राजस्थान जो की अपने विशाल भोगोलिक क्षेत्र,राजाओं रानियों और महलों के लिए जाना जाता हैं यहाँ एक शहर ऐसा भी है जो अपने आप में एक अलग ही धार्मिक मान्यता को संजोये हुए हैं और वो हैं अजमेर जिले के पुष्कर क़स्बे में स्थित पुष्कर शहर।।
पुष्कर को राजस्थान का ‘गुलाब उधान ‘ भी कहा जाता हैं क्यूँकि शहर में और आस-पास फूलों की खेती होने के कारण यहाँ से फूल दुनिया भर में निर्यात किए जाते हैं।
चारों और से अरावली की पहाड़ियों से घिरा पुष्कर भक्तों और पर्यटकों के बीच एक लोकप्रिय गंतव्य हैं।
संस्कृत में पुष्कर का अर्थ- नीले कमल का फूल हैं।पुष्कर के उद्भव का वर्णन हमें पद्म पुराण में मिलता हैं।यहाँ तक कि महाभारत और रामायण में भी पुष्कर का उल्लेख मिलता हैं।
हिंदुओ के साथ-साथ पुष्कर बौद्ध,जैन और सिखों के लिए भी पवित्र स्थान रहा हैं।
इसी स्थान पर महात्मा गांधी जी की अस्थियाँ प्रवाहित की गयीं..
त्रेता और द्वापर युग से नाताः मान्यता है कि पुष्कर शताब्दियों पुराना धार्मिक स्थल है. महाभारत के वन पर्व के अनुसार श्रीकृष्ण ने पुष्कर में दीर्घकाल तक तपस्या की थी. सुभद्रा के अपहरण के बाद अर्जुन ने पुष्कर में विश्राम किया था. मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने भी अपने पिता दशरथ का श्राद्ध पुष्कर में किया था. वाल्मीकि रामायण में विश्वामित्र के तप करने की बात कही गई है. यह भगवान राम के समय से अब तक बदलते इतिहास का गवाह है. इसका उल्लेख चौथी शताब्दी में आये चीनी यात्री फाह्यान ने भी किया है.

चलिए अब बात करते हैं भारत सभी देवी देवताओं के हज़ारों मंदिर स्थित हैं,लेकिन ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर ही क्यूँ?
इसके पीछे एक पुराणिक कथा प्रचलित हैं जिसका पद्मपुराण में वर्णन मिलता हैं जो इस प्रकार हैं….
परमपिता ब्रह्मा और मां सावित्री के बीच दूरियां उस वक्त बढ़ीं, जब ब्रह्माजी ने पुष्कर में कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णमासी तक यज्ञ का आयोजन किया.शास्त्रानुसार यज्ञ पत्नी के बिना सम्पूर्ण नहीं माना जाता. पूजा का शुभ मुहूर्त निकला जा रहा था. सभी देवी-देवता यज्ञ स्थल पर पहुंच गए, लेकिन सावित्री को पहुंचने में देर हो गई. कहते हैं कि जब शुभ मुहूर्त निकलने लगा, तब कोई उपाय न देख ब्रह्माजी ने नंदिनी गाय के मुख से गायत्री को प्रकट किया और उनसे विवाह कर यज्ञ पूरा किया. इस बीच सावित्री जब यज्ञस्थल पहुंचीं, तो वहां ब्रह्माजी के बगल में गायत्री को बैठे देख क्रोधित हो गईं और उन्होंने ब्रह्माजी को श्राप दे दिया कि पृथ्वी के लोग उन्हें भुला देंगे और कभी पूजा नहीं होगी. किन्तु जब देवताओं की प्रार्थना पर वो पिघल गयीं और कहा कि ब्रह्माजी केवल पुष्कर में ही पूजे जाएंगे. इसी कारण यहाँ के अलावा और कहीं भी ब्रह्माजी का मंदिर नहीं है. सावित्री का क्रोध इतने पर भी शांत नहीं हुआ. उन्होंने विवाह कराने वाले ब्राह्मण को भी श्राप दिया कि चाहे जितना दान मिले, ब्राह्मण कभी संतुष्ट नहीं होंगे. गाय को कलियुग में गंदगी खाने और नारद को आजीवन कुंवारा रहने का श्राप दिया. अग्निदेव भी सावित्री के कोप से बच नहीं पाए. उन्हें भी कलियुग में अपमानित होने का श्राप मिला. पुष्कर में ब्रह्माजी से नाराज सावित्री दूर पहाड़ों की चोटी पर विराजती हैं…तो इसी श्राप के कारण ब्रह्मा जी का एक मात्र मंदिर पुष्कर में स्थित हैं।

अब बात करते हैं पुष्कर सरोवर की….

ब्रह्माजी के कमल पुष्प से बना पुष्करः पद्मपुराण के अनुसार ब्रह्माजी को यज्ञ करना था. उसके लिए उपयुक्त स्थान का चयन करने के लिए उन्होंने धरा पर अपने हाथ से एक कमल पुष्प गिराया. वह पुष्प अरावली पहाड़ियों के मध्य गिरा और लुढ़कते हुए दो स्थानों को स्पर्श करने के बाद तीसरे स्थान पर ठहर गया. जिन तीन स्थानों को पुष्प ने धरा को स्पर्श किया, वहां जलधारा फूट पड़ी और पवित्र सरोवर बन गए. सरोवरों की रचना एक पुष्प से हुई, इसलिए इन्हें पुष्कर कहा गया. प्रथम सरोवर कनिष्ठ पुष्कर, द्वितीय सरोवर मध्यम पुष्कर कहलाया. जहां पुष्प ने विराम लिया वहां एक सरोवर बना, जिसे ज्येष्ठ पुष्कर कहा गया. ज्येष्ठ पुष्कर ही आज पुष्कर के नाम से विख्यात है.

चार धाम की यात्रा के बाद पुष्कर स्नान जरूरीः पुष्कर महत्वपूर्ण तीर्थो में से एक है. इसका बनारस या प्रयाग की तरह ही महत्व है. जगन्नाथ, बद्रीनारायण, रामेश्वरम, द्वारका इन चार धामों की यात्रा करने वाले तीर्थयात्री की यात्रा तब तक पूर्ण नहीं होती, जब तक वह पुष्कर के पवित्र जल में स्नान नहीं कर लेता. महाभारत में पुष्करराज के बारे में लिखा है कि तीनों लोकों में मृत्यु लोक महान है और मृत्यु लोक में देवताओं का सर्वाधिक प्रिय स्थान पुष्कर है. पुष्कर को पृथ्वी का तीसरा नेत्र भी माना जाता है….
पुष्कर पंच-तीर्थों में सबसे पवि​त्रः तीर्थराज पुष्कर को सब तीर्थों का गुरु कहा जाता है. इसे धर्मशास्त्रों में पांच तीर्थों में सर्वाधिक पवित्र माना गया है. पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गया, हरिद्वार और प्रयाग को पंचतीर्थ कहा गया है. अर्द्ध चंद्राकार आकृति में बनी पवित्र एवं पौराणिक पुष्कर झील धार्मिक और आध्यात्मिक आकर्षण का केंद्र रही है. हर साल हजारों भक्तों द्वारा दौरा किया जाता है ताकि इसमें पवित्र डुबकी लगा सकें. श्रद्धालुओं के सरोवर में स्नान करने का सिलसिला भी पूर्णिमा को अपने चरम पर होता है. पुष्कर मेले के दौरान इस नगरी में आस्था और उल्लास का अनोखा संगम देखा जाता है…
भारत का सबसे बड़ा ऊंट मेलाः पुष्कर मेला कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं. लोग इस मेले को श्रद्धा, आस्था और विश्वास का प्रतीक मानते हैं. पुष्कर मेला मरुधरा का एक लोकप्रिय व रंगों से भरा मेला है. मेले का एक रोचक अंग ऊंटों का क्रय-विक्रय है. यहां प्रतिवर्ष 25000 से भी अधिक ऊंटों का व्यापार होता है. मेले के समय पुष्कर में कई संस्कृतियों का मिलन देखने को मिलता है. एक तरफ तो विदेशी सैलानी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं, तो दूसरी तरफ राजस्थान व आसपास के आदिवासी और ग्रामीण अपने पशुओं के साथ शिरकत करते हैं..

इन सबके अलवा पुष्कर में देखने योग्य अन्य स्थान भी हैं जैसे-सावित्री मंदिर,रंग जी मंदिर,वराह मंदिर,नाग पहाड़,अटमेश्वर मंदिर आदि…

✍️ रूबी चौधरी

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By admin

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