छठ पूजा महापर्व पर सूर्यनारायण और षष्ठी माता व्रत और पूजा का विधान है जिसके परिणामस्वरूप हमको आरोग्यता मिलती है और हमारे बच्चों की रक्षा होती है। जिसके संतान नहीं है उसको संतान की प्राप्ति होती है। माता षष्ठी ने बालकृष्ण की भी रक्षा असुरों से की थी ऐसा वर्णन
लक्ष्मीनारायणसंहिता में मिलता है।
सूर्य आरोग्य के कारक हैं और माँ षष्ठी बालकों की अधिष्ठात्री देवी हैं। मूलप्रकृति के छठे अंश से प्रकट होने के कारण ये ‘षष्ठी’ देवी कहलाती हैं। #श्रीमद्देवीभागवतपुराण नवम स्कन्ध तथा #ब्रह्मवैवर्तपुराण प्रकृति खण्ड में इनका विस्तृत विवरण मिलता है और इनको देवसेना नाम से पुकारा है।
आरोग्यता से तात्पर्य सिर्फ शरीर के निरोगी होने से नहीं अपितु आत्मा, तन, मन तथा धन सभी के निरोगी होने से है
#येन_सूर्य_ज्योतिषा_बाधसे_तमो_जगच्च_विष्वसुदियर्षि भानुना।
#तेना_स्मद्विष्वामनिरामनाहुतिमपामीवामय_दुर्ष्यज्यं सुव।।
छठ महापर्व की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं
छठ पूजा की पौराणिक कथा !!
पुराणों के अनुसार, छठ पूजा की शुरुआत रामायण काल में हुई थी। रावण का वध कर जब भगवान श्रीराम और माता सीता वनवास काटकर अयोध्या लौटे तब उन्होंने इस उपवास का पालन किया था।
एक अन्य कथा महाभारत काल से भी जुड़ी हुई है। ऐसा माना जाता है कि कर्ण सूर्यदेव के पुत्र होने के साथ उनके परम भक्त भी थे और वह पानी में कई घंटों तक खड़े रहकर उनको अर्ध्य देते थे और उनका पूजन करते थे।
पांडवों के अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए द्रौपदी भी सूर्यदेव की उपासना किया करती थी। कहते हैं कि उनकी इस श्रद्धा ने पांडवों को उनका राजपाट वापस दिलाने में मदद की।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी नि:संतान थे, जिस कारण वह बहुत दुखी रहा करते थे। तब उन्हें महर्षि कश्यप ने पुत्रकामेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी।
राजा ने महर्षि कश्यप की आज्ञा का पालन करते हुए यज्ञ का आयोजन किया था और यज्ञ के पूर्ण होने पर महर्षि कश्यप ने रानी को खीर खाने के लिए दी। रानी ने उस खीर को ग्रहण कर लिया और कुछ समय बाद ही उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। लेकिन आप विधि का विधान देखिए, रानी का भाग्य इतना खराब था कि उनकी संतान भी मृत पैदा हुई। राजा जब अपने मृत पुत्र का शव लेकर श्मशान घाट गए तो उन्होंने अपने प्राण त्यागने का भी निश्चय कर लिया। जब वह अपने प्राण त्यागने का प्रयास करने लगे तो उनके समक्ष छठ माता प्रकट हो गईं। उन्होंने राजा को बताया कि कोई सच्चे मन से विधिवत छठ देवी की पूजा करें, तो व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
देवी की बात सुनकर राजा ने छठ मैया की पूजा की और व्रत कर उन्हें प्रसन्न किया। राजा से प्रसन्न होकर देवी ने भी उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। कहते हैं कि राजा ने जिस दिन वह पूजा की थी, वह कार्तिक शुक्ल की षष्ठी का दिन था और तभी से आज तक इस पूजा की प्रथा चलती आ रही है।
आज भी लोग इस व्रत को संतान प्राप्ति, अपने परिवार की सुख-शांति और दीर्घायु के लिए करते हैं
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