मुज़फ्फरनगर/दिल्ली
पीजेंट वेलफ़ेयर एसोशिएसन के चेयरमैन अशोक बालियान व उसके एलाइंस के किसान नेताओं ने कृषि मन्त्री अर्जुन मुंडा के समक्ष एमएसपी प्रणाली मजबूत करने व किसानों को 25-30 प्रतिशत अधिक एमएसपी देने की बात रखते हुए कहा था कि भारत में 23 कृषि फसलों की जो न्यूनम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय होती है,वो सी2 फार्मूला के तहत नहीं होती है। किसानों की फसल का दाम तय करने के लिए डॉ स्वामीनाथन की रिपोर्ट में ए2 + एफएल और सी2 फार्मूला है। सी2 में ए2 +एफएल के साथ ही किसान की भूमि का किराया और फसल उत्पादन में आने वाले खर्च पर लगी पूंजी पर ब्याज दिया जाना भी शामिल है।
इसीलिए देश में किसानों को एमएसपी प्रणाली को मजबूत करने के साथ 25-30 प्रतिशत अधिक एमएसपी मिलनी चाहिए।अर्थात एमएसपी डॉ स्वामीनाथन की रिपोर्ट के आधार पर बने फार्मूला ए2+एफ़एल+ सी2 के आधार पर हो।और अन्य प्रमुख फसलों को भी इसके दायरे में लाया जाए।
यह भी सच है कि मोदी सरकार डॉ स्वामीनाथन की रिपोर्ट के आधार पर ही एमएसपी की तरफ़ बढ़ रही है और पिछली सरकार से अधिक एमएसपी किसानों को मिल रहा है। कृषि मन्त्री श्री अर्जुन मुंडा के साथ हमारी वार्ता बहुत सकारात्मक रही थी।
एमएसपी को लेकर कानूनी बाधाएं एक जटिल मुद्दा है। इसके अलावा, ये सिर्फ कानूनी मुद्दे नहीं हैं, बल्कि कार्यान्वयन के और भी मुद्दे हैं। पिछले साल ज्वार, तुअर, कपास, उड़द और धान(गैर-बासमती)की अखिल भारतीय औसत कीमतें उनके एमएसपी से 5 से 38 प्रतिशत तक अधिक थीं। कर्नाटक में मक्के की कीमतें एमएसपी से अधिक थीं, लेकिन पूरे भारत में वे कम दिख रही थीं। दरअसल कीमतों का यह उतार-चढ़ाव ही एमएसपी पर गारंटी के लिए सबसे बड़े बाधक के रूप में सामने आ रहा है। पंजाब की मुख्य फसल धान व गेहूं है, दोनों पर एमएसपी पहले से है और इसकी खरीद सरकार कर रही है।
दिल्ली को घेरने वाले किसान संगठन एमएसपी की कानूनी गारंटी चाहते हैं,जबकि किसानों को सबसे पहले उनके अनुकूल बाज़ार चाहिए।किसानों को दुनिया के अनुकूल बाज़ार उपलब्ध कराने के लिए ही मोदी सरकार तीन कृषि क़ानून लायी थी, जिन्हें इन्ही किसान नेताओं ने काले क़ानून बताकर केंद्र सरकार को वापिस लेने पर मजबूर किया था।
देश में कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिश पर केंद्र सरकार 23 फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा करती है, जिनमें 7 अनाज धान, गेहूं, मक्का, बाजरा, ज्वार, रागी और जौं हैं। इसमें 5 दलहन फसलें चना, अरहर, उड़द, मूंग और मसूर भी शामिल हैं। वहीं 7, तिलहन और चार नकदी कपास, गन्ना, खोपरा, और कच्चा जूट की फसले हैं।
देश के कुछ कृषि विशेषज्ञों के द्वारा एमएसपी व्यवस्था के तहत आने वाली फसलों का बाजार मूल्य 10 लाख करोड़ रुपयों से अधिक आंका गया था। जो वर्ष 2023-24 के लिए केंद्र सरकार के कुल 45 लाख करोड़ रुपये के खर्च से इतनी कीमत की उपज खरीदने पर दूसरे विकास कार्यों और सामाजिक सुरक्षा के कार्यक्रमों के लिए बहुत कम पैसा बचेगा, जो भारत की प्रगति के लिए बहुत जरूरी हैं।
सवाल यह उठता है की क्या एमएसपी कानून बनाने से किसानों की सारी समस्याएं हल हो जाएगी? कई बार ऐसा होता है कि कई फसलें एमएसपी से कम या एमएसपी से ज्यादा मूल्य पर बेचीं जाती है। दरअसल फसलों के दाम बहुत हद तक बाजार व दुनिया के हालत पर निर्भर करते है।इसलिए एमएसपी घोषित होने के बावजूद अलग-अलग दामों पर फसलें बेचीं जाती है।
मोदी सरकार ने वर्ष 2022-23 में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खाद्यान्न की खरीद के लिए लगभग 2.28 लाख करोड़ रुपए खर्च किए थे,जो देश में पैदा होने वाली कुल एमएसपी फसलों का लगभग 25 प्रतिशत है। ये वर्ष 2014-15 से लगभग 115 प्रतिशत अधिक है, जब मनमोहन सिंह सरकार ने एमएसपी पर फसल खरीदने पर 1.06 लाख करोड़ रुपए खर्च किए थे।
इसलिए हमारा मानना है कि स्टार्टअप के इस युग में किसानों को एमएसपी प्रणाली को मजबूत करने के साथ ही उसकी उपज के लिए बेहतर मार्केटिंग की मांग करनी चाहिए। केन्द्रीय कृषि मंत्री श्री अर्जुन मुंडा का यह कहना उचित है कि फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी वाला कानून देश के सभी हितधारकों से परामर्श किए बिना, जल्दबाजी में नहीं लाया जा सकता है। यह बात आन्दोलनकारी किसान संगठन के नेताओं को भी समझनी चाहिए।

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