लेख-अशोक बालियान, चेयरमैन,पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन

हरियाणा के मुस्लिम बहुल मेवात रीजन में हिंसा के बाद हरियाणा के कई इलाकों में सांप्रदायिक तनाव का माहौल है। यहां पर स्वामी श्रध्दानंद के घर वापसी अभियान के बाद से सन 1926 से तबलीग़ी जमात की भी काफी मौजूदगी है, जबकि सऊदी अरब ने तब्लीगी जमात पर बैन लगा रखा है। तबलीग़ी जमात के आवाहन पर ऊंचे पाजामे और लंबे कुर्ते की यह मुहिम नूंह या मेवात में ही नहीं, आज देश के छोटे छोटे गांव कस्बों में भी सच्चा मुसलमान बनाने की गारंटी बन गया है।
जाट हरियाणा की राजनीति का एक प्रभुत्वशाली जाति है। जो लोग पहले सत्ता में थे, उन लोगों ने पिछले एक दशक से हरियाणा को आंदोलनों का केंद्र बना कर रखा हुआ है, जिससे जाटों को नुकसान हो रहा है। उन नेताओं के कारण ही हरियाणा की राजनीति में जाट और गैर-जाट का नैरेटिव बन रहा है। अब कुछ नेता व कुछ खाप चौधरी बिना सोचे समझे कह रहे है कि जाट हिन्दू भी नहीं है, जबकि भारत में निवास करने वाले सभी लोग, चाहे वे इस्लाम धर्म से सम्बन्ध रखते हो, उनका धर्म भी सनातन धर्म (हिंदू धर्म) था।
सनातन धर्म अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, सम्प्रदाय और दर्शन समेटे हुए हैं।हिन्दू धर्म केवल एक धर्म या सम्प्रदाय ही नहीं है, अपितु जीवन जीने की एक पद्धति भी है। भारत में केवल वैदिक धर्म को ही मानने वाले लोग ही रहते थे, इसलिए “हिन्दू” शब्द सभी भारतीयों के लिए प्रयुक्त होता था। भारत में केवल वैदिक धर्मावलम्बियों (हिन्दुओं) के बसने के कारण कालान्तर में विदेशियों ने इस शब्द को धर्म के सन्दर्भ में प्रयोग करना शुरु कर दिया था। सनातन धर्म (हिंदू धर्म) में सभी देवी-देवता एक ही परमेश्वर के विभिन्न रूप हैं।
सभी भारतियों की तरह जाट समुदाय विशुद्ध रूप से सनातन धर्म (हिंदू धर्म) का हिस्सा है। हिन्दू” शब्द “सिन्धु” से बना माना जाता है। यह भी माना जाता है कि जाटों ने सबसे पहले सिंधु घाटी पर कब्जा कर लिया था और 7वीं शताब्दी की शुरुआत में वहां सिंध के जाटों के राजवंश का शासन रहा था।
विदेशी आक्रमणकारियों के काल में धर्म परिवर्तन के कारण जाट समुदाय के लोग हिंदू जाट से  मुस्लिम जाट भी बने थे और इन विदेशी आक्रमणकारियों का मुकबला करने के लिए घर का एक बेटा सिख जाट बन गया था। जब मुगलो के अत्याचार चरम सीमा पर थे, तब राजा चूड़ामन सिंह का जाट परिवार में जन्म हुआ था, उनके पूर्वज सिनसिनी के राजा थे, लेकिन मुगलो व कुछ गद्दारो के कारण बाद में सिनसिनी का राज उनके हाथ से निकल गया था। सन् 1704 में राजा चूड़ामन सिंह ने सिनसिनी को औरँगेजेब के वंशजो से छीन ली थी व वहां वापिस हिन्दू राज स्थापित किया था।
औरगंजेब मथुरा के केशवराय मंदिर को तब तक नहीं तुड़वा पाया था, जब तक वीर गोकुल सिंह जाट जीवित रहे थे। गोकुल सिंह जाट तिलपत गाँव का सरदार थे। 10 मई 1666 ईस्वी को जाटों व औरंगजेब की सेना में तिलपत में लड़ाई हुई थी। और इस लड़ाई में जाटों की विजय हुई थी। युद्ध हारने के बाद औरंगजेब खुद सेना लेकर आया और गोकुला जाट और उनके साथियों को बंदी बनाने के लिए बहुत बड़ी सेना भेजी, और इस युद्ध में वीर गोकुल जाट को बन्दी बना लिया गया था और 1 जनवरी 1670 को आगरा के किले पर जनता को आतंकित करने के लिये उसके टुकडे़-टुकड़े कर उसकी हत्या कर दी थी। कुछ वर्ष बाद जाट सरदार राजाराम ने गोकुला जाट के बलिदान का बदला लेने के लिए आगरा में विदेशी शासक अकबर की कब्र खोदकर उसकी हड्डियां को आग में झोंक दिया था।
विदेशी शासक मुगलों के आधीन रहते हुए आगरा मुगलों की शक्ति का केंद्र बन गया था। भरतपुर के जाट राजा महाराजा सूरजमल ने आगरा को मुगलों से मुक्त कराने का निश्चय किया तथा अपने निश्चय को क्रियान्वित करते हुए उन्होंने 4 मई 1761 ईस्वी को बलराम सिंह व अपने भतीजे वैर के राजा बहादुर सिंह के नेतृत्व में हजारों सैनिक आगरा को विजय करने के लिए भेजे थे। और 12 जून सन् 1761 ईस्वी को आगरा के किले पर 681 वर्षों के पश्चात् एक बार फिर से भगवा ध्वज लहराने लगा था। राजा सूरजमल जी की प्रेरणा से प्रेरित होकर यहां के हिन्दू धर्मावालाम्बियों में फिर से नव जागृति आ गयी थी और उन्हें एक बार फिर से दृढ़ता का आभास हुआ था। आगरा में अवैध रूप से बनाई गई जामा मस्जिद को महाराजा सूरजमल के पुत्र महाराजा जवाहर सिंह ने साहस दिखाते हुए खाली करवाकर उसमें अनाज मंडी खुलवा दी थी तथा उसके एक भाग में पशुओं का तबेला खुलवा दिया था।
जाट समुदाय ने अपनी जाति में अपने से अलग गोत्र के परिवारों में विवाह करके अपने रक्त की शुद्धता को बनाए रखा है। ब्रिटिश काल की पुस्तक Report  On The Census Of British India  Vol. 3 (1881) के पेज 251 के अनुसार विशुद्ध रूप से हिंदू मूल की नस्ल है।
ब्रिटिश काल की पुस्तक Journal Of The Asiatic Society Vol.35 (1866)  के पेज 5 के अनुसार जाट हिंदू हैं। और यह लेखक  पेज 81 पर लिखते है कि जब वे पूर्व की ओर पंजाब और बाजपूताना में आगे बढ़ते है तो हिंदू और मुसलमान जाटों को काफी मिश्रित पाते हैं। अक्सर ऐसा होता है कि किसी गांव या परिवार की एक शाखा का आधा हिस्सा मुसलमान होता है, और दूसरा हिंदू होता है। और पेज 84 पर लिखते है कि जाट और राजपूत और उनके रिश्तेदार एक ही महान समूह की शाखाएँ हैं।
ब्रिटिश काल की पुस्तक A history of the reigning family of Lahore with some by Smyth 1847 के पेज 1 के अनुसार सन् 1470 में हिंदू जाट परिवार की तीन पीढ़ियां लाहौर से पचास मील दक्षिण-पश्चिम में पुंडी बट्टी नामक गाँव में रहती थी। जाट समाज की गोत्र और खाफ व्यवस्था प्राचीन समय की मानी जाती है। ब्रिटिश काल की पुस्तक Jats, Gujars, & Ahirs by A. H. Bingley 1918 के पेज 50 पर जाट के विषय में लिखा है कि जाट का धर्म हिंदू धर्म, भूमिया या उनके देवताओं का एक आदिम रूप है।
कृषि कानूनों को लेकर किसानों का जो आंदोलन हुआ था, अगर हम सामाजिक तौर से देखेंगे तो, उसमें हिन्दू जाट और सिख जाट लोगों की भूमिका बहुत बड़ी थी। दिल्ली में पहलवानों का जो प्रदर्शन हुआ था, उनमें 90 फीसदी से ज्यादा जाट समुदाय के लोग थे और उनमे विपक्ष की भी भूमिका थी, और कुछ संगठन व कुछ राजनैतिक दल मोदी सरकार के विरुद्ध नैरेटिव बनाने में फंडिंग भी कर रहे थे।
इन सब घटनाओं के बाद हरियाणवी समाज में रेडिकलाइजेशन इस बात को लेकर हो रहा है कि देखिए मेवात में मुस्लिम समाज ने हमें शिव यात्रा तक निकालने नहीं दी है। दूसरी और जाट के स्वाभिमान का मतलब ये तो कतई नही है कि वह देश विरोधी ताकतों को समर्थन करें। यह बात समझ से परे है कि हिंसा के समय ये भाई चारा बनाने वाले शांतिदूत कहाँ छुपे रहते है। ये शांतिदूत भाई चारा बनाने कभी कश्मीर भी नहीं गए।
सन 2013 में दंगों की घटना के बाद कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व सपा सरकार के मंत्री आदि सब मुजफ्फरनगर पहुंचे थे, किंतु आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वह सब जाटों से मिलने नहीं, केवल एक समुदाय से मिलने गए थे, और उन्हीं को राहत पैकेज व् सहानुभूति देकर वापस लौट गए थे,जबकि पीड़ित हिन्दू समुदाय भी था। जाट समुदाय को समझना होगा कि कुछ संगठन व कुछ राजनैतिक दल जाटों को अलग-थलग करना चाहते हैजबकि सभी भारतियों की तरहह जाट समुदाय विशुद्ध रूप से सनातन धर्म (हिंदू धर्म) का हिस्सा है।

उनमें 90 फीसदी से ज्यादा जाट समुदाय के लोग थे और उनमे विपक्ष की भी भूमिका थी, और कुछ संगठन व कुछ राजनैतिक दल मोदी सरकार के विरुद्ध नैरेटिव बनाने में फंडिंग भी कर रहे थे।
इन सब घटनाओं के बाद हरियाणवी समाज में रेडिकलाइजेशन इस बात को लेकर हो रहा है कि देखिए मेवात में मुस्लिम समाज ने हमें शिव यात्रा तक निकालने नहीं दी है। दूसरी और जाट के स्वाभिमान का मतलब ये तो कतई नही है कि वह देश विरोधी ताकतों को समर्थन करें। यह बात समझ से परे है कि हिंसा के समय ये भाई चारा बनाने वाले शांतिदूत कहाँ छुपे रहते है। ये शांतिदूत भाई चारा बनाने कभी कश्मीर भी नहीं गए।
सन 2013 में दंगों की घटना के बाद कांग्रेस की नेता सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व सपा सरकार के मंत्री आदि सब मुजफ्फरनगर पहुंचे थे, किंतु आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वह सब जाटों से मिलने नहीं, केवल एक समुदाय से मिलने गए थे, और उन्हीं को राहत पैकेज व् सहानुभूति देकर वापस लौट गए थे,जबकि पीड़ित हिन्दू समुदाय भी था। जाट समुदाय को समझना होगा कि कुछ संगठन व कुछ राजनैतिक दल जाटों को अलग-थलग करना चाहते है जबकि सभी भारतियों की तरह जाट समुदाय विशुद्ध रूप से सनातन धर्म (हिंदू धर्म) का हिस्सा है।

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