कृष्णा को कृष्ण की तलाश
मौन अधर रख
इंसान क्यों फिर भी बेबाक है
ना जाने क्या चाहत उसकी,
और क्या पाने को तैयार हैं
ना चाह कर भी,
रोक टोक में लग जाता है
चुप होते हुए भी ,
ना जाने क्यों कटाक्ष ये करता है
ये इंसान, इंसान को बहुत अच्छी
तरह समझता है
पिसते तो हम नादान इसमें
गलती के पुतले बन
बार बार गलती करते हैं
उन ही गलतियों से सीख
फिर एक मुकाम हासिल हम करते हैं
क्योंकि हर बार अपने को भगवान
मानने को यहां तैयार है
ये शतरंज की बिसात है
चौसर की नई चाल है
ना जाने ना जाने कब
इस चाल को तुम समझ पाओगे
कहीं एक बार फिर युधिष्ठिर ,
तो नही बन जाओगे
मौन अधर सर झुका कर बैठ जाओगे
तब एक बार फिर कृष्णा
समाज में नग्न होकर
कृष्ण को पुकारेगी
पर आज एक सखा की बात नहीं
आज हर कृष्णा पुकारती अपने कृष्ण को
क्या तुम सही वक्त पर मौन अधर
खोल कृष्णा को लज्जित होने
से जब बचाओगे
उस दिन हे मानव तुम
खुद कृष्ण बन जाओगे
खुद कृष्ण बन जाओगे
✍️पूजा भारद्वाज “संतोष”
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