुसलमानों को खुलकर मज़हबी पहचान ज़ाहिर करने या फिर अपने धर्म के उसूलों पर चलने के बजाय देश के नागरिक के तौर पर एक ऐतिहासिक पहचान और विरासत से ज़्यादा जोड़ता है। सिंगापुर ने तमाम संस्कृतियों की अलग अलग पहचानों को एकजुट करके एक ठोस राष्ट्रीय पहचान को बहुत ही कम समय में विकसित कर लिया है। ऐसी कोशिशों ने जिहादी प्रोपेगैंडा की अपील को कमज़ोर कर दिया है।भारत भी इसी तरफ बढ़ रहा है। क्योकि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्त्व में आर्थिक उन्नति और क्षमता के निर्माण के लिए प्रभावी नीतियां लागू की जा रही हैं।
इस पुस्तक में यह भी पढने को मिलेगा कि दुनिया के देशों को एक मज़बूत राष्ट्रीय पहचान विकसित करने की ज़रूरत है, जो ज़्यादा समावेशी हो और जो विभाजनकारी विचारधाराओं के आकर्षण को कमज़ोर कर सके।आज जब हम ये सोच रहे हैं कि भविष्य में धार्मिक कट्टरपंथ का मुक़ाबला कैसे होगा, तो एक सवाल अहम बना हुआ है। देश अपने नागरिकों के लिए कैसे एक लचीली, समावेशी पहचान विकसित कर सकते हैं, जो कट्टरपंथी विचारधाराओं की पुकार का विरोध कर सके? हम इस चुनौती से किस तरह निपटते हैं, यही बात एक ऐसे भविष्य के निर्माण की हमारी सामूहिक कोशिश की दशा-दिशा तय करेगी, जो संकीर्ण सांप्रदायिकता और नफ़रत पर जीत हासिल कर सके।

अशोक बालियान

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